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    महारानी अहिल्याबाई ने चलवाया था शिवलिंग और बिल्वपत्र अंकित चांदी का सिक्का, काशी विश्वनाथ धाम में पहली बार मनाई जयंती

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Tue, 31 May 2022 10:16 PM (IST)

    इंदौर की शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर (सन् 1765 ई.-1795 ई.) ने अपने शासन काल में एक चांदी का सिक्का भी चलवाया था। इसकी विशेषता यह कि रुपया तो तत्कालीन परंपरा अनुसार मुगल बादशाह के नाम पर ही फारसी अभिलेख के साथ जारी किया गया है।

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    श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में मंगलवार को महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती धूमधाम से मनाई गई।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी : इंदौर की शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर (सन् 1765 ई.-1795 ई.) ने अपने शासन काल में एक चांदी का सिक्का भी चलवाया था। इसकी विशेषता यह कि रुपया तो तत्कालीन परंपरा अनुसार मुगल बादशाह के नाम पर ही फारसी अभिलेख के साथ जारी किया गया है लेकिन महारानी ने टकसाल चिह्न के रूप में रुपये के अग्रभाग के मध्य में शिवलिंग व किनारे पर बिल्व पत्र की सुंदर आकृतियां अंकित कराई जो उनके परम शिवभक्त होने का जीवंत प्रमाण हैं।

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    काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, कला एवं संस्कृति पुरातत्व विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. विनोद जायसवाल बताते हैं कि यह सिक्का वृंदावन के मंदिर श्रीधाम गोदा विहार स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के संग्रहालय में रखा हुआ है। उन्होंने बताया कि संपूर्ण भारतीय सिक्कों के इतिहास में शिवलिंग के प्रतीक चिह्न को सिक्कों पर प्रथम बार अंकित करने का श्रेय महारानी अहिल्याबाई होल्कर को ही जाता है।

    उन्होंने कहा कि महारानी की गणना आदर्श शासकों में की जाती है। उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा भारत के विभिन्न तीर्थों में अनेक मंदिरों, धर्मशालाओं व अन्नक्षेत्रों का निर्माण कराया। महारानी ने वृंदावन में भी चीरघाट स्थित होल्कर कुंज व मंदिर का निर्माण। उन्होंने मथुरा-वृंदावन मार्ग के मध्य में ''''अहिल्यागंज'''' नाम से एक छोटा गांव बसाया तथा एक बावड़ी का भी निर्माण कराया था, यह गांव और बावड़ी अब भी हैं। यह सभी निर्माण कार्य उस महान महिला की अमर कीर्ति का यशोगान आज भी कर रहे हैं।

    महारानी अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर महारानी के कृतित्व को किया गया याद

    श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में मंगलवार को महारानी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती धूमधाम से मनाई गई। यह पहला अवसर था जब उनकी जयंती पर काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजन-अनुष्ठान किया गया। सुबह दंडी स्वामियों ने धाम परिसर में लगी अहिल्याबाई की प्रतिमा पर माला-फूल अर्पित किया। शाम को अर्चकों ने महारानी की प्रतिमा पर बाबा को चढ़ाया गया चंदन लगाकर सस्वर मंत्रों के बीच पूजन-अर्चन किया। मंदिर प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप लड्डू वितरित किया गया।

    यह पहला मौका है जब महारानी अहिल्याबाई की जयंती पर विश्वनाथ मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना की गई। औरंगजेब द्वारा 1669 में ध्वस्त कराए जाने के बाद महारानी ने ही 1777 में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कराया था। उनके कृतित्व को याद करते हुए श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा महारानी ने दशाश्वमेध घाट के पाश्र्व में ही गुलाबी पत्थरों के संयोजन से एक भव्य घाट का निर्माण कराया, जिसे आज उनके नाम से ही जाना जाता है। भद्रवनी (भदैनी) क्षेत्र के ख्यात लोलार्क कुंड का अधिकांश हिस्सा और पंचक्रोशी यात्रा मार्ग का जीर्णोद्धार भी महारानी ने करवाया था। उन्हें स्मरण करते हुए वक्ताओं ने कहा कि महारानी अहिल्याबाई एक बहादुर, निडर और महान योद्धा थीं। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान प्रजा हित में निरंतर कार्य किया। इस मौके पर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन की ओर से अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी निखलेश कुमार मिश्रा, विशेष कार्याधिकारी उमेश कुमार सिंह आदि मौजूद थे।

    अमित शाह ने किया याद :

    गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर अहिल्याबाई को याद किया। शाह ने लिखा, 'लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का सनातन संस्कृति के संरक्षण में अतुलनीय योगदान है। उन्होंने सोमनाथ से लेकर काशी तक अनेकों मंदिरों का जीर्णोद्धार कर सनातन धर्म की अद्भुत सेवा की। एक प्रजावत्सल शासक के रूप में उन्होंने महिला सशक्तीकरण एवं जनकल्याण के कई उत्तम उदाहरण स्थापित किए। आज उनकी जयंती पर उनके चरणों मेें कोटिश: नमन।