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    Pandit Kishan Maharaj Birth Anniversary : पं. रविशंकर ने दी दुहाई, Kishan maharaj की तिहाई जब रौ में आई

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Thu, 03 Sep 2020 01:11 PM (IST)

    बुजुर्गवार संगीत प्रेमी बताते हैैं कि तबला सम्राट की तिहाई के रंगत में आने तक पंडित रविशंकर इस कदर अभिभूत हो चुके थे कि सितार को बगल में रखकर उन्होंने महाराज जी को गले लगा लिया।

    Pandit Kishan Maharaj Birth Anniversary : पं. रविशंकर ने दी दुहाई, Kishan maharaj की तिहाई जब रौ में आई

    वाराणसी [कुमार अजय]। बात वर्ष 1970 की है। सितार के जादूगर पं रविशंकर काशी प्रवास पर थे। उसी हफ्ते पड़ रहा था उनका जन्मदिन। काशी के कलाकारों व कलानुरागियों की राय बनी कि पंडित जी (जन्म : 3 सितंबर 1923, देहांत : 4 मई 2008) का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाए और एक यादगार महफिल सजाई जाए। आखिर वह दिन आ ही गया। सुबह बाबा विश्वनाथ का रुद्राभिषेक व दशाश्वमेध घाट पर भंडारा। शाम में पंडित राम सहाय विद्यालय की ओर से सेंट्रल हिंदू स्कूल के प्रांगण में सुर-ताल की कल-कल धारा बही।

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    सांझ गहराने तक कानपुर वाले काशीनाथ बोड़स अपनी गायकी से और बनारस के ही जे मैसी तबले पर  संगत से महफिल का माहौल बना चुके थे। रात के दस बजे वह घड़ी भी आई जिसका संगीत प्रेमियों को बेसब्री से इंतजार था। पं. किशन महाराज के साथ पं. रविशंकर ने मंच संभाला तो पूरा सभागार हर्ष ध्वनि गूंज उठा। साज मिलाने के बाद जब पंडित जी ने सितार पर राग अभोगी कान्हड़ा की आलापचारी झंकृत की तो राग के आरोह-अवरोह की जटिलता से परिचय करने के लिए पं. किशन महाराज की अंगुलियां बस दो पल ही खिसकी होंगी। सुर का सूत्र पकड़ में आते ही मानो बिजली सी कौंधी हो। किशन महाराज ने ऐसा समां बांधा कि सारे लोग सम्मोहित हो गए। इसके बाद किशन महाराज बढ़त पर बढ़त लेते गए। आयोजन के गवाह रहे बुजुर्गवार संगीत प्रेमी बताते हैैं कि तबला सम्राट की तिहाई के रंगत में आने तक पंडित रविशंकर इस कदर अभिभूत हो चुके थे कि सितार को बगल में रखकर उन्होंने महाराज जी को गले लगा लिया।

    पंडित किशन महाराज की जयंती पर उन्हें स्मरण करते हुए बनारस घराने के ख्यात संगीतकार पंडित कामेश्वर मिश्र के रोम-रोम उस क्षण को याद कर आज भी पुलक उठते हैैं। वे बताते हैैं कोई भी सुधिजन इस यादगार जुगलबंदी के मोहपाश से बरी नहीं था। कार्यक्रम आगे भी चला। किसी को अहसास तक नहीं हुआ कि रात ढली और कब भोर आ गई। अंत में पंडित रविशंकर को यह घोषणा करनी पड़ी कि अब से वे हर साल काशी आएंगे और महाराज जी के साथ सुर-ताल का जादू जगाएंगे। अपने इस वायदे को जमीन देने के लिए ही उन्होंने बनारस में सांगीतिक संस्था (रिम्पा) को अस्तित्व में लाए।

    जब बनारस बाज ने तोड़ा जाकिर का तिलिस्म : पंडित किशन महाराज की बेटी अंजलि पिता से सुना एक संस्मरण बताती हैैं, दौर संभवत: सत्तर का था रिम्पा के आयोजन में उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे जाकिर हुसैन ने तबले की ताल से गजब समां बांध दिया था। पंडित किशन महाराज उस समय कलकत्ता में थे। रिम्पा महोत्सव के अंतिम दिन उन्हें भी प्रस्तुति देनी थी। कलकत्ते से लौटकर उसी शाम जब वे नगर निगम प्रेक्षागृह पहुंचे तो लोग बोल रहे थे, अरे यार... अल्लारक्खा क बेटउवा त छा गयल, बनारस बाज के समझ खा गयल। धीरज के धनी महाराज जी ने इन फुसफुसाहटों का उत्तर तबले से दिया। जब वे रौ में आए और बनारस बाज (बनारस घराने की एक शैली) को उसकी रंगत में ढाला तो सभागार हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा।