Lalhi Chhath : संतान की दीर्घायु के लिए माताएं कल रखेंगी ललही छठ का व्रत, जानिए पूजन और व्रत का विधान
भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या ललही छठ मनाने की परंपरा है। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 28 अगस्त (शनिवार) को पड़ रही है । भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अगस्त शुक्रवार को शाम 6.50 बजे लग रही है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। सनातन धर्म में भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी या ललही छठ मनाने की परंपरा है। इस बार भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 28 अगस्त (शनिवार) को पड़ रही है । भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि 27 अगस्त शुक्रवार को शाम 6.50 बजे लग रही है। यह तिथि अगले दिन यानी 28 अगस्त शनिवार को रात्रि 8.55 बजे तक रहेगी। उदया तिथि को मानते हुए महिलाएं शनिवार को ललही छठ का व्रत व पूजन करेंगी।
ललही छठ व्रत पूजन विधि महिलाएं हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के रखती हैं। इस दिन व्रत के दौरान कोई अन्न नहीं खाया जाता है। महुआ की दातुन कर हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में केवल चीजें खाई जाती हैं जो तालाब में पैदा होती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, करमुआ का साग, पसही का चावल आदि। इस व्रत में दूध और उससे बने उत्पाद जैसे दही, गोबर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। हलषष्ठी व्रत में भैंस का दूध, दही और घी के प्रयोग की परंपरा है।
यह है पूजन विधान : व्रती महिलाएं सुबह नित्य क्रिया से निवृत होकर पुत्र की दीघार्यु का संकल्प करें। इसके बाद नए वस्त्र धारण करके गोबर ले आएं। इसके बाद साफ जगह को गोबर के लेप से तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं। इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और रंगीन वस्त्र चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बनें मक्खन से हवन करें। इसके बाद व्रत की कथा का श्रवण करें।
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