काशी हिंदू विश्वविद्यालय में “ओड़िया एवं हिंदी भक्ति साहित्य: एक तुलनात्मक विमर्श” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में “ओड़िया एवं हिंदी भक्ति साहित्य: एक तुलनात्मक विमर्श” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में ओड़िया और हिंदी भक्ति साहित्य के तुलनात्मक पहलुओं पर चर्चा की गई।

भक्ति साहित्य के विद्वानों और विशेषज्ञों ने दोनों भाषाओं की अध्यात्म, काव्य परंपरा और सांस्कृतिक विरासत पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा ओड़िशा साहित्य अकादमी, कवि सम्राट उपेन्द्र भंज ओड़िया चेयर तथा वाराणसेय उत्कल समाज के सहयोग से “ओड़िया एवं हिंदी भक्ति साहित्य: एक तुलनात्मक विमर्श” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का सफल आयोजन के. एन. उडुप्पा सभागार में किया गया। इस अवसर पर भक्ति साहित्य के विद्वानों और विशेषज्ञों ने दोनों भाषाओं की अध्यात्म, काव्य परंपरा और सांस्कृतिक विरासत पर सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए।
कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में कहा कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय सदैव भारतीय भाषाओं, साहित्य और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध रहा है और इस संगोष्ठी की शुरुआत करने के लिए बीएचयू से अच्छी जगह नहीं हो सकती थी। आज की संगोष्ठी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच शैक्षिक और सांस्कृतिक सेतु का निर्माण कर रहा है। अपने संबोधन में आगे उन्होंने कहा कि "मैं चाहता हूँ कि इस संगोष्ठी के माध्यम से जो समानताएं उजागर होंगी वो केवल समानताएं ही न हो बल्कि कई विशिष्टताएं भी उजागर हों।" प्रो. चतुर्वेदी ने, समारोह तक ही सीमित न रहने बल्कि उसके कारण को भी याद रखने की बात पर भी ज़ोर दिया।
कार्यक्रम का स्वागत भाषण केएसयूबी ओड़िया चेयर के संयोजक एवं वाराणसेय उत्कल समाज के अध्यक्ष प्रो. गोपबंधु मिश्र द्वारा दिया गया। उन्होंने ओड़िया और हिंदी भक्ति साहित्य के पारस्परिक प्रभाव और उनके आध्यात्मिक स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य सभी को ओड़िशा से बाहर उड़िया भाषा, संस्कृति कला, संगीत, साहित्य और इतिहास से परिचित कराना और उड़ीसा के गौरव को प्रतिष्ठित करना है। आज की संगोष्ठी को बीएचयू, कवि सम्राट उपेंद्र भंज तथा उड़ीसा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित किए जाने पर इस संगोष्ठी को "त्रिवेणी" कह कर संबोधित किया।
उड़ीसा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. चंद्रशेखर होता ने क्षेत्रीय साहित्यिक परंपराओं के अकादमिक अध्ययन को और मजबूत करने तथा विश्वविद्यालय समुदाय में सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि भक्ति साहित्य की परंपरा महान है। मातृभाषा ही लोगों जोड़ सकती है और अपना बना सकती है।
संगोष्ठी में डॉ. प्रफुल्ल कुमार मिश्र, प्रो. रवीन्द्रनाथ मिश्र, प्रो. बलराज पांडेय, डॉ. प्रीति त्रिपाठी, प्रो. बाबाजी चरण पटनायक, डॉ. सुधाकर दाश, डॉ. प्रदीप्त कुमार पंडा, डॉ. बाउरीबन्धु साहू तथा प्रो. ओम प्रकाश सिंह (जेएनयू) सहित प्रतिष्ठित वक्ताओं ने ओड़िया और हिंदी भक्ति साहित्य के विभिन्न आयामों पर अपने विद्वत्तापूर्ण विचार प्रस्तुत किए। उनके शोधपरक व्याख्यानों ने तुलनात्मक विमर्श को समृद्ध किया और दोनों परंपराओं की साझा भक्ति साहित्य व सांस्कृतिक विशेषताओं को रेखांकित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत भारत रत्न पं. मदन मोहन मालवीय तथा भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित करने से हुई, जिसके बाद छात्रों द्वारा बीएचयू कुलगीत प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का समापन डॉ. अमिय कुमार सामल द्वारा दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। उन्होंने सभी सहयोगी संस्थाओं, अतिथियों और प्रतिभागियों को संगोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन सत्र का संचालन अनिर्बाण परिडा और जैसमीन प्रवा ने किया।

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