कैफी आजमी पुण्यतिथि : ले चलते हैं आपको कैफी के गांव मेजवा में जहां उनकी यादें आज भी हैं जीवंत
Kaifi Azmi death anniversary ...आइए ले चलते हैं आपको कैफी के गांव मेजवा में जहां उनकी यादें आज भी हैं जीवंत जहां पर कैफियत आज भी गुलजार है। जहां मेजवां फाउंडेशन कैफी की यादवों को सहेज कर रख रहा है।

आजमगढ़, जागरण संवाददाता। कैफी साहब के दुनिया को अलविदा कहेे करीब दो दशक बीत गए...। वर्ष 2002 की मनहूस तारीख 10 मई का समय-दर-समय बीतते वक्त का अंतराल लंबा हो चला, लेकिन कण-कण में बसी उनकी यादें मेजवां वासियों के जेहन में रंच मात्र भी कमजोर नहीं पड़ी हैं।
उनके गांव व आशियाना फतेह मंजिल में ‘मैं ढूंढ़ता हूं जिसे वो जहां नहीं मिलता, नई जमीं नया आसमां नहीं मिलता’ सरीखी रचनाएं जीवंत मिलती हैं। उन्होंने अपनी सोच मुताबिक कला, सेवा को सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप इस्तेमाल कर अपने गांव मेजवां को विश्व पटल पर ख्याति दी, जिसे उनकी बेटी पूर्व राज्यसभा सदस्य एवं सिने स्टार शबाना आजमी समाजसेवा की संजीवनी दे रही हैं। कोरोना काल में जरूरतमंदों की मदद करनी हो या फिर आधी आबादी काे आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत, मेजवां वेलफेयर सोसायटी के सामाजिक सरोकार से जुड़ी गतिविधियां मरहूम कैफी साहब की सोच को मंजिल की ओर बदस्तूर है।
कैफी एक शख्सियत नहीं आंदोलन थे : निजामाबाद निवासी 79 वर्षीय हरिमंदिर पांडेय कैफी आजमी के करीबी साथी रहे। बताते हैं कि विभिन्न आंदोलनों में 25 वर्ष तक उनके साथ रहे। कहते हैं कि 1974 में पटना में एंटी फासिस्ट इंटरनेशनल कांफ्रेंस में कैफी की बातों से प्रभावित हुआ था। फिर क्या जिले में बड़ी रेल लाइन को लेकर हुए आंदोलन मेें उनके साथ रहा, लाठियां खाईं लेकिन मांग पूरी होने पर ही विरोध थमा। कहा कि जब भी मुंबई जाते तो कैफी से जरूर मिलते थे।
11 वर्ष में लिख डाली पहली गजल : कैफी आजमी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। फूलपुर तहसील के मेजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को जन्म हुआ था। विलक्षण प्रतिभा के कारण 11 साल की उम्र में पहली गजल ‘इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े हंसने से हो सुकून, न रोने से कल पड़े जिस तरह हंस रहा हूं, मैं पी-पी के अश्क-ए-गम, यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े’ पढ़ी थी।
साहित्य व शिक्षा में योगदान को पद्मश्री सम्मान : कैफी आजमी का नाम उर्दू के महान शायरों में शामिल था। हालांकि हिंदी फिल्म में कई गीत लिख फिल्म जगत में नाम कमाए। रचनाओं के लिए भारत सरकार ने कई तरह के साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित भी किया। फिल्म हीर-रांझा के संवाद के लिए फिल्म फेयर अवार्ड के साथ ही 1974 में साहित्य और शिक्षा में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किए गए।
...और एक गीत से हिट हो गई ‘हकीकत’ : फिल्मों में मौका 1951 में फिल्म बुजदिल से मिला। 1964 में आई फिल्म ‘हकीकत’ को कैफी आजमी के लिखे गीत ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ की वजह से हिट रही। उनकी गीत आज भी देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर देती है। कागज के फूल, शमा, शोला और शबनम, अनुपमा इत्यादि फिल्मों के गाने बहुत मशहूर हुए।
रचनाओं में झलकती है गांव की गरीबी : कैफी की रचनाओं में गांव की गरीबी की पीड़ा झलकती है। 1947 में शौकत के साथ शादी के बंधन में बंध गए। शबाना आजमी और बाबा आजमी का जन्म हुआ। उसके बाद 83 साल, तीन माह, 26 दिन की उम्र में 10 मई 2002 को दुनिया से रुखसत हो गए।
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