रामेश्वरम के बाद यहां श्रीराम ने रेत से स्थापित किया शिवलिंग, प्रसाद में भक्त चढा़ते हैं बाटी और चोखा
वरुणा नदी में डुबकी लगाने के बाद रामेश्वर महादेव में मत्था टेककर बाटी-चोखा और दाल बनाकर भोले बाबा को चढ़ाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण कर मेले का भी लोग आनन्द ...और पढ़ें

वाराणसी, [के.एल. पथिक]। भगवान शिव की नगरी काशी में परंपराएं भी पौराणिक हैं, मान्यताओं और कथाओं ने इसे पुराणों से भी प्राचीन नगरी के तौर पर मान्यता दी है। काशी में रामेश्वर, काशी पंचक्रोशी के तृतीय पड़ाव स्थल पर बसा हुआ है। किसी जमाने में करौंदा वृक्ष की बहुतायतता के कारण इसे 'करौना' गांव के नाम से जाना जाता था किन्तु भगवान श्रीराम द्वारा पंचक्रोशी यात्रा में आने पर वरुणा नदी के एक मुठ्ठी रेत से रामेश्वरम की ही भांति 'शिव की प्रतिमा' स्थापना और भगवान 'शिव' एवम् 'श्रीराम' के आरम्भिक मिलन का केंद्र होने से अब इसे रामेश्वर महादेव (रामेश्वर तीर्थ धाम) के नाम से भी जाना जाता है। यहां लोटा भंटा मेला के दौरान दूर दूर से आकर लोक कल्पवास कर बाटी, चोखा अौर दाल चावल बनाकर भगवान शिव को इसका भोग भी लगाते हैं और प्रसाद एक दूसरे को बांटकर पुण्य की कामना करते हैं।
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हालांकि यहां श्रावण मास में काशी के सभी शिवालयों की ही भांति श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। मगर आध्यात्मिक दृष्टि से विविध रूपों में शिव एक ही सत्ता के साथ विराजमान हैं, पर लौकिक दृष्टि से प्रत्येक शिव स्थान या शिवालय के साथ अलग -अलग परम्पराएं जुडी हैं जो लोक आस्था की प्रतीक आज भी हैं। यहां पर पापों के विनाश के लिए पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत हुई। जब भगवान श्री राम ने कुम्भोदर ऋषि से महा विद्वान् रावण के वध से प्रायश्चित उपाय पर चौरासी कोस की यात्रा करने क्षत्रिय वंश द्वारा ब्राह्मणों की मर्यादा को स्थापित रखने के आदेश पर चौरासी कोस की काशी यात्रा (जहां 56 करोड़ देवता वास करते हैं) प्रारम्भ की थी। कर्दमेश्वर, भीमचण्डी के बाद रामेश्वर में वरुणा के शांत कछार पर रात्रि भर विश्राम कर भगवान राम ने अपने हाथों एक मुठ्ठी रेत से शिव प्रतिमा की स्थापना कर तर्पण किया, जो स्थान आज पापों का नाश व मनोकामना की पूर्ति का पवित्र स्थल बन गया। यहां प्रति वर्ष हजारों हजार लोग आस्था के साथ जलाभिषेक कर पूजन -अर्चन करते हैं। 'काशी महात्म्य' में उल्लिखित कथा के अनुसार -'एक रात्रेय तू मध्येय प्रविशे छुछि मानसः,वरुणा यासि तटे रम्ये सजाति परमां गतिम्।'
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रामेश्वर में दिन -रात रुकने परखाने, पहनने, धोने, शौच जाने, तामसी भोज्य पदार्थ त्याग, जूते चप्पल पहनने, तेल व साबुन का पूर्ण त्याग कर वरुणा के तट पर अर्पण व देव स्थान पर सफेद तिल, बेलपत्र, सफेद वस्त्र, चांदी सोना व गंगा जल चढ़ाकर तर्पण करता है और शिवलिंग स्थापना पर उसे परम् गति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है। इस आधार पर सभी ग्रहों ने आकर शिवलिंग की स्थापना की है। राजा नहुष ने नहुषेश्वर, पृथ्वी आकाश के मालिक द्वारा द्यावा भूमिश्वर, भरत जी द्वारा भरतेश्वर सहित पंचपालेश्वर, लक्ष्मनेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, अग्निशेश्वर, सोमेश्वर की स्थापना के साथ परिसर में दत्तात्रय, राम लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणेश, नरसिंह, कालभैरव, सूर्यदेव एवं साक्षी विनायक मन्दिर के बाहरी हिस्से में स्थित है।
वैष्णव सम्प्रदाय में राधा -कृष्ण मन्दिर, आराध्य देवी मां तुलजा -दुर्गा की भव्य प्रतिमा, बहरी अलंग झारखंडेश्वर महादेव,श्मशान घाट, रुद्राणी, तपोभूमि, उतकलेश्वर महादेव, उदण्ड विनायक और इश्वरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा वरुणा तट पर जहां शिवलिंग की स्थापना की गई वहीं पर वीर हनुमान व असंख्य बन्दरों ने विंध्य पर्वत की शिला से असंख्य लिंग की स्थापना श्री राम के आदेश पर किया जो तप स्थली के रूप में विशाल वट के नीचे आस्था का केंद्र है।
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मान्यता है कि रामेश्वर के शिव दरबार में एक दम्पती ने पुत्र रत्न की कामना से यहां आकर पूजन अर्चन किया। जिसकी कामना महादेव की कृपा से पूर्ण हुई। इसको लेकर मार्गशीर्ष में छठ पर 'लोटा -भंटा' का विशाल मेला लगता है। जिसमें वरुणा नदी में डुबकी लगाने के बाद रामेश्वर महादेव में मत्था टेककर बाटी-चोखा और दाल बनाकर भोले बाबा को चढ़ाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण कर मेले का भी लोग आनन्द उठाते हैं। प्रतिवर्ष अगहन (मार्गशीर्ष) छठ पर यह मेला लगता है जो इस बार 18 नवम्बर सोमवार को पड़ रहा है। इस मौके पर लाखों आस्थावानों की रामेश्वर महादेव मंदिर में जुटान होगी और मनोकामना मांगेंगे। लोटा -भंटा मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला है जहां पहुंचकर महाभारत काल के स्थापित पंचशिवाला शिवमन्दिर में भी दर्शन -पूजन किया जाता है।

लोटा भंटा मेले की तैयारी को लेकर एसडीएम ने की बैठक
रामेश्वर तीर्थ धाम में लगने वाला मशहूर लोटा-भंटा मेला इस वर्ष 18 नवंबर को लगेगा। मेले की तैयारी को लेकर शुक्रवार को एसडीएम राजातालाब अमृता सिंह की अध्यक्षता में आवश्यक बैठक भी हुई। बैठक में ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, बिजली, स्वास्थ्य विभाग, पीडब्लूडी, जल निगम व पुलिस विभाग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया। एसडीएम ने मंदिर के महंत, पुजारी, ग्राम प्रधान और ग्रामीणों से भी जानकारी ली।

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