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    काशी की अनोखी अंतरगृही यात्रा, मह‍िलाओं का यह जज्‍बा देख आप रह जाएंगे दंग

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Sat, 06 Dec 2025 01:42 PM (IST)

    वाराणसी में त्रेता युग से चली आ रही काशी की अंतरगृही यात्रा आज भी जारी है। अगहन मास की चतुर्दशी को हजारों श्रद्धालु 25 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं। ...और पढ़ें

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     यह यात्रा सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

    शैलेश अस्थाना, जागरण, वाराणसी। त्रेता युग से चली आ रही काशी की अंतरगृही यात्रा आज भी उसी आस्था और श्रद्धा के साथ जारी है। प्रत्येक वर्ष अगहन मास की चतुर्दशी के दिन, हाथ में झोरा और कपार पर बोरा लिए हजारों महिलाएं-पुरुष जब कतारबद्ध होकर काशी की सड़कों पर निकलते हैं, तो सनातन धर्म की इस सतत श्रद्धा के आगे सभी का सिर नतमस्तक हो जाता है।

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    वास्तव में, काशी की यह यात्रा भौतिक रूप से बाह्य भले दिखती हो, लेकिन यह व्यक्ति के अंतर्मन की यात्रा है, आत्मतत्व की खोज। जन्म-जन्मांतर के मनसा, वाचा और कर्मणा के पापों से मुक्ति के लिए काशीवासी ही नहीं, बल्कि देश के विभिन्न भागों से आए लोग इस यात्रा में भाग लेते हैं।

    ठंड की परवाह किए बिना, श्रद्धालु 24 घंटे में 25 किलोमीटर लंबे मार्ग पर 75 देवविग्रहों की परिक्रमा करते हैं, परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए स्वयं के मोक्ष मार्ग का निर्धारण करते हैं। सनातन धर्म के अनुयायी विश्वेश्वर खंड, केदारेश्वर खंड और ओंकारेश्वर खंड की अंतरगृही परिक्रमा करते हैं।

    ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र यात्रा से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मणिकर्णिका तीर्थ स्थित चक्र पुष्करिणी में स्नान कर, मणिकर्णिकेश्वर महादेव के दर्शन कर श्रद्धालु चतुर्दशी को बाबा विश्वनाथ के मुक्तिमंडप में संकल्प लेकर यात्रा आरंभ करते हैं।

    यात्रा की शुरुआत के बाद, सभी अस्सी-लंका, खोजवां, बजरडीहा से मंडुवाडीह नंगे पांव पथरीले रास्ते पर ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए, भगवान राम और सीता का नाम जपते हुए आगे बढ़ते हैं। मान्यता है कि सिद्धि विनायक के बाद कंबलेश्वर, अश्वतरेश्वर, वासुकीश्वर का दर्शन करते हुए श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं।

    चौकाघाट पर बाटी-चोखा का भोग अर्पित करने के बाद श्रद्धालु रात्रि विश्राम करते हैं और फिर पूर्णिमा को गंगा वरुणा के संगम पहुंचते हैं। अंत में पुन: मुक्तिमंडप में पहुंचकर अंतरगृही परिक्रमा यात्रा पूर्ण होती है।

    इस यात्रा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। काशी की यह यात्रा न केवल श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत है। यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि भौतिकता से परे, आत्मिक शांति और मोक्ष की खोज में हमें अपने अंतर्मन की यात्रा करनी चाहिए।

    इस प्रकार, काशी की अंतरगृही यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जीवन के गहरे अर्थों की खोज का एक माध्यम भी है। श्रद्धालु इस यात्रा के माध्यम से अपने जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार करते हैं, जो कि आज के युग में अत्यंत आवश्यक है। काशी की यह यात्रा, जो सदियों से चली आ रही है, आज भी लोगों को जोड़ने और उन्हें एक नई दिशा देने का कार्य कर रही है।