Music College in Azamgarh : हरिहरपुर को 400 साल के सफर के बाद मिला संगीत महाविद्यालय का मुकाम
Music College in Azamgarh हरिहरपुर संगीत घराना का गुरुकुल कहे जाने वाले इस गांव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार अगस्त को संगीत महाविद्यालय की नींव रखे जाने की घाेषणा की तो 400 साल के सफर काे पहला पड़ाव मिला।

आजमगढ़, राकेश श्रीवास्तव : Music College in Azamgarh हरिहरपुर संगीत घराना ...। संगीत का गुरुकुल कहे जाने वाले इस गांव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार अगस्त को संगीत महाविद्यालय की नींव रखे जाने की घाेषणा की, तो 400 साल के सफर काे पहला पड़ाव मिला।
इस मुकाम के पीछे कुछ है, तो छोटे से गांव के बच्चे-बड़ों में जाति-धर्म से ऊपर उठ संगीत साधना करने की ललक। यहां सुबह-शाम सारंगी-तबले की जुगलबंदी के बीच घर-घर से निकलने वाले सुर मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आइए जानते हैं, वाराणसी से करीब 106 किमी. और आजमगढ़ से छह किमी. दूर स्थित पांच हजार की आबादी वाला गांव हरिहरपुर घराना के रूप में कैसे हुआ विख्तात ...।
यूं गांव से घराना बन विख्यात हुआ हरिहरपुर
प्रयागराज के हंडिया निवासी ब्राह्मण दो सगे भाई पंडित हरिनाम दास व सरिनाम दास गीत-संगीत की कद्र किए जाने की जानकारी मात्र होने पर घर-बार छोड़ हरिहर गांव में आकर बस गए। उसका शिला भी मिला, जब आजमगढ़ को बसाने वाले आजम शाह के पूर्वजों ने संगीत कला से खुश हो 989 बीघा जमीन दान में दी थी। दोनों भाई गायन-वादन में निपुण, लेकिन सरिनाम के ब्रह्मचर्य होने से हरिनाम का कुनबा बढ़ता गया।
ग्रामीण भी गीत-संगीत के कद्रदान थे, लिहाजा गांव की पहचान कब घराना बन गई पता ही नहीं चला। ब्राह्मण परिवार ने कजरी, ठुमरी, दादरा, होली गीतों को गायन-वादन को सुरों की माला में ऐसे पिरोया कि समूचा गांव संगीत का गुरुकुल बन गया।
इसलिए महाविद्यालय के जरिए सरकार बनी हमसफर
हरिहरपुर की मिट्टी में जन्मे पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र की विश्व पटल पर पहचान है। इनके अलावा राष्ट्रपति अवार्डी पंडित योगेश मिश्र, वीरेंद्र मिश्र, उदय शंकर मिश्र, दुर्गेश मिश्र, हृदय नारायण मिश्र, त्रिपुरारी मिश्र इत्यादि ने अलग-अलग विधाओं में गीत-संगीत काे देश में नई ऊंचाइयां दीं।
इस गांव की कई विभूतियां उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सदस्य हैं, बहुतेरे राष्ट्रीय युवा महोत्सव में गोल्ड मेडल जीतते रहे हैं। 'हरिहरपुर संगीत घराना' के नाम से प्रसिद्ध इस गांव में ब्राह्मण परिवार में बच्चे को पढ़ाई के साथ ही घर में ही संगीत की शिक्षा दी जाती है। बच्चे के पिता और दादा से मिलती यह शिक्षा आगे चलकर गांव का नाम रोशन करती है। सुर-ताल की नर्सरी कहे जाने वाले इस गांव की आबादी करीब पांच हजार है।
कजरी महोत्सव, होली आयोजन सुप्रसिद्ध
1995 से हो रहा यहां तीन दिवसीय कजरी महोत्सव लोकप्रिय है। पंडित छन्नू लाल मिश्र भी शामिल हुए हैं, तो जनप्रतिनिधि, अधिकारियों को महोत्सव का इंतजार रहता है। यूं तो निर्गुण गीत मसाने में खेलें होली दिगंबर, मसाने में खेलें होली पर तो छन्नूलाल मिश्र का एकाधिकार है, लेकिन यहां के दूसरे कलाकारों की भी कजरी, ठुमरी, दादरा, चैता, शास्त्रीय संगीत पर मजबूत पकड़ है। खास बात है कि युवाओं के आगे आने से ‘हरिहरपुर संगीत घराना’ सुर्खियों में है।
युवा कलाकार दे रहे संगीत घराने को नई पहचान : पंडित अजय मिश्र
हरिहरपुर संगीत घराना संस्था के सचिव व सारेगामापा के कोआर्डिनेटर पंडित अजय मिश्र कहते हैं कि संगीत साधना में हमारी कई पीढ़ियां खप गईं। पंडित छन्नू लाल मिश्र के अलावा पंडित बिरजू महराज भी हमारे ही खानदान से हैं। गांव की युवा पीढ़ी पूर्वंजों की विरासत को निस्वार्थ संभाले है, जिसका परिणाम महाविद्यालय के रूप में अब मिला है।
हरिहरपुर संगीत अकादमी में 60 बच्चे गीत-संगीत सीख रहे हैं। विभूतियां इतनी कि हम गिना नहीं पाएंगे। हमारे गांव के पं.रामदास मिश्रा, पं.नौरतन मिश्रा,पं. गिरजा मिश्रा, पं.गुरु सहाय मिश्रा, पं.बुलबुल महाराज, पं.राम अधार मिश्रा, पं.श्यामलाल मिश्रा उर्फ जोखू मिश्रा, प्रो.मनोज मिश्रा इत्यादि की हुनर ही इनकी पहचान है।
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