UNESCO City Of Music Varanasi ने स्वर कोकिला लता मंगेशकर को दी श्रद्धांजलि
Lata Mangeshkar Latest News क्रिएटिव सिटी नेटवर्क में बतौर सिटी आफ म्यूजिक के तौर पर शामिल वाराणसी शहर में भारत रत्न लता मंगेशकर को श्रद्धांंजलि अर्पित की। भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन पर नमामि गंगे के सदस्यों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। यूनेस्को के क्रिएटिव सिटी नेटवर्क में बतौर सिटी आफ म्यूजिक के तौर पर शामिल वाराणसी शहर में भारत रत्न लता मंगेशकर को श्रद्धांंजलि अर्पित की। पंडित छन्नू लाल मिश्र ने कहा कि आज मैंने सुना तो इतना दुःख हुआ कि मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता। वे मुझे बहुत मानती थी। मैं मुंबई जब उनके। घर गया तब हाथ पकड़कर अंदर ले गईं। देखा कि कोने में दो तानपूरा रखा था। वहां अगरबत्ती जल रही थी। माहौल संगीत का लगता था। उनकी आवाज के बहुत कम मिलेंगे। गाते तो सभी अच्छे हैं। गाते तो सभी लोग हैं लेकिन लता जी की आवाज में जो सुरीलापन था, वह बहुत कम लोगों में मिलेगा। ऐसी गायिका बहुत कम पैदा होती हैं। सूरज जुदा-जुदा है , खुशबू है न्यारी-न्यारी। गाते तो सभी अच्छा हैं। लेकिन लता जी की आवाज जो ओज था। मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ।
वो तो विश्व रत्न थींः उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री डा. राजेश्वर आचार्य ने कहा कि यही कोई वर्ष 1950 या 51 रहा होगा जब लता मंगेशकर जी बनारस आई थीं। लक्सा में मजदा सिनेमा हाल के सामने तब खाली जमीन हुआ करती थी, वहां ही कोई कार्यक्रम था। बस, इतना ही याद आता है लेकिन उन्हें सुन लीजिए तो लगती है जैसे कितना पुराना और कितना प्रगाढ़ नाता है। उन्हें भारत रत्न मिला, लेकिन अपनी गायकी से वे महारत्न थीं। उन्हें विश्व रत्न कहा जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की खोज की जाए तो संभवतः लता जी पहली सीढ़ी होंगी। धर्म-जाति, भाषा से परे ममत्व की अभिलाषा। संगीत कला की अधिष्ठात्री माता सरस्वती की साधिका वसन्त पंचमी पर ही चली गईं। शायद जाना कहना ठीक न होगा, वे सुरों में सदा जीवित रहेंगी। आहत नाद की अनन्य उपासिका अनाहत नाद में चली गईं। हम सब आहत हैं। उनकी आवाज सुनकर स्वर्ग की आवाज प्रतीत होती थी, ममत्व, अपनत्व व मानवता की प्रतिमूर्ती खुद स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गईं। उन्हें काशीवासियों की ओर से, संगीत जगत की ओर से श्रद्धांजलि।
संगीत के एक युग का अंत हो गया : लता मंगेशकर के जाने से एक युग का अंत हो गया। वे ऐसी गायिका थीं जिन्हें शास्त्रीय व लाइट म्यूजिक वाले दोनों पसन्द करते थे। उन्होंने पंडित भीमसेन जोशी व राजन- साजन के साथ भी गायन किया। शादियों के अन्तराल के बाद ऐसे कलाकार जन्म लेते हैं। युवा कलाकारों के लिए लता जी एक आदर्श हैं। -प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र, महंत संकट मोचन मंदिर।
गंगा में श्रद्धासुमन समर्पित : भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन पर नमामि गंगे के सदस्यों ने संयोजक राजेश शुक्ला के नेतृत्व में पांच नदियों के संगम पंचगंगा घाट पर हाथों में गंगा जल लेकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान गहरा शोक जताया और श्रद्धा सुमन अर्पित कर मां गंगा से स्वर कोकिला के लिए मोक्ष की कामना की। संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि भारत रत्न लता जी ने 36 भारतीय भाषाओं में अपने स्वर को दिया है। हजारों हिन्दी गीतों को आवाज देने वाली लता दीदी को 1989 मे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार तथा 2001 मे भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया था। लता जी के निधन से भारतीय संगीत के एक युग का अन्त हो गया। कहा कि लता जी भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की संस्कृति और साहित्य कला के जननी के रूप में स्थापित थी। अतुल्यनीय देशप्रेम, मधुर वाणी और शौमयता से वो सदैव हमारे बीच रहेंगी।
बाबा विश्वनाथ जी और मां गंगा से प्रार्थना है कि आपकी आत्मा को मोक्ष व शिव सायुज्य प्राप्त हो। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में प्रमुख रूप से नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला, महानगर सहसंयोजक शिवम अग्रहरी, महानगर सहसंयोजक रामप्रकाश जायसवाल, सीमा चौधरी, सत्यम जायसवाल मौजूद रहे।
भारतीय संगीत के एक युग का अंत : भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन से सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय परिवार मे शोक की लहर दौड़ गई है। विश्वविद्यालय के शिक्षकों व कर्मियों ने शोक संवेदना व्यक्त की। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि आज भारत रत्न स्वर कोकिला लता मंगेशकर का 92 साल की उम्र में मुम्बई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया, निधन की सूचना से स्तब्ध और मर्माहत हूं।
कुलपति प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भारत रत्न लताजी ने 36 भारतीय भाषाओं में अपने स्वर को दिया है,1000 से अधिक हिन्दी गीतों को आवाज देने वाली लता दीदी को 1989 मे दादा साहेब फाल्के पुरस्कार तथा 2001 मे भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया था। उनके निधन से भारतीय संगीत के एक युग का अन्त हो गया। भारतीय संस्कृति और साहित्य कला के जननी के रूप में स्थापित थी। बाबा विश्वनाथ उनकी आत्मा को शिव सायुज्य प्रदान करें। उनके निधन से भारतीय संगीत जगत को अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी निकट भविष्य में भरपाई संभव नहीं है। शोक व्यक्त करने वालों विश्वविद्यालय परिवार सहित निदेशक प्रकाशन डॉ. पद्माकर मिश्र, प्रो. रमेश प्रसाद, जनसम्पर्क अधिकारी शशींद्र मिश्र आदि प्रमुख थे।
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