त्रिलोचन शास्त्री के नाम आधुनिक हिंदी कविता में सानेट के जन्मदाता होने का मान, चतुष्पदी को भारतीय रंग दिया
हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा के सशक्त हस्ताक्षर त्रिलोचन शास्त्री अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना था कि भाषा में जितने प् ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी। हिंदी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा के सशक्त हस्ताक्षर त्रिलोचन शास्त्री अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना था कि भाषा में जितने प्रयोग होते रहेंगे वह उतनी ही समृद्ध होती जाएगी। इसका ही परिणाम रहा कि उन्होंने सदा नवसृजन को बढ़ावा दिया और नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक का काम किया।
कुछ ऐसा ही हिंदी में विजातीय माने जाने वाले सानेट (चतुष्पदी) के मामले में रहा। गीत-गजल, मुक्त छंद, कुंडलियां, बरवै जैसे कविता के करीब सभी माध्यमों में पकड़ दिखाने वाले शास्त्री जी जाने- पहचाने भी सानेट के कारण गए। रोला छंद को आधार बनाते हुए उन्होंने इसका भारतीयकरण कर दिया। इसमें आम बोलचाल की भाषा व लय का प्रयोग करते हुए लोकरंग भर दिया। सानेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए जा सकते थे, त्रिलोचन ने उन सभी को आजमाया। इससे उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता में सानेट का जन्मदाता होने का मान पाया। इस छंद में उन्होंने जितनी रचनाएं (लगभग 550) कीं, शायद मिल्टन, स्पेंसर और शेक्सपीयर जैसे रचनाकारों ने भी नहीं कीं।
सुल्तानपुर के कटघरा चिरानी पट्टी में 20 अगस्त 1917 को जन्मे वासुदेव सिंह बाद में त्रिलोचन शास्त्री कहलाए। एक छोटे से गांव से काशी हिंदू विश्वविद्यालय तक के सफर में उन्होंने दर्जनों किताबें लिखीं, रचनाओं को आकार दिया और बाजारवाद का विरोध करते हुए सदा हिंदी साहित्य को समृद्ध करने का जतन किया। हालांकि यह सफर इतना आसान भी न था। इसका ही असर रहा कि चाहे पत्रकारिता रही हो या साहित्य सृजन उन्होंने वही लिखा जो कमजोर, दबे कुचले समाज के पक्ष में था। इसमें अवधी, प्राचीन संस्कृत, हिंदी के साथ ही अरबी-फारसी के भी निष्णात ज्ञाता शास्त्री जी ने भाषा शैली व विषयवस्तु सभी में अपनी अलग छाप छोड़ी। वर्ष 1945 में उनका पहला कविता संग्रह धरती प्रकाशित हुआ तो गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूं और ताप के ताए हुए दिन आदि कविता संग्रह ने चर्चा पाई। दिगंत और धरती समेत उनके 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए। प्रगतिशील धारा के इस कवि ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कार्य करने के साथ 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी दायित्व निभाया। साथ ही प्रकाशन संस्था ज्ञानमंडल में सेवा के दौरान हिंदी व उर्दू के शब्दकोषों पर भी काम किया। आधुनिक ङ्क्षहदी कविता में सानेट के जन्मदाता त्रिलोचन शास्त्री का निधन गाजियाबाद में नौ दिसंबर 2007 को हुआ था।

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