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    Jonathan Duncan Griffith Birth Anniversary रामायण का अंग्रेजी अनुवाद काशी की ही देन

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Fri, 15 May 2020 07:41 PM (IST)

    Jonathan Duncan Griffith Birth Anniversary वर्ष 1870 के आस-पास संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर उन्होंने रामायण का अंग्रेजी छंदों में अनुवाद किया था।

    Jonathan Duncan Griffith Birth Anniversary रामायण का अंग्रेजी अनुवाद काशी की ही देन

    वाराणसी, जेएनएन। Jonathan Duncan Griffith Birth Anniversary (जन्‍म दिन 15 मई 1756, पूण्‍य तिथि 11 अगस्त 1811) संस्कृत दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। यह सिर्फ भाषा ही नहीं, ज्ञान का समृद्ध कोष भी है। इसकी महत्ता को समझते हुए विश्व के तमाम विद्वान काशी में प्राच्य विद्या की साधना कर चुके हैं। इनमें प्रमुख अंग्रेज विद्वान आरटीएच ग्रिफिथ हैं। वर्ष 1870 के आस-पास संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में बैठकर उन्होंने रामायण का अंग्रेजी छंदों में अनुवाद किया था। इस प्रकार रामायण का सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद काशी की ही देन है।

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    ग्रिफिथ ने जहां अनुवाद किया था वह स्थल स्मारक के रूप में विवि में आज भी विद्यमान है। यहां पत्थर पर उकेरी गई खुली किताब लोगों को बरबस उनकी याद दिलाती है। हालांकि किताब की चमक अब धूमिल हो गई है। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों को संस्कृत की महत्ता समझाने के लिए ग्रिफिथ ने संविवि में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद संग कालिदास द्वारा रचित कुमार संभव का भी अंग्रेजी में अनुवाद किया था।

    संस्कृत अध्ययन केंद्र खोलने की  डंकन ने मांगी थी अनुमति

    संस्कृत की महत्ता को देखते हुए बनारस के तत्कालीन रेजिडेंट जोनाथन डंकन ने अंग्रेजी शासन से यहां पर संस्कृत अध्ययन केंद्र खोलने की अनुमति भी मांगी थी। ब्रिटिश शासन ने वर्ष 1791 में बनारस संस्कृत पाठशाला स्थापित की। वर्ष 1844 में नाम काशिक राजकीय संस्कृत कालेज हुआ जिसे वर्ष 1847 में बदलकर क्वींस कॉलेज किया गया। स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1958 में इसे राज्य विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। इसका नाम फिर बदलकर वाराणसेय संस्कृत विवि कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 1974 में फिर नाम बदल कर संपूर्णानंद संस्कृत विवि किया गया।

    15 मई को यूनाइटेड किंगडम हुआ था जन्म

    जोनाथन डंकन का जन्म 15 मई 1756 में एंगस, यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। उन्होंने कॅरियर की शुरूआत भारत से की। वर्ष 1772 में लार्ड कार्नवालिस ने उन्हेंं बनारस का अधीक्षक और निवासी नियुक्त किया। वर्ष 1788 तक उन्होंने अधीक्षक पद पर कार्य किया। वहीं 27 दिसंबर 1795 को वह मुबंई के गवर्नर बने। मृत्यु पर्यंत  पद पर बने रहे। 11 अगस्त 1811 को उनका निधन मुंबई में हुआ। बनारस में संस्कृत कालेज खुलवाने में अहम भूमिका थी। वहीं शिशु हत्या प्रथा समाप्त कराने में भी उनका बड़ा योगदान है।

    229 वर्ष पुराना विवि का इतिहास

    संस्कृत अध्ययन केंद्र खुलने से लेकर अब तक विश्वविद्यालय का इतिहास 229 वर्ष पुराना है। जे. म्योर संस्कृत कालेज के पहले प्राचार्य थे जबकि जेआर वैलेंटाइन दूसरे व आरटीएच ग्रिफिथ तीसरे प्राचार्य रहे। उच्च कोटि  के संस्कृत विद्वान ग्रिफिथ वर्ष 1861 से 1876 तक बनारस संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य रहे। उन्होंने संस्कृत के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया। 1830 में यहां संस्कृत के साथ अंग्रेजी की पढ़ाई भी शुरू हुई। 1857 से स्नातकोत्तर की कक्षाएं व 1880 से लिखित परीक्षा प्रणाली शुरू हुई थी।