काशी में कल गंगा बनेंगी कालिंदी, उतरेगा द्वापर युग, कन्हैया करेंगे कालिय नाग
काशी में कल एक अद्भुत दृश्य होगा जब गंगा नदी कालिंदी के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। द्वापर युग का अनुभव होगा, जहाँ कन्हैया कालिय नाग को नाथेंगे। यह अद्वितीय घटना भक्तों को एक दिव्य अनुभव कराएगी।

नथैया राजघाट की नक्कटैया में सजी झांकियां। जागरण
जागरण संवाददाता, वाराणसी। परंपराओं की नगरी काशी में एक दिन ऐसा भी आता है जब मां गंगा कालिंदी का रूप धारण करती हैं। गंगा तट पर द्वापर युग उतर आता है और वहां उपस्थित लाखों लोग मानो उसी काल में पहुंच जाते हैं। कृष्ण कन्हैया गोपा सखाओं संग कंदुक क्रीड़ा करते दृष्टिगोचर होते हैं, खेलते-खेलते गेंद यमुना में चली जाती है, सखाओं द्वारा उसी गेंद से खेलने के आग्रह पर कान्हा कदंब के वृक्ष पर चढ़ कूद पड़ते हैं यमुना में, और उसमें रहने वाले कालिय नाग के फन पर गेंद लिए, नृत्य करते, बांसुरी बजाते प्रकट होते हैं। पूरा वातावरण जयकारों से गूंज उठता है। इस बार भी यह आयोजन शनिवार की शाम तुलसीघाट पर होगा।
वास्तव में यह आयोजन वहां चल रही गोस्वामी तुलसीदास द्वारा आरंभ श्रीकृष्ण लीला के प्रसंग का एक दिन का मंचन है, लेकिन अपनी विशिष्टताओं के चलते यह काशी के लक्खा मेलों में शुमार है। तुलसीघाट के आसपास घाटों से लगायत गंगा नदी में इस पार से लेकर उस पार तक लाखों लोग इस विहंगम लीला का दर्शनपान करने पहुंचते हैं।
श्रीसंकट मोचन मंदिर के महंत व वहां चलने वाली श्रीकृष्ण लीला के वाहक प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र भगवान श्रीकृष्ण की आरती करते हैं, पूर्व काशी नरेश परिवार के अनंत नारायण सिंह सपरिवार इस लीला को देखने के लिए बजड़े पर सवार होकर सपरिवार आते हैं और परंपरानुसार लीला आयोजकों को सोने की गिन्नी भेट करते हैं।
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मान्यता है कि इस श्रीकृष्ण लीला का शुभारंभ अनन्य रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने किया था, तब से यह अनवरत चलती आ रही है। लकड़ी के बने भारी-भरकम 12 फीट लंबे कालिय नाग को गंगा के जल में डुबाकर रखने के लिए 80 गंगापुत्र केवट चार घंटे तक पानी में डूबे रहते हैं।
इस लीला के मंचन के लिए कारीगरों द्वारा बनाए जा रहे विशाल कालिय नाग को शुक्रवार को अंतिम रूप दे दिया जाएगा। शनिवार को लीला शाम तीन बजे से आरंभ होगी और ठीक 4:40 बजे भगवान श्रीकृष्ण कदंब के वृक्ष से यमुना में छलांग लगाएंगे। इस आयोजन को लेकर काशी के लीला रसिकों में उत्साह है।

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