Nagarjuna Birth Anniversary : हिंदी पुरस्कारों की दृष्टि से कुंवारे थे नागार्जुन, उनके व्यक्तित्व में थी काशी की मस्ती
पं. वैद्यनाथ मिश्र उर्फ नागार्जुन 1938 में बनारस के मोहल्ला अस्सी स्थित मामा के घर आ गए। यहीं उनकी भेंट राहुल सांकृत्यायन से हुई। स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियां से भी वे काशी में रहते ही परिचित हुए। नागार्जुन ने संस्कृत मैथिली हिंदी भाषाओं में रचनाएं कीं।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। पं. वैद्यनाथ मिश्र उर्फ नागार्जुन (जन्म: 30 जून 1911,निधन: 05 नवंबर 1998) हिंदी व मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। बनारस से उनका गहरा संबंध था। नागार्जुन के व्यक्तित्व में काशी की मस्ती थी। उन्हेंं साहित्य अकादमी का सम्मान हिंदी में न मिलकर मैथिली में मिला था। इस पर उनका कहना था कि मैं हिंदी के पुरस्कारों की दृष्टि से 'कुंवारा हूं। बहुरंगी प्रतिभा व व्यक्तित्व के कवि नागार्जुन का मानना था कि काशी साहित्यकारों का तीर्थ है।
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गांव में मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। दरभंगा जिले का तरौनी उनका पैतृक गांव था। नागार्जुन के व्यक्तित्व का विकास जीवन की संघर्षपूर्ण परिस्थितियों से हुआ। कठिन संघर्ष ने उन्हें स्वर्ण के समान दीप्यमान बनाया और मैथिल व हिंदी भाषा के शीर्ष रचनाकारों के श्रेणी में शामिल कराया।
बनारस से था घनिष्ठ संबंध
नागार्जुन 1938 में बनारस के मोहल्ला अस्सी स्थित अपने मामा के घर आ गए। यहीं उनकी भेंट राहुल सांकृत्यायन से हुई। स्वामी सहजानंद के किसान आंदोलन और क्रांतिकारी गतिविधियां से भी वे काशी में रहते ही परिचित हुए। नागार्जुन ने संस्कृत, मैथिली, हिंदी भाषाओं में रचनाएं कीं। उन्होंने हिंदी में साहित्य की दोनों विधाओं काव्य और कथा में महत्वपूर्ण कृतियां दी हैैं। रतिनाथ की चाची, 'बलचनमा, नयी पौध, 'बाबा बटेसरनाथ, 'वरुण के बेटेआदि प्रमुख उपन्यास हैं। वहीं, काव्य संग्रहों में युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आंखें, भस्मांकुर आदि मुख्य हैैं।
सत्ता की मस्ती में भूल गईं बाप को
वरिष्ठ साहित्यकार व हिंदी विभाग, यूपी कालेज के पूर्व अध्यक्ष डा. रामसुधार सिंह ने बताया कि इमरजेंसी के बाद नगर निगम (नगर महापालिका) प्रेक्षागृह में मैंने उन्हें काव्य पाठ पढ़ते देखा व सुना था। छोटा कद, खादी के मटमैले कुर्ता-धोती और खिचड़ी दाढ़ी वाले नागार्जुन ने जब मंच के एक कोने से झूमते हुए पढऩा शुरू किया-'इंदिरा जी, इंदिरा जी क्या हुआ आप को, सत्ता की मस्ती में भूल गईं बाप को तो पूरा हाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा था।
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