Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    काशी की ज्ञान माला, मान सिंह वेधशाला, मुगल और राजपूत वास्तुशैली का बेजोड़ नमूना

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Fri, 28 Feb 2020 02:03 PM (IST)

    मान महल के कारण ही दशाश्वमेध घाट का यह छोर मान मंदिर घाट केनाम से जाना गया। महल मुगल और राजपूत वास्तुशैली का बेजोड़ नमूना तो पत्थरों से निर्मित छज्जे आकर्षित करते हैैं।

    काशी की ज्ञान माला, मान सिंह वेधशाला, मुगल और राजपूत वास्तुशैली का बेजोड़ नमूना

    वाराणसी [प्रमोद यादव]। सर्व विद्या की राजधानी काशी धर्म-अध्यात्म समेत ज्ञान-विज्ञान की खान है। इससे खगोल विज्ञान भी अछूता नहीं है। इसे आधार देने के लिए जयपुर के सवाई राजा जय सिंह ने सन् 1734 में दशाश्वमेधघाट के पास मान महल के दूसरे तल पर वेधशाला को आकार दिया। इसने आमेर (राजस्थान) के राजा मान सिंह द्वारा 1600 में बलुआ पत्थरों से निर्मित राजस्थानी वास्तु शिल्प की नायाब मिसाल को और भी बेजोड़ व वैभवशाली बनाया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मान महल के कारण ही दशाश्वमेध घाट का यह छोर मान मंदिर घाट केनाम से जाना गया। महल मुगल और राजपूत वास्तुशैली का बेजोड़ नमूना तो पत्थरों से निर्मित छज्जे आकर्षित करते हैैं। महल के सबसे ऊपरी हिस्से में बिखरे प्रमाण बताते हैं कि किस तरह 400 साल पहले वास्तु व ज्योतिष के जरिए ग्रहों और नक्षत्रों का पता लगाया जाता था। इसे 1699 से 1743 के बीच एक-एक यंत्रों को सहेज-सहेज कर वेधशाला को आकार दिया गया। काशी के विज्ञान माला की अनमोल मोती की तरह गूुंथी धरोहर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) सारनाथ मंडल द्वारा संरक्षित है। अभिलेखों के अनुसार राजा जय सिंह ने खगोल विद्या के प्रसार के लिए 1724 में दिल्ली, 1719 में उज्जैन, 1737 में मथुरा और 1728 में जयपुर में भी इस तरह ही वेधशालाओं का निर्माण कराया था।

    यंत्रों से सूर्य-चंद्र पर नजर

    वेधशाला का उपयोग चंद्र-सूर्य की स्थिति जानने, तारों व ग्रहों की गति और दूरी का अध्ययन करने के लिए किया जाता था। इसके लिए इसमें उस समय में एक से एक यंत्र लगाए गए थे। इनमें सम्राट यंत्र समय जानने और अंतरिक्ष में होने वाले बदलाव को जानने के लिए उपयोग में ले आया जाता था तो लघु सम्राट यंत्र समय और अंतरिक्ष में बदलाव को बताता था। चक्र यंत्र सूर्य-चंद्रमा और तारों की स्थिति के अलावा भूमध्य रेखा से उनकी दूरी मापने के काम आता था। नाड़ी वलय से समय और अंतरिक्ष संबंधी गणना तो दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र ग्रहों की अंतरिक्ष में भूमध्य रेखा तक पहुंच बताता था। इसके अलावा दिगांश यंत्र के जरिए अंतरिक्ष संबंधी जानकारियां जुटाई जाती थीं।

    ज्योतिषी ने शुरू कराया था वेधशाला का निर्माण

    अभिलेखों में दर्ज सूचनाओं के अनुसार इस योजना को जमीन पर उतारने में प्रमुख भूमिका समर्थ जगन्नाथ की थी जो स्वयं एक दक्ष ज्योतिषी थे। काम जयपुर के स्थापत्यकार मोहन द्वारा सरदार सदाशिव की देख-रेख में संपन्न हुआ।

    19वीं शताब्दी तक समय काल का झटका

    19वीं शताब्दी तक वेधशाला ध्वस्त हो चुकी थी। सन 1912 में जयपुर के तत्कालीन राजा सवाई माधो सिंह के आदेश पर वेधशाला का जीर्णोद्धार हुआ। उस समय के प्रंबधकारों में लाला चिमनलाल दारोगा, चंदूलाल ओवरसीयर, राज ज्योतिषी पं. गोकुलचंद तथा भगीरथ मिस्त्री के नाम वेधशाला की एक दीवार पर दर्ज हैं।

    चार दशक पहले मिला एएसआइ को

    जयपुर राजघराने की सोच जिसने काशी को धरोहर दी लेकिन समय काल के झटके में सब कुछ मिट्टïी में मिलता चला गया। अब सिर्फ यहां रह गई हैैं तो यादें। यंत्र अब भी आबाद हैैं लेकिन उनके कुछ न कुछ हिस्से गायब हो चुके हैैं। सिर्फ समय देखा जा सकता है। दरअसल, राजाओं की के बाद यह धरोहर राजस्थान सरकार के पीडब्ल्यूडी के कब्जे में आया। वर्ष 1980 में इसे संरक्षित करने के लिहाज से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग सारनाथ मंडल को दिया गया। हैैंडओवर के बाद भी कमरों में किसी न किसी का कब्जा था। मामला कोर्ट में भी गया और इसके बाद संरक्षित किया जा सका। फिलहाल यंत्रों के पास छोटी छोटी सूचनाएं दर्ज हैैं ताकि लोग इनके बारे में जान समझ सकें।

    पुरानी दीवारों ने सहेज लिया बनारस

    मान मंदिर की प्राचीन दीवारों ने अपने दामन में जीता जागता बनारस सहेज लिया है। तकनीक व ज्ञान को सहेज कर प्रदेश के पहले इस वर्चुअल म्यूजियम को राष्ट्रीय विज्ञान परिषद ने इसे आकार दिया जिसका पिछले साल जनवरी में पीएम ने उद्घाटन किया था। इसमें बनारस का अतीत से लेकर वर्तमान तक प्रोजेक्टर के जरिए जीवंत अंदाज में नजर आता है। चाहे गंगा अवतरण हो, शिवार्चन या बनारस की गलियों की सैर, एक स्थान पर खड़े होकर बड़े इत्मीनान से किया जा सकता है। थ्रीडी म्यूरल पर गंगा के घाट दिख जाते हैै। स्क्रीन पर काशी की महान विभूतियां, पुरातात्विक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी देख पाएंगे।