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    Premchand Manuscript: वाराणसी में प्रेमचंद की सालों पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियां मिलीं, जिनमें छिपा है इतिहास का सच

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 10:44 PM (IST)

    वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा में मुंशी प्रेमचंद की दो हस्तलिखित कहानियाँ मिली हैं - पंच परमेश्वर और ईश्वरीय न्याय। ये पांडुलिपियाँ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मिलीं और माना जा रहा है कि ये आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी को भेजी गई थीं। सभा इनका जीर्णोद्धार करा रही है और अन्य हस्तलेखों की खोज भी जारी है। वाराणसी समाचार में यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई है।

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    नागरी प्रचारिणी सभा के अभिलेखों में मिली मुंशी प्रेमचंद की हस्तलिखित पांडुलिपियां

    शैलेश अस्थाना, वाराणसी। इतिहास की उपेक्षित गर्त में कभी-कभी ऐसी अनमोल धरोहरें हाथ लग जाती हैं जो हमारे लिए गर्व और कौतूहल का विषय बन जाती हैं। ठीक उसी तरह, इन दिनों नागरी प्रचारिणी सभा में चल रही उपेक्षित एवं तिरस्कृत पड़े अभिलेखों के एकत्रीकरण और छंटनी के दौरान सभा के पदाधिकारियों के हाथों लगीं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की दो प्रसिद्ध कहानियों की हस्तलिखित पांडुलिपियां। जिन्हें देख सभा के लोग भी विस्मित रह गए।

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    पांडुलिपियां काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थीं, लेकिन उन्हें देखकर पढ़ते ही पहचान लिया गया कि ये मुंशी प्रेमचंद की हस्तलिखित पांडुलिपियां हैं जो उन्होंने हिंदी की कालजयी पत्रिका ‘सरस्वती’ के संपादक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी को पिछली सदी के आरंभिक दो दशकों में प्रकाशन के लिए भेजी थीं। इन पांडुलिपियों पर आचार्य द्विवेदी द्वारा किए गए संपादन के चिह्न भी अंकित हैं।

    नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री, साहित्यकार व्योमेश शुक्ल ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद के ऐसे दो हस्तलेख हमें मिले हैं। पहला हस्तलेख उनकी प्रसिद्ध कहानी ‘पंच परमेश्वर’ का है जो अधूरा है और चार पृष्ठों में है। दूसरा हस्तलेख 41 पृष्ठों का है, इसमें उनके द्वारा लिखित कहानी ‘ईश्वरीय न्याय’ पूरी तरह से सुरक्षित है।

    ये दोनों ही कहानियां हिंदी में उनकी आरंभिक कहानियों में से हैं। इन हस्तलिखित पांडुलिपियों का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है ताकि उन्हें लंबे समय तक हिंद साहित्य प्रेमियों और साहित्य साधकों के लिए सुरक्षित रखा जा सके। इसके साथ ही सभा के विपुल कोष में से प्रेमचंद की कुछ अन्य कहानियों और पत्रों के भी हस्तलेख भी ढूंढ़े जा रहे हैं। संभव है कि हमें और भी कुछ मिल जाए।