Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    प्रकृति का ज्ञान बचा सकता है आपकी जान, भोजन से होता फायदा तो कभी नुकसान

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Sun, 02 Dec 2018 07:10 AM (IST)

    कहते हैं अच्‍छी सेहत हजार नियामत, सभी का भोजन एक साथ बनता है फिर भी किसी को वही भोजन फायदा पहुंचाता है और किसी को नुकसान, कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है?

    प्रकृति का ज्ञान बचा सकता है आपकी जान, भोजन से होता फायदा तो कभी नुकसान

    वाराणसी [वंदना सिंह] । अक्सर हम देखते हैं कि एक ही परिवार के लोगों की बनावट अलग अलग होती है और उनकी पसंद ना-पसंद भी अलग होती है। मगर सभी का भोजन एक साथ बनता है फिर भी किसी को वही भोजन फायदा पहुंचाता है और किसी को नुकसान। कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार ने बताया की शारीरिक संरचना, खानपान की पसंद और प्रकृति के मामले में हर इंसान अपने आप में अलग होता है। एक ही परिवार के अलग-अलग सदस्यों में ऐसी विविधताएं अक्सर नजर आती हैं। यह होता है उनकी प्रकृति के अलग होने के कारण। चिकित्सा विज्ञान की विभिन्न शाखाएं इस बात पर जोर देती हैं कि हमारा आहार शरीर की बुनियादी संरचना के मुताबिक होना चाहिए। इस बात को तार्किक रूप से स्पष्ट करता है आयुर्वेद में मौजूद त्रिदोष सिद्धांत। आयुर्वेद के इस आधारभूत दर्शन के मुताबिक वात, पित्त, कफ त्रिदोष हैं। आयुर्वेद के महान आचार्य चरक, सुश्रुत आदि के अनुसार त्रिदोष मानव शरीर की उत्पत्ति के कारक भी हैं।

    कैसे जाने अपनी प्रकृति : दोष जब संतुलित अवस्था में रहते हैं तब वे अच्छी सेहत का आधार बनते हैं। अगर उसका क्रम बिगड़े यानी शरीर में उनकी मात्रा में असंतुलन हो तो शरीर रोगग्रस्त हो जाएगा। शरीर में इनका अनुपात कम-ज्यादा होने पर रोग उत्पन्न होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि हमारे शरीर का पोषण उसकी वात, पित्त या कफ प्रकृति को ध्यान में रख कर किया जाए, तभी हम स्वस्थ रह सकते हैं। त्रिदोष असंतुलन की स्थिति में वात बढऩे से 80, पित्त से 40 और कफ से 20 किस्म की बीमारियां हो सकती हैं।

    वात प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण : वात प्रकृति वाले व्यक्ति का शरीर प्राय: रूखा, दुबला-पतला होता है। इस प्रकृति के लोग अक्सर सांवले या डार्क कांप्लेक्शन के होते हैं। इनकी त्वचा रूखी एवं ठंडी होती है। पैरों, हाथ की त्वचा और होंठ फटते हैं। उनमें दरारें आ जाती हैं, अंग सख्त व शरीर पर उभरी हुई बहुत सी नसें होती हैं । इस प्रकृति के लोगों के बाल रूखे, कड़े, छोटे और कम होते है। इनके अंगुलियों के नाखून रूखे और खुरदरे होते हैं। आवाज कर्कश व भारी, गंभीरता रहित स्वर, अधिक बोलने वाले होते हैं। मुंह सूखता रहता है। मुंह का स्वाद फीका या खराब मालूम होता है। भूख कभी ज्यादा कभी कम लगती है। पाचन क्रिया कभी ठीक रहती है तो कभी कब्ज हो जाती है। विषम अग्नि के कारण वायु बहुत बनती है। मल रूखा, झाग मिला, टूटा हुआ, कम व सख्त, कब्ज की प्रवृत्ति अधिक होती है। नींद कम आती है, ज्यादा जम्हाइयां आती रहती हैं। सोते समय इनके दांत किटकिटाते हैं। स्वप्न में आकाश में उडऩे के सपने अधिक देखते हैं। हालांकि ये लोग तेज चलते हैं। सर्दी इन्हें अच्छी नहीं लगती और ठंडी चीजें पसंद नहीं करते। गर्म वस्तुओं की इच्छा अधिक होती है। मीठे, खट्टे, नमकीन पदार्थ विशेष प्रिय लगते हैं। 

    पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण : इस प्रकृति के व्यक्ति का शरीर नाजुक होता है। इन्हें गर्मी सहन नहीं होती। इनकी त्वचा पीली एवं नर्म होती है और फुंसियों और तिलों से भरी हुई होती है। बालों का छोटी उम्र में सफेद होना व झडऩा, रोएं बहुत कम होना इस प्रकृति के विशेष लक्षण हैं। इन लोगों के नाखून, आंखें एवं जीभ लाल होते हैं। आवाज स्पष्ट औरा श्रेष्ठ वक्ता होते हैं। इनका गला अधिक सूखता है और मुंह का स्वाद कड़वा रहना, कभी-कभी खट्टा होना, मुंह व जीभ में छाले आदि अधिक होते हैं। भूख अधिक लगती है और पाचन शक्ति अच्छी होती है। प्यास अधिक लगती है। मल अधिक पतला व पीला होता है। जलनयुक्त होता है दस्त की प्रवृत्ति होती है। नींद ठीक से नहीं आती। स्वप्न में अग्नि, सोना, बिजली, तारा, सूर्य, चंद्रमा आदि चमकीले चीजों को अक्सर देखते हैं। इन्हें गर्म प्रकृति वाली चीजें, धूप व आग अच्छी नहीं लगती। शीतल वस्तुएं जैसे ठंडा जल, बर्फ, ठंडे जल से स्नान, फूलमाला आदि प्रिय लगते हैं। कसैले, चटपटे और मीठे पदार्थ पसंद आते हैं। 

    कफ प्रकृति व्यक्ति के लक्षण : इस प्रकृति के व्यक्ति का सुडौल, चिकना, मोटा शरीर होता है। इनका वर्ण गोरा और त्वचा चिकनी, पानी से गीली हुई सी नम होती है। बाल घने, घुंघराले होते हैं। नाखून चिकनी होती हैं। मधुर बोलने वाला होते हैं। मुंह या नाक से बलगम अधिक निकलता है। मुंह का स्वाद मीठा-मीठा सा रहता है। भूख कम लगती है, अल्प भोजन से तृप्ति हो जाती है। प्यास भी कम लगती है। ज्यादातर ठोस मल, मल में चिकनापन रहता है। नींद अधिक आती है और आलस्य और सुस्ती बनी रहती है। सपने में नदी, तालाब, जलाशय, समुद्र आदि अधिक देखते हैं। इनकी चाल धीमी एक जैसी होती है। इन्हें सर्दी बुरी लगती है मगर हवा और धूप बहुत पसंद आती है। गर्म भोजन और गर्म पेय पदार्थ प्रिय लगता है। गर्म चटपटे, कड़वे पदार्थ खाना पसंद करते हैं। 

    प्रतिकूल मौसम में रहें सावधान : डा.अजय कुमार बताते हैं कि इन तीनों प्रकृति के व्यक्तियों का लक्षण जानने के बाद अब इनसे आप अपनी प्रकृति का अंदाजा लगा सकते हैं। साथ ही अपने खान-पान और रहन-सहन को निर्धारित करें तो लंबी और सेहतमंद जीवन जी सकते हैं। आइये जानते हैं व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार क्या बरतें सावधानियां।

    वात प्रधान व्यक्ति : वात प्रधान व्यक्यिों को वर्षा ऋतु और बुढ़ापे में काफी सावधान रहना चाहिए क्योंकि इन ऋ तुओं में वात अधिक बढ़ा रहता है। वात दोष वालों का पाचन तंत्र वर्षा ऋ तु में सबसे अधिक कमजोर रहता है इसलिए वात बढ़ाने वाले आहार विहार से बचना चाहिए। इनके लिए बारिश के दिनों में शहद लाभकारी होता है। भोजन हल्का, गर्म, घी-तेल युक्त लेना चाहिए। इसके अलावा खट्टे व नमकीन पदार्थोंं का सेवन करना चाहिए। 

    पित्त प्रधान व्यक्ति : पित्त प्रधान वालों को शरद ऋ तु और युवावस्था में विशेषरूप से सावधान रहना चाहिए। पित्त को नियंत्रित रखने के लिए विरेचन और रक्तमोक्षण करना चाहिए। गर्म मौसम और गर्म खानपान से बचना चाहिए। प्रतिवर्ष एक बार रक्त दान करना लाभकारी रहता है।

    कफ प्रधान व्यक्ति : कफ प्रधान प्रकृति वालों का वसंत ऋ तु और बाल्यावस्था में विशेष रूप से ख्याल रखा जाना चाहिए। कफ प्रधान वालों को प्रतिवर्ष वसंत ऋ तु में पंचकर्म के माध्यम से शरीर की शुद्धि करानी चाहिए। इन लोगों को पानी से बचना चाहिए। शीत ऋ तु और ठंडी वस्तुओं को खाने से बचना चाहिए