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    21 दिनों तक बाढ़ का कहर झेल लेगी धान की फसल, स्ट्रेस टालरेंट स्वर्णा सब-1 की नई प्रजाति जल्‍द

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 11:56 AM (IST)

    जलवायु परिवर्तन से जूझते किसानों के लिए खुशखबरी! वैज्ञानिकों ने धान की एक नई प्रजाति विकसित की है जो 21 दिनों तक बाढ़ का कहर झेल सकती है। स्ट्रेस टालरेंट स्वर्णा सब-1 नामक यह प्रजाति अगले दो-तीन वर्षों में किसानों के लिए उपलब्ध होगी। इसके अतिरिक्त सूखे से निपटने के लिए डीआरआर-42 प्रजाति भी तैयार है।

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    यह नई तकनीक किसानों को बदलते मौसम में सुरक्षित रखेगी।

    मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। जलवायु परिवर्तन के कारण कभी तेज बारिश, बाढ़ तो कभी सूखे का प्रकोप लोगों को झेलना पड़ रहा है। इसका सबसे अधिक असर किसानों पर पड़ रहा है। खासकर धान की खेती में। गाढ़ी कमाई लगाकर किसान धान की खेती करते हैं।

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    वहीं जब फसल तैयार होती है तो बाढ़ या सूखे की पचेट में आ जाती है। इसे देखते हुए इरी के विज्ञानियों ने धान की नई प्रजाति विकसित की है। स्ट्रेस टालरेंट स्वर्णा सब-1 की नई प्रजाति में 21 दिनों तक बाढ़ का कहर झेलने की क्षमता है। यह प्रजाति अगले दो-तीन साल में किसानों के बीच आ जाएगी।

    यह जानकारी रविवार को इरी सार्क में आयोजित डीएसआर कान्क्लेव-2025 में इरी के अनुसंधान निदेशक डा. वीरेंद्र कुमार को दी। बताया कि अभी तक जो स्वर्णा सब-1 धान की प्रजाति है उसमें 15 दिनों तक बाढ़ झेलने की क्षमता है। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) के विज्ञानियों ने ऐसे प्रजाति विकसित की है जो 21 दिनों तक पानी में डूबे रहने पर भी सुरक्षित रहेगी।

    वहीं सूखे से निपटने के लिए डीआरआर-42 व 44 धान की प्रजाति है। यह सूखे की स्थिति में भी बेहतर उपज देेगी। इसके अलावा देश के विभिन्न हिस्सों में डीएसआर के लिए भी लगभग 20 प्रजातियों पर ट्रायल चल रहा है। डा. वीरेंद्र कुमार ने बताया कि डीएसआर की प्रजातियां भी अगले साल तक आम किसानों के बीच आ जाएंगी। इसके बाद इसे राज्य की जलवायु के अनुसार जारी कर दिया जाएगा।

    अधिक बारिश के कारण गेहूं की खेती में हो सकती है देरी

    सितंबर व अक्टूबर में हुई अधिक बारिश के कारण अब आगामी गेहूं के साथ ही मक्का, दलहन व तीलहन की खेती भी प्रभावित होगी। कारण कि धान की फसल पकने में अब लगभग 10-15 दिन तक देरी से पक सकती है।

    ऐसे में किसानों को सलाह दी गई है कि वे गेहूं बोआइ के बाद जरूरी दवाओं का उपयोग करें। इरी सार्क में आयोजित डीएसआर कान्क्लेव में शामिल इफको के चीफ (एग्रीकल्चर सर्विस) डा. तरुनेंदू सिंह ने बताया कि खेतों में अधिक नमी होने के कारण कई रोग भी पनपेंगे। ऐसे में किसानों को चाहिए कि गेहूं के प्रति किलोग्राम बीज में पांच से 10 एमएल नैनो डीएपी का उपयोग करें। इससे बीज जल्दी अंकुरित होंगे। वहीं 20-25 दिन के बाद नैनो डीएपी का स्प्रे भी किया जाना उचित होगा। इसका उपयोग चार एमएल एक लीटर पानी में किया जाएगा। 500 एमएल नैनो डीएपी में लगभग एक एकड़ खेत में छिड़काव किया जा सकता है। इससे गेहूं की खेती में जो देरी होगी उसकी भरपाई हो जाएगी।

    कंबोडिया में तेजी से हो रहा डीएसआर का विस्तार

    इरी कंबोडिया की विज्ञानी (इनोवेशन सिस्टम) रिका जाय प्लोर ने बताया कि कंबोडिया में भी डीआरएस यानी धान की सीधी बोआइ का विस्तार तेजी से हो रहा है। वहां इससे 158-200 डालर तक किसानों को बचत हो रही है। साथ ही 0.2-0.9 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर उपज भी बढ़ रही है। बताया कि डीएसआर विधि से खेती से पानी के साथ ही मशीनरी का भी उपयोग कम हो रहा है।