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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच की रिपोर्ट, देश में पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या में हुई वृद्धि

एक आदर्श समाज की स्थापना के लिए जरूरी है कि समाज में स्त्री और पुरुष का अनुपात समान रहे। इसकी बिगड़ती स्थिति कई सामाजिक समस्याओं की वजह बनती है। देश का हर एक अभिभावक अपनी बच्चियों की शिक्षा के उचित प्रबंधन हेतु अपने हिस्से का फर्ज अदा करे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 01 Dec 2021 11:21 AM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 11:24 AM (IST)
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच की रिपोर्ट, देश में पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या में हुई वृद्धि
NFHS-पांच की रिपोर्ट के मुताबिक देश में पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रतीकात्मक

सुधीर कुमार। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच की हालिया रिपोर्ट देश में लैंगिक अनुपात में संतोषजनक सुधार का प्रतिदर्श प्रस्तुत करती है। इसके मुताबिक देश में पहली बार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 पहुंच गई है। हालांकि यह एक सर्वेक्षण रिपोर्ट है। जब तक आगामी जनगणना की रिपोर्ट सामने नहीं आती है, तब तक राष्ट्रीय लिंगानुपात में बदलाव की सही तस्वीर सामने नहीं आएगी। यद्यपि पिछले तीन दशक में देश में लिंगानुपात में सुधार आया है।

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1991 की जनगणना में देश में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं का अनुपात 927, 2001 में 933 और 2011 में 943 दर्ज किया गया, वहीं 2015-16 में हुए इस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में लिंगानुपात 991:1000 बताया गया। इससे स्पष्ट होता है कि देश में लिंगानुपात की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है। लिंगानुपात में हो रहे सुधार में बड़ी भूमिका-‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की भी रही है। इस अभियान ने लोगों को बालिकाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति जागरूक किया है। वहीं कन्या भ्रूण हत्या को रोकने तथा लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में यह काफी मददगार और सफल साबित हुआ है। 2015 में इस अभियान की औपचारिक शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा से की थी।

एक सभ्य और आदर्श समाज की स्थापना के लिए जरूरी है कि समाज में स्त्री और पुरुष का अनुपात समान रहे। इसकी बिगड़ती स्थिति कई सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं की वजह बनती है। एक प्रगतिशील समाज भी उसे ही माना जाता है, जहां स्त्री-पुरुष संख्या में अत्यधिक भिन्नता न हो। साथ ही महिलाओं को समान रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और अवसर आदि उपलब्ध कराए जाएं। हालांकि देश में आज भी विद्यमान पितृसत्तात्मक परिवार प्रणाली के कारण अत्यधिक पुत्र मोह की भावना तथा कुकुरमुत्ते की तरह गली-गली में खुले जांच-घरों में अवैध और चोरी-छिपे होने वाले भ्रूण जांच के कारण कई बच्चियां बाहर की दुनिया देखने से पूर्व ही दम तोड़ने को बाध्य कर दी जाती हैं।

दरअसल किसी क्षेत्र में अगर स्त्रियों की संख्या पुरुषों की संख्या से अधिक होती है तो इसे अनुकूल लिंगानुपात कहते हैं। अधिकांश विकसित देशों में अनुकूल लिंग अनुपात पाया जाता है, क्योंकि वहां पर स्त्री-पुरुष भेदभाव नहीं के बराबर देखा जाता है। दोनों को समान रूप से विकसित होने के लिए ध्यान दिया जाता है। वहीं किसी क्षेत्र में अगर स्त्रियों की संख्या पुरुषों की संख्या से कम हो तो इसे प्रतिकूल लिंगानुपात कहते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण स्त्री और पुरुष में भेदभाव अधिक होता है। पुरुषों को स्त्रियों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाता है। ज्यादातर विकासशील देशों में ऐसा देखा जाता है। इनके अलावा संतुलित लिंगानुपात की स्थिति में स्त्री और पुरुष की संख्या लगभग बराबर होती है। ऐसे क्षेत्रों में जन्मदर और मृत्युदर बराबर और उच्च होता है। प्राकृतिक दृष्टि से पुरुषों का जन्म स्त्रियों के जन्म से अधिक होता है और मृत्युदर में भी पुरुषों की मृत्युदर स्त्रियों के मृत्युदर से अधिक होती है। जिससे लिंगानुपात संतुलन में बना रहता है। प्रकृति के ज्यादा नजदीक रहने वाले क्षेत्रों या पिछड़े क्षेत्रों में ऐसी स्थिति पाई जाती है।

वास्तव में राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता के लिए देशभर में चलाए जा रहे तमाम कार्यक्रमों और अभियानों का ही नतीजा है कि अब बेटियों के प्रति लोगों की परंपरागत तथा संकीर्ण सोच बदल रही है। केंद्र सरकार की सुकन्या समृद्धि योजना, मध्य प्रदेश सरकार की लाडली लक्ष्मी योजना, झारखंड सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय बालिका प्रोत्साहन योजना और सीबीएसई की सिंगल गर्ल चाइल्ड स्कालरशिप योजना जैसे कार्यक्रम भी देश में करोड़ों लड़कियों के लिए उन्नति के नए रास्ते खोल रहे हैं।

सरकारी प्रयासों से इतर विभिन्न क्षेत्रों की सफल महिला प्रतिभाओं ने भी समाज की अन्य लड़कियों को घर की चौखट लांघने तथा इतिहास रचने को प्रेरित किया है। वस्तुत: शिक्षा, खेल, विज्ञान, राजनीति, पत्रकारिता जैसे सभी क्षेत्रों में महिलाएं सफलता का झंडा फहरा रही हैं। तमाम साहित्य, सिनेमा और कला भी बताते हैं कि नारी के बिना पुरुषों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। डा. सेमुअल जानसन के शब्दों में-‘नारी के बिना पुरुष की बाल्यावस्था असहाय, युवावस्था सुखरहित और वृद्धावस्था सांत्वना देने वाले सच्चे और वफादार साथी से रहित है।’ जरूरी है कि देश का हर एक अभिभावक अपनी बच्चियों की शिक्षा और स्वास्थ्य के उचित प्रबंधन हेतु अपने हिस्से का फर्ज अदा करे।

[शोध अध्येता, बीएचयू]


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