पंचमुंड आसन पर मां तारा का शासन, बंगाल की भवन निर्माण कला का जीवंत उदाहरण
नाटोर (पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के बीच का विस्तृत भू-भाग) के जागीरदारों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक यह सिद्ध स्थान काशी के गरिमामय आध्यात्मिक पीठों में से एक है।
वाराणसी [कुमार अजय] बंगाली टोला की रजगज गली से गुजरते वक्त यदि आपके पास सटीक जानकारी व ठीक-ठीक पता-ठिकाना न हो तो आप कदापि नहीं जान पाएंगे कि रामरज से पुति जिस इमारत के आगे से आप सिर झुकाए आगे निकल आए हैं उसकी बौनी सी केवाड़ी के पीछे सिद्धपीठ की मान्यता प्राप्त ताराबाड़ी मौन खड़ी हैं। जिसके आभा मंडल के आगे शक्ति साधना के बड़े-बड़े केंद्र भी नतमस्तक हैं। नाटोर (पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के बीच का विस्तृत भू-भाग) के जागीरदारों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक यह सिद्ध स्थान काशी के गरिमामय आध्यात्मिक पीठों में से एक है। किंतु गौरवशाली इतिहास और प्राचीन वैभव के बाद भी प्रचार- प्रसार की अन्यमनस्कता और संकोच के चलते अभी काशी के ही बहुत से लोग इसके अस्तित्व व प्रभामंडल से अनभिज्ञ हैं।
सिद्धपीठ के बारे में अब तक उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार इसकी प्राण प्रतिष्ठा 17वीं शताब्दी के मध्यकाल (लगभग 1752) के आसपास की है, जब काशी में नाटोर राज परिवार की धर्मप्राण मुखिया रानी भवानी की धर्मप्रियता और औदार्य का डंका बज रहा था। धर्मप्राण राजमाता ने 365 दिनों के काशी प्रवास में मंदिर धर्मशाला कुंड सरोवरों व भवनों के लिए 365 भुखंड दान किए। प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर, दुर्गाकुंड तालाब, पुष्कर तालाब, कुरूक्षेत्र तालाब, ओंकारेश्वर मंदिर, लाट भैरव व रामेश्वर तीर्थ सहित कुल 380 देवालय, सरोवर और धर्मशालाएं आज भी रानी मां के यश-कीर्ति की गाथाएं सुना रही हैं।
बाहर से बंगीय शैली के किसी आवासीय भवन का आभास देने वाली सिद्धपीठ की छोटी सी दुआरी के पीछे पसरी विशाल अंगनाई के अलग -अलग कोणों पर देवी दुर्गा, देवी विशालाक्षी के अलावा गोपाल जी व राधा-कृष्ण के विग्रह स्थापित हैं। मंदिर के दक्षिणी छोर के दूसरे आंगन स्थित देव मंडप में मां तारा पंचमुंड आसन पर विराजमान हैं। मां तारा की सिद्ध शक्तियों के साथ शिल्पकारों ने प्रतिमा के मुखमंडल पर रौद्र भाव उकेरने में अपनी कला को किस ऊंचाई तक पहुंचाया है इसका अनुभव उसी को हो सकता है जिसकी आंखें दर्शन के समय मां के मुखमंडल पर चमत्कारिक आभा के चलते टिक ही न सकी हो। तारा मंदिर के पाश्र्व में ही रौद्र स्वरूपा मां कालिका का मंडप भी दर्शनीय है।
तय है ताराबाड़ी के विधि-अनुष्ठान
मंदिर के प्रबंध व्यवस्थापक श्यामा प्रसाद कुंडु बताते हैं कि पीठ के सभी अनुष्ठान और उनकी तिथियां पारंपरिक रूप से पहले से निर्धारित हैं। दीपावली और शारदीय नवरात्र की निशा-पूजाएं मंदिर के वार्षिक अनुष्ठानों में शामिल हैं। दोनों अवसर पर बाड़ी में उत्सवी माहौल दिखाई पड़ता है। इसके अलावा मास की हर अमावस्या को देवियों को तंत्र पूजाएं समर्पित की जाती हैं।
कैसे पहुंचें मां के द्वार
काशी के बंगीय समाज में ताराबाड़ी के प्रताप और प्रभाव की महत्ता पहले से ही स्थापित है। बाहर से आने वाले तीर्थयात्री खासकर पश्चिम बंगाल और असम के श्रद्धालु काशी आने पर जरूर ही ताराबाड़ी की चौखट पर मत्था टेकते हैं। इस दिव्य आध्यात्मिक केंद्र तक पहुंचने के लिए आप दशाश्वमेध से बंगाली टोला होते हुए केदार घाट तक जाने वाली गली का उपयोग कर सकते हैं। मंदिर की व्यवस्थाएं रानी भवानी इंडाउमेंट ट्रस्ट की ओर से संचालित हैं।
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