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    हाथी पर सजधज कर नगर भ्रमण को निकले काशी नरेश, रामनगर दुर्ग में परम्परागत ढंग से मनी विजयदशमी

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Mon, 07 Oct 2019 08:23 PM (IST)

    रामनगर में सोमवार को दुर्ग में विजयादशमी का पर्व पूरे राजसी शानो -शौकत व परंपरागत तौर तरीके से मनाया गया।

    हाथी पर सजधज कर नगर भ्रमण को निकले काशी नरेश, रामनगर दुर्ग में परम्परागत ढंग से मनी विजयदशमी

    वाराणसी, जेएनएन। रामनगर में सोमवार को दुर्ग में विजयादशमी का पर्व पूरे राजसी, शानो -शौकत व परंपरागत तौर तरीके से मनाया गया। परंपरा के अनुसार अनंत नारायण सिंह दशमी तिथि लगने पर पूजन पर बैठे। चारों वेदों के चार विद्वान ब्राह्मणों के वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अनंत नारायण सिंह ने विधि विधान से शस्त्र पूजा किया। पूजन के पश्चात 36 वीं वाहिनी पीएसी के जवानों ने सलामी दी। तत्पश्चात अनंत नारायण सिंह का शाही दरबार लगा। जहां दरबार से जुड़े मुसाहिब साहबबानो ने उनको नजराना पेश किया।

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    राज परिवार से जुड़ी महिलाओं ने उनकी नजर उतारी, तत्पश्चात दुर्ग में स्थित मंदिरों में दर्शन के बाद शाम लगभग 5.15 बजे दुर्ग से सुसज्जित हाथियों पर पूरी शानो शौकत के साथ राजसी पोशाक में अनंत नारायण सिंह की सवारी निकली। सवारी के दुर्ग के बाहर आते ही उपस्थित जन समुदाय ने हर-हर महादेव का उद्घोष कर उनका अभिनंदन किया। अनंत नारायण सिंह ने भी हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। शाही सवारी बटाऊ वीर पहुंचने पर अनंत नारायण सिंह ने परंपराओं के अनुसार शमी वृक्ष का पूजन व परिक्रमा किया। तत्पश्चात सवारी रामलीला स्थल लंका पहुंची जहां सभी ने रामनगर की रामलीला का आनंद लिया।

    कभी होती थी सात तोपों की सलामी 

    विजय दशमी पर 17 साल पहले तक काशिराज शस्त्र पूजन के लिए बैठते तो सात तोपों की सलामी दी जाती थी। दुर्ग के समीप स्थित खंदक मैदान में तोप दागी जाती थी। वर्ष 2002 मे तत्कालीन काशिराज महाराज डा. विभूति नारायण सिंह के निधन के बाद ये परंपरा बंद कर दी गई। अब खंदक मैदान में तोप जरूर ले आई जाती है लेकिन सिर्फ पूजा की जाती है। जानकार बताते हैं कि बनारस स्टेट का जब केंद्र में विलय हुआ तो जो मर्जर डीड बनी उसमें काशिराज को ही सलामी की बात दर्ज की गई थी। इसलिए ही उनकेनिधन बाद यह परंपरा बंद हो गई।