Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Kishan Maharaj Death Anniversary अक्खड़ तबीयत व फक्कड़ मिजाज के थे तबला सम्राट पद्मविभूषण किशन महाराज

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Mon, 04 May 2020 02:56 PM (IST)

    Kishan Maharajdeath Death Anniversary अक्खड़ तबीयत फक्कड़ मिजाज वाले थे वाराणसी के तबला सम्राट पद्मविभूषण किशन महाराज। ...और पढ़ें

    Hero Image
    Kishan Maharaj Death Anniversary अक्खड़ तबीयत व फक्कड़ मिजाज के थे तबला सम्राट पद्मविभूषण किशन महाराज

    वाराणसी [कुमार अजय]। Kishan Maharajdeath Death Anniversary कूट काशिका बोली में रूप हाट (वेश्याओं) की बेवफाई की कथा सुना रहे हरदिल अजीज पंडित किशन महाराज सामने किसी मजमेबाज की बातों के तिलिस्म में बंधे दर्जनों कबीरचौरा वासियों का अलमस्त समाज। कभी अड़ी श्रीनारायण मिश्र के चबूतरे पर। तो कभी गोलबाजी छांगुर पान वाले (अब दिवंगत) की गुमटी पर। सबेरे-सबेरे जो जम गई सो जम गई। मघई पान के बीड़े धुलते जा रहे। महाराज की फक्कड़ मस्ती वाले तराजू पर क्या जान केनेडी और क्या ख्रुश्चेव सभी बथुआ के साग की तरह एक भाव तुलते जा रहे हैं। न तो कहीं वजूद पद्मविभूषण अलंकरण की चमक का। न कोई ठसक तबला सम्राट (जन्म 03 सितंबर 1923 : निधन 04 मई 2008) के खिताब की हनक का।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बताते हैं कि महाराज जी यदि विलायत में नहीं और बनारस में हैं तो पक्की बात कि सुबह छांगुर या स्वयं मिश्र जी के चबूतरे पर अड़ी जमाएंगे। ठेठ काशिकाना अंदाज में देश-दुनिया के किस्से सुनाएंगे। उनके स्नेह पात्र ख्यात संगीतकार पंडित कामेश्वर मिश्र बताते हैं कि महाराज जी बानरसीपन के मोहपाश से कभी बरी नहीं हो पाए। 60-70 के दशक तक लगभग दम तोड़ चुकी बनारसी गहरेबाजी (कारवां मौज मस्ती का) को फिर जीवित करने का श्रेय उन्हीं के खाते में दर्ज है। एक्का दौड़, बुलबुल लड़ईया व चौसर की बाजीयों को रवानगी देकर महाराज ने लडख़ड़ाती हुई बनारसी मस्ती को फिर एक मुकाम दिया।

    तबला सम्राट के बेटे मशहूर तबला वादक पूरण महाराज बताते हैं कि वस्त्र विन्यास हो या खानपान (पप्पा) फैशनी अंदाज की किसी अदा से कभी नहीं चूके। सर्ज सूट (सूट का एक विशिष्ट प्रकार) तो कभी लांग कोट का ठाट, शेरवानी तो कभी मिरजई (बंद कुरती) की नायाब गांठ।

    पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर इन शेष स्मृतियों की थाती बटोर कबीरचौरा की गलियों से गुजरते हुए जाने क्यों ऐसी अनुभूति होती है कि अभी किसी कोने से- का यार... का हाल हौ... की खनकती आवाज आएगी। ठिठक जाएगा वक्त और घड़ी ठहर जाएगी।