20 जुलाई से 118 दिन तक विश्राम करेंगे भगवान विष्णु, चार माह तक सृष्टि के पालनहार होंगे भगवान शिव
आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास माना जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि 19 जुलाई को शाम 658 बजे लग रही है। जो 20 जुलाई को शाम 430 मिनट तक रहेगी। चातुर्मास में सभी शुभ कार्य निषेध होते हैं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। इस वर्ष चातुर्मास 20 जुलाई यानी देवशयनी एकादशी से प्रारंभ हो रहा है। इसका समापन 15 नवंबर को देवउठनी एकादशी के साथ होगा। इस दौरान 118 दिन तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे। तो सृष्टि के पालनहार भगवान शिव होंगे। चातुर्मास में सभी शुभ कार्य निषेध होते हैं। देवउठनी एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत फिर से हो जाती है।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सनातन धर्म में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास माना जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि 19 जुलाई को शाम 6:58 बजे लग रही है। जो 20 जुलाई को शाम 4:30 मिनट तक रहेगी। देखा जाए तो चातुर्मास में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक भगवान श्री हरि क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। गंगा स्नान के साथ ही चातुर्मास का व्रत का विधान करने से सभी तरह के पापों का नाश और भगवान विष्णु के आशीर्वाद से व्रतीजनों को बैकुंठ में स्थान मिलता है। इसके साथ ही सभी तरह के पापों का नाश और अमोघ पुण्य की प्राप्ति होती है।
चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने अनुसार चातुर्मास के धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इन दिनों बारिश होने से हवा में नमी बढ़ जाती है। इस कारण बैक्टीरिया और कीड़े-मकौड़े ज्यादा हो जाते हैं। इस कारण संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा अधिक रहता है। इससे बचने के लिए संतुलन खान-पान का सेवन करना चाहिए।
यह मांगलिक कार्य रहेंगे निषेध
इन चार महीनों के दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, मुंडन कार्य निषेध हो जाएंगे। इसके अलावा नूतन गृहप्रवेश, विशिष्ट यज्ञ का आरंभ भी निषेध है। हालांकि नित्य पूजन-अर्चन का कार्य विधानानुसार किया जाएगा। यह चार माह स्वाध्याय, मनन, चिंतन और आत्मावलोकन का समय है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
इस दिन मंदिर और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्यक्ति के सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में इस एकादशी की महत्ता को बताया गया है। अत: इस व्रत को जरूर करना चाहिए।
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