हरितालिका तीज : हस्त नक्षत्र और शुक्ल योग की जुगलबंदी, पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निराजल व्रत
ज्योतिषाचार्य पं ऋषि द्विवेदी के अनुसार तृतीया तिथि नौ सितंबर को भोर में 359 बजे लगेगी। जो रात्रि 214 बजे तक रहेगी। वहीं इस तिथि विशेष पर हस्त नक्षत्र और शुक्ल योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। हस्त नक्षत्र शाम 514 बजे और शुक्ल योग रात 1219 बजे है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज मनाई जाएगी। सुहागिनें पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निराजल व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं ऋषि द्विवेदी के अनुसार तृतीया तिथि नौ सितंबर को भोर में 3:59 बजे लगेगी। जो रात्रि 2:14 बजे तक रहेगी। वहीं इस तिथि विशेष पर हस्त नक्षत्र और शुक्ल योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। हस्त नक्षत्र शाम 5:14 बजे और शुक्ल योग रात 12:19 बजे तक है। हस्त नक्षत्र के साथ ही शुक्ल योग की जुगलबंदी से इस बार की हरितालिका तीज मंगलकारी होगी।
शुक्र के स्वग्रही होने से शुभ है तीज व्रत : पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सूर्य, बुध, शुक्र स्वगृही हैं। शनि स्वगृही होकर वक्री है। गुरु अतिगामी होकर वक्री है। केतु वृश्चिक राशि में और राहु वृषभ राशि में हैं। चंद्रमा हस्त नक्षत्र का होकर कन्या राशि में बुध एवं मंगल के साथ संयोग कर रहा है। ग्रहों की चाल के अनुसार हरितालिका तीज पर्व पर शुभ स्थिति बन रही है। खासकर शुक्र का स्वग्रही होना पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए अत्यंत शुभ है।
सुहागिनें इस तरह करें पूजा : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रो. विनय पांडेय के अनुसार सुहागिनें सूर्योदय से पूर्व उठकर सरगी ग्रहण करें। स्नान के बाद शिव परिवार सहित अन्य देवी-देवताओं की विधि विधान से पूजन करें। दिनभर निराजल व्रत रहने के बाद शाम को स्नान करके सोलह श्रृंगार करें। पूजन के निमित केले के पते से मंडप बनाकर उसमे गौरी शंकर और गणेशजी की मूर्ति या चित्रमयी प्रतिमा स्थापित करके पूजन करें। शिव के लिए नैवेद्य के साथ वस्त्र एवं माता पार्वती के लिए भोग पदार्थों के अतिरिक्त सुहाग का सामान अर्पित करें। उसके बाद शिव-पार्वती के विवाह की कथा सुनें। अगले दिन ब्राह्मणों को दान पुण्य करके व्रत का पारण करें।
तीज व्रत का यह है महत्व : प्रो. विनय पांडेय के अनुसार इस व्रत को रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाएं जिस त्याग - तपस्या से यह व्रत रखती हैं। वह बेहद अनुपम है। यह व्रत अत्यंत कठिन है। इस व्रत में फलाहार का सेवन तो दूर, सुहागिनें जल का भी सेवन नहीं करती हैं। व्रत के दूसरे दिन स्नान-पूजन के बाद व्रत का पारण किया जाता है। वहीं अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं।