Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    नौ सोपानों के शीर्ष पर विराजती ललित कलाओं की देवी ललिता के नाम समर्पित है दक्षिण भारत की नवरात्रि पूजा

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 07 Oct 2019 05:30 PM (IST)

    दुर्गाकुंड मोड़ पर सजे पूजा पंडाल में दर्शन करके निकलते वक्त पड़ोस की मानस मंदिर कालोनी में राग मालकौंस पर आधारित भजन से गूंजते सुनकर बरबस ही कदम वहीं ...और पढ़ें

    Hero Image
    नौ सोपानों के शीर्ष पर विराजती ललित कलाओं की देवी ललिता के नाम समर्पित है दक्षिण भारत की नवरात्रि पूजा

    वाराणसी [कुमार अजय]। दुर्गाकुंड मोड़ पर सजे पूजा पंडाल में दर्शन करके निकलते वक्त पड़ोस की मानस मंदिर कालोनी में राग मालकौंस पर आधारित भजन से गूंजते सुनकर बरबस ही कदम वहीं ठिठक जाते हैं। कालोनी के गार्ड से जब पता चलता है कि फ्लैट नंबर 7-10 में आयोजित दक्षिण भारतीय नवरात्रि पूजा की भजन गोष्ठी है इस सुर वर्षा का केंद्र तो सहज जिज्ञासावश हम भी फ्लैट की ओर बढ़ते चले जाते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आहट के बाद फ्लैट का दरवाजा खुलने पर बड़ी ही प्रसन्नता के साथ स्वागत मिलता है फ्लैट के स्वामी डा. आरके गणेशन व उनकी धर्मपत्नी भारती गणेशन का। यह तमिलभाषी परिवार महालया के बाद से ही दाक्षिणात्य परंपरा के अनुसार घट व कोलू (खिलौने) से सजे मंत्राभिषिक्त नौ सोपानों के शीर्ष पर विराज रहीं ललित कलाओं की देवी राजराजेश्वरी श्री ललिता के ललित स्वरूप को भावांजलियां चढ़ा रहा है। जीवन के नौ रसों के प्रतीक गन्ना (ईंख) को परशुपाश के साथ धारण करने वाली देवी के दरबार को ललित कला के विविध विधाओं की प्रस्तुतियों से मंगलमय बना रहा है। 

    लगभग दो सौ वर्षों पूर्व स्वाध्याय के लिए काशी आये सहज सरल तमिल कुटुंब की पांचवी पीढ़ी के प्रतिनिधि डा. गणेशन हमें मिलवाते हैं देवी दरबार में भजनों की स्वरांजलि अर्पित कर रहे प्रख्यात सुगम संगीत गायक भाई युगल किशोर से जो गणेशन जी के आमंत्रण पर सपत्नीक देवी दर्शन के लिए आए हैं और रस्म के मुताबिक मधुर भजनों की लडिय़ों से देवी का दरबार सजाए हुए हैं। दक्षिण भारत के नवरात्र पूजन परंपरा के अनुष्ठानों व लोकाचारों का परिचय देते हुए भारत कला भवन वाले डा. गणेशन बताते हैं 'लघु भारत काशी के हनुमान घाट क्षेत्र में बसी दक्षिण भारतीयों की बस्ती में यह पर्व खिलौनों की झांकी वाले सृजनात्मक पर्व के रूप में मशहूर है और घर-घर में मनाया जाता है खासकर बच्चे व किशोर अपनी कल्पना को जमीन पर उतारते हैं। इस मौके पर देवी की आभा से मंडित नौ सीढिय़ों को जन्माष्टमी की तरह खिलौनों से सजाते हैं। सीढिय़ों पर विराज रही राजराजेश्वरी को ललित कलाओं की विविध विधा की प्रस्तुतियों से रिझाते हैं। 

    डा. गणेशन की अद्र्धांगिनी भारती गणेशन बताती हैं इन खिलौनों में देव छवियों के अलावा जीवन के संस्कारों व लोकाचारी सरोकारों को अभिव्यक्ति देने वाले खिलौनों की भी सज्जा की जाती है। गायन, वादन, नृत्य, चित्रकला, अभिनय के अलावा रंगोलियों की सज्जा के रूप में कला की सभी विधाएं यहां देवी के चरणों में समर्पित हैं। बताती हैं श्रीमती गणेशन 'दक्षिण में यह आयोजन मुख्यत: महिला प्रधान है। इसमें सुहागिन महिलाओं व किशोरियों को बाकायदा आमंत्रण देकर मंडप में बुलाया जाता है, उनकी प्रस्तुतियों के अभिनंदन के साथ उन्हें उपहार भेंट कर उनका आर्शीवाद पाया जाता है। इस दक्षिण भारतीय उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान संपन्न होता है नवरात्र की नवमी तिथि को जिसे सरस्वती नवमी के नाम से पूजा जाता है। बच्चों को विद्यारंभ के संस्कार में दीक्षित कर अध्ययन की मुख्यधारा में लाया जाता है।