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    Kali Puja 2020: वाराणसी के सिद्धपीठ मंदिर में पंचमुंड आसन पर मां तारा विराजमान, अमावस्या पर तंत्र पूजा

    By saurabh chakravartiEdited By:
    Updated: Sat, 14 Nov 2020 10:46 AM (IST)

    काशी मंदिरों के लिए ही खास है। यहां सभी देवी-देवताओं का मंदिर है। हर धार्मिक आयोजन के लिए विशेष अनुष्‍ठान का विधि विधान है। सिद्धपीठ की मान्यता प्राप्त मां ताराबाड़ी का मान दीपावली की अमवस्‍या पर काली पूजा के दिन खास तौर से हैं।

    वाराणसी में रानी भवनी की ओर से स्‍थापित सिद्धपीठ मां तारा का मंदिर।

    वाराणसी, जेएनएन। काशी मंदिरों के लिए ही खास है। यहां सभी देवी-देवताओं का मंदिर है। हर धार्मिक आयोजन के लिए विशेष अनुष्‍ठान का विधि विधान है। सिद्धपीठ की मान्यता प्राप्त मां ताराबाड़ी का मान दीपावली की अमवस्‍या पर काली पूजा के दिन खास तौर से हैं। बंगीय शैली के किसी आवासीय भवन का आभास देने वाली सिद्धपीठ की छोटी सी दुआरी के पीछे पसरी विशाल अंगनाई के अलग -अलग कोणों पर देवी दुर्गा, देवी विशालाक्षी के अलावा गोपाल जी व राधा-कृष्ण के विग्रह स्थापित हैं। मंदिर के दक्षिणी छोर के दूसरे आंगन स्थित देव मंडप में मां तारा पंचमुंड आसन पर विराजमान हैं। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी शनिवार को दीपावली काली पूजन के उपलक्ष्य में जगज्जननी काली माता एवं तारा माता का पूजन शनिवार को शाम सात बजे से सम्पन्न किया जाएगा।

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    मां तारा की सिद्ध शक्तियों के साथ शिल्पकारों ने प्रतिमा के मुखमंडल पर रौद्र भाव उकेरने में अपनी कला को किस ऊंचाई तक पहुंचाया है इसका अनुभव उसी को हो सकता है जिसकी आंखें दर्शन के समय मां के मुखमंडल पर चमत्कारिक आभा के चलते टिक ही न सकी हो। तारा मंदिर के पार्श्‍व में ही रौद्र स्वरूपा मां कालिका का मंडप भी दर्शनीय है।

    बंगाल के नाटोर राज परिवार की धर्मप्राण मुखिया रानी भवानी ने स्‍थापित किया था यह मंदिर

    नाटोर (पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के बीच का विस्तृत भू-भाग) के जागीरदारों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक यह सिद्ध स्थान काशी के गरिमामय आध्यात्मिक पीठों में से एक है। किंतु गौरवशाली इतिहास और प्राचीन वैभव के बाद भी प्रचार- प्रसार की अन्यमनस्कता और संकोच के चलते अभी काशी के ही बहुत से लोग इसके अस्तित्व व प्रभामंडल से अनभिज्ञ हैं। सिद्धपीठ के बारे में अब तक उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार इसकी प्राण प्रतिष्ठा 17वीं शताब्दी के मध्यकाल (लगभग 1752) के आसपास की है, जब काशी में नाटोर राज परिवार की धर्मप्राण मुखिया रानी भवानी की धर्मप्रियता और औदार्य का डंका बज रहा था। धर्मप्राण राजमाता ने 365 दिनों के काशी प्रवास में मंदिर धर्मशाला कुंड सरोवरों व भवनों के लिए 365 भुखंड दान किए। प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर, दुर्गाकुंड तालाब, पुष्कर तालाब, कुरूक्षेत्र तालाब, ओंकारेश्वर मंदिर, लाट भैरव व रामेश्वर तीर्थ सहित कुल 380 देवालय, सरोवर और धर्मशालाएं आज भी रानी मां के यश-कीर्ति की गाथाएं सुना रही हैं।

    तय है ताराबाड़ी के विधि-अनुष्ठान

    मंदिर के प्रबंध व्यवस्थापक श्यामा प्रसाद कुंडु बताते हैं कि पीठ के सभी अनुष्ठान और उनकी तिथियां पारंपरिक रूप से पहले से निर्धारित हैं। दीपावली और शारदीय नवरात्र की निशा-पूजाएं मंदिर के वार्षिक अनुष्ठानों में शामिल हैं।  इसके अलावा मास की हर अमावस्या को देवियों को तंत्र पूजाएं समर्पित की जाती हैं। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपावली काली पूजन के उपलक्ष्य में जगज्जननी काली माता एवं तारा माता का पूजन शनिवार को शाम सात बजे से सम्पन्न किया जाएगा।

       

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