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Independence Day : काशी ने लड़ी थी 1781 में आजादी की जंग, जज्बा देख अंग्रेज हुए थे दंग

इतिहास में दर्ज 1857 के विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है। मगर उससे 76 साल पहले 1781 में काशीवासियों ने राजा चेतसिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 06:40 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 07:59 PM (IST)
Independence Day : काशी ने लड़ी थी 1781 में आजादी की जंग, जज्बा देख अंग्रेज हुए थे दंग
Independence Day : काशी ने लड़ी थी 1781 में आजादी की जंग, जज्बा देख अंग्रेज हुए थे दंग

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। आजादी की लड़ाई में सांस्कृतिक नगरी काशी ने कई मोर्चों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी फेहरिस्त में शामिल है आजादी के लिए पहली जंग की दास्तान, जिसका आगाज भी यहीं के लोगों ने किया। वैसे तो इतिहास के पन्नों में दर्ज 1857 के विद्रोह को आजादी की पहली लड़ाई मानी जाती है। मगर उससे 76 साल पहले यानी 1781 में काशीवासियों ने राजा चेत सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था।

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चेतसिंह घाट स्थित महाराजा चेत सिंह किला पर बकायदा एक शिलापट्ट लगा हुआ है। इसमें 239 साल पहले की लड़ाई का जिक्र करते हुए उसका पूरा विवरण अंकित है। वहीं शिवाला घाट स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलापट्ट उस दौर में हुई लड़ाई की गवाही देता है। इस पर स्पष्ट अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट स्टाकर, लेफ्टिनेंट स्टाक और लेफिटनेंट जार्ज समेत करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे। वर्तमान में भी यह कब्रगाह वजूद में है, जिसकी ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए सरकार ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने मांगे थे पांच लाख

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. राकेश पांडेय ने बताया कि उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी। उद दौर में उनका अफगान लड़ाकों से युद्ध चल रहा था। उन्हें धन की बहुत जरूरत थी। बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था, लिहाजा भारी भरकम धनराशि (करीब पांच लाख रुपये) कर के रूप में महाराजा चेत सिंह से मांगी गई। यह उस समय के हिसाब से बहुत अधिक था। कर वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आए।

राजा के लिए प्रजा का विद्रोह

प्रो. पांडेय ने कहा कि आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे, लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को सहन नहीं हुआ। काशीवासियों ने वारेन हेस्टिंग पर हमला बोल दिया। आमजन का यह रूप देख वारेन हेस्टिंग को यहां से भागना पड़ा। बाद में वह चूनार चला गया। उसके बाद कोलकाता से सेना मंगवा कर वारेन हेस्टिंगने चेतह किला पर कब्जा कर लिया।


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