संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का दीक्षा समारोह आठ को, सर्वोकृष्ट शोध पत्र प्रस्तुतिकरण के लिए सम्मानित किए शोधार्थी
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में शिक्षा की गुणवत्ता पहुँच और छात्रों के विकास पर जोर दिया गया। वक्ताओं ने मातृभाषा में शिक्षा के महत्व और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आठ अक्टूबर को होने वाले दीक्षांतोत्सव से पूर्व शनिवार को आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 चुनौतियां एवं संभावनाएं विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इसमें सर्वोत्कृष्ट शोध पत्र प्रस्तुतिकरण के लिए सन्यासी संस्कृत महाविद्यालय में प्रवक्ता (साहित्य) अनुराग पांडेय, श्री पंचायती संस्कृत महाविद्यालय मुंडेरवा बस्ती के डा. अखिलेश कुमार मिश्र व डा. विवेक पांडेय को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा व संगोष्ठी की संयोजक बीएड विभागाध्यक्ष प्रो. विशाखा शुक्ला ने प्रशस्ति पत्र, प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।
कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि इस तरह की प्रतिभाओं से ही हमारे विश्वविद्यालय का गौरव है और आप सभी को इसी तरह जीवन में आने वाली चुनौतियों से न घबराते हुए आगे बढ़ते रहना है। इस तरह की प्रतिभाओं से ही हमारे विश्वविद्यालय का गौरव है और आप सभी को इसी तरह जीवन में नवीन अन्वेषण करते रहें, जो कि समाजोपयोगी सिद्ध होगी।
इस मौके पर परीक्षा नियंत्रक प्रो. सुधाकर मिश्र, प्रो. हीरक कांत चक्रवर्ती, छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेश मिश्रा आदि उपस्थित रहे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, विद्याश्री न्यास, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उ.प्र व लाल बहादुर शास्त्री स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में योग साधना केंद्र, यहां के योगसाधना केन्द्र में आयोजित राष्ट्रीय शैक्षिक संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय सत्र में डा. नीलम ने कहा कि पिछली नीतियों के विपरीत, एन ई पी 2020 छात्रों को अपनी भाषाओं का चयन करने में अधिक लचीली रखी गई है जिससे विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों की भाषाई विविधता को समायोजित की जा सकती है।
डा. आशुतोष ने कहा कि इस नीति का उद्देश्य छात्रों की सांस्कृतिक पहचान और सांस्कृतिक गौरव को बनाए रखना है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि वे विभिन्न भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों को समझें और उनका सम्मान करें। डा. कामेश सिंह ने कहा कि अपनी मातृभाषा को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक तत्परता हेतु दूसरी भाषाओं को सीखाने से छात्रों को वैश्विक स्तर पर भी प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है, जिससे वे बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से जागरूक नागरिक बने।
डा. प्रियंवदा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चुनौतियों व समाधान पर बोलते हुए कहा कि राज्यों के बीच सर्वसम्मति का अभाव, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा (विशेषकर डिजिटल शिक्षा के लिए), योग्य शिक्षकों की कमी, फंडिंग की समस्या, विभिन्न भाषाओं में सामग्री के अनुवाद की कठिनाई, और अति-केंद्रीकरण व संस्थागत प्रतिरोध आदि प्रमुख हैं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में प्रो संजय ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा की पहुँच, समता, गुणवत्ता, वहनीयता और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी के 6% हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है अगर ऐसा किया जायेगा तो विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों की आधारभूत संरचना मज़बूत होगी। प्रो भावना ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा दी जाए जिसके फलस्वरूप उनकी संज्ञानात्मक कुशलता जैसे समस्या-समाधान, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच सकारात्मक रूप से विकसित होगी।
डा. विशाखा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 नीति भारत की भाषाओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जो छात्रों को सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने में सहायता प्रदान करती है जिससे उनका बौद्धिक विकास होता हैं। ये नीति भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करती है और बहुभाषावाद को एक महत्वपूर्ण कौशल के रूप में देखती है, जिससे विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समझ विकसित होगी और @ 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने में सहायता करेगी।
ब्रजेश कहा कि त्रिभाषा से बच्चों को बहुत सी भाषाओं को सीखने का अवसर मिलेगा । बहुभाषावाद से अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा ।राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मुख्य लक्ष्य है बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में भाषाएँ सीखना भी शामिल है, जो महत्वपूर्ण है। बहुभाषावाद और अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देना इसका मुख्य लक्ष्य है। इसके द्वारा भाषाई अंतर को पाटा जा सकेगा और देश भर में प्रभावी संचार की व्यवस्था संभव हो पाएगी। प्रो राजीव ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं के प्रयोग और सीखने को बढ़ावा देने से उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
डा. दीपक ने कहा कि अनेक भाषाएँ सीखने से संज्ञानात्मक विकास होता है व चिंतन की प्रक्रिया सुदृढ़ होती है। समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो उदयन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता होगी।यह नीति विद्यार्थियों को अपनी जड़ों से जुड़ने में मदद करेगी जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे वैश्विक स्तर की चुनौतियों हेतु तैयार हो पाएंगे।
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