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    स्वामी विवेकानंद के नाम से जाना जाएगा वाराणसी का एलटी कालेज परिसर, प्रशासन की ओर से शासन को भेजा जाएगा प्रस्ताव

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Sun, 22 Aug 2021 08:30 AM (IST)

    अर्दली बाजार स्थित कालेज आफ टीचर एजुकेशन (सीटीई) यानी एलटी कालेज परिसर जल्द ही विवेकानंद के नाम से जाना जाएगा। कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने परिसर का चार दिन पहले निरीक्षण किया। राजकीय लाइब्रेरी के नए भवन में मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के तहत निश्शुल्क कोचिंग संचालन का निर्देश दिया।

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    अर्दली बाजार स्थित कालेज आफ टीचर एजुकेशन (सीटीई) यानी एलटी कालेज परिसर जल्द ही विवेकानंद के नाम से जाना जाएगा।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। अर्दली बाजार स्थित कालेज आफ टीचर एजुकेशन (सीटीई) यानी एलटी कालेज परिसर जल्द ही विवेकानंद के नाम से जाना जाएगा। कमिश्नर दीपक अग्रवाल ने परिसर का चार दिन पहले निरीक्षण किया। राजकीय लाइब्रेरी के नए भवन में मुख्यमंत्री अभ्युदय योजना के तहत निश्शुल्क कोचिंग संचालन का निर्देश दिया। कहा कि स्वामी विवेकानंद के नाम पर इस परिसर का नाम रखा जाएगा। इसके लिए शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा। राजकीय लाइब्रेरी का भी नाम ‘स्वामी विवेकानंद राजकीय माडल लाइब्रेरी’ देने का प्रस्ताव तैयार हो रहा है। अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही हरी झंडी मिल जाएगी। संभवतः विधानसभा चुनाव के पहले इसकी घोषणा की जा सकती है।

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    दरअसल, इस परिसर से स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है, वह कई बार यहां आए तो जीवन के अंतिम वर्षों में यहां ही स्वास्थ्य लाभ के लिए भी प्रवास किया। संदर्भ इतिहास के पन्नों में दर्ज है। झाड़-झंखाड़ के बीच परिसर स्थित खंडहरनुमा भवन भी इसका गवाह है। कभी गोपाल लाल विला के नाम से इसकी पहचान थी। परिसर को हेरिटेज घोषित करने की मांग भी सामाजिक संगठनों की ओर से की गई। परिसर को स्वामी विवेकानंद का नाम देने को लेकर भी लंबे समय से आवाज उठती रही है। प्रशासन ने अब इसकी सुधि ले ली है। इसका प्रस्ताव शासन को भेजने की तैयारी है। स्वामी विवेकानंद के नाम पर किसी को कोई परेशानी भी नहीं। अगर ऐसा होता है तो काशी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

    विवेकानंद एक माह इस परिसर में किए प्रवास, निवेदिता को लिखा पत्र

    स्वामी विवेकानंद ने बनारस की अंतिम यात्रा 1902 में की थी। उस दौरान बीमार थे। वह अर्दली बाजार स्थित गोपाल लाल विला ( एलटी कालेज परिसर) में ठहरे व एक महीने तक प्रवास किए। चार मार्च, 1902 को इसी परिसर से सिस्टर निवेदिता को भेजे पत्र में लिखा कि मुझे सांस में अभी भी काफी तकलीफ है। इस परिसर में आम, अमरूद के बड़े-बड़े पेड़ हैं, गुलाब का खूबसूरत बगीचा है और तालाब में सुंदर कमल खिले रहते हैं। ये जगह मेरे स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यहां से कुछ मील दूर बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ भी है। (पत्रावली नामक किताब में यह तथ्य प्रकाशित है)। लगभग तीन एकड़ में फैले इस परिसर की सुंदरता की उन्होंने जमकर तारीफ की है। गोपाल लाल विला यानी स्वामी जी दो मंजिला प्रवास स्थल अब पूरी तरह खंडहर में तब्दील है। परिसर में इस वक्त शिक्षा विभाग का जिला विद्यालय निरीक्षक, संयुक्त शिक्षा निदेशक और सीईटी कालेज, प्राथमिक विद्यालय, राजकीय लाइब्रेरी है लेकिन परिसर में साफ सफाई का कोई इंतजाम नहीं है।

    जयंती व पुण्यतिथि पर जलते दीप

    स्वामी विवेकानंद के प्रवास स्थल पर आज भी कुछ सामाजिक संगठन के लोग जयंती व पुण्यतिथि पर जाकर दीप जलाते हैं। याद करते हैं। इस स्थल को पर्यटन की दृष्टि से यादगार बनाने की आवाज उठाते हैं लेकिन शासन सुधि नहीं लेता।

    स्वामी जी का काशी से जन्म से नाता.. पांच बार आए काशी

    स्वामी विवेकानंद का काशी से जन्म से नाता है। स्वामी निखिलानंद जी ने अपनी किताब में लिखा है कि स्वामी जी की मां भुवनेश्वरी देवी ने एक रात स्वप्न में भोले शंकर को ध्यान करते देखा। संतान को लेकर बहुत परेशान थीं। स्वप्न की बात उन्होंने एक महिला रिश्तेदार से बताई। इसके बाद विवेकानंद की मां व पिता विश्वनाथ दत्त काशी आए और सूतटोला स्थित वीरेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की, मन्नत मांगी। बताते हैं कि कुछ दिनों बाद यहां से जब इनकी मां कोलकाता गई तो विवेकानंद, गर्भ में थे। 12 जनवरी, 1863 जन्म विवेकानंद का जन्म हुआ तो मां ने उनका बचपन का नाम वीरेश्वर रखा। बाद नरेंद्रनाथ रखा। बाद विवेकानंद से दुनिया में पहचान हुई। स्वामी जी पांच बार काशी आए। जब यहां स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ तो बेलूर मठ चल गए। चार जुलाई, 1902 को महामानव विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। 39 वर्ष पांच माह और 24 दिन की आयु में उन्होंने शरीर त्याग दिया।

     

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