Jharkhandey Rai Birth Anniversary : अंजुली भर रज ने झारखंडेय को बनाया क्रांतिकारी,1938 को लूटा था ब्रिटिश खजाना
घोसी के अमिला के राधे राय के पुत्र की उम्र महज पांच-छह वर्ष की थी जब जालियांवाला बाग की खून सनी रज का गांव में ही दर्शन कर माथे पर तिलक लगाया और क्रांतिकारी बन गया।
मऊ [अरविंद राय]। जनपद के घोसी तहसील अंतर्गत अमिला के राधे राय के पुत्र की उम्र महज पांच-छह वर्ष की थी जब जालियांवाला बाग की खून सनी रज का गांव में ही दर्शन कर माथे पर तिलक लगाया और क्रांतिकारी बन गया। सशस्त्र क्रांतिकारी, वामपंथ की एक धुरी रहे पूर्व मंत्री एवं सांसद झारखंडेय राय को बचपन से ही साम्राज्यवाद की शहनाई रास न आई। उन्होंने देखा थी गरीबी एवं भोगा था भूख और प्यास। शायद इसीलिए आजीवन जमीदारों के उत्पीडऩ एवं दमन का विरोध करते रहे।
10 सितंबर 1914 को भूमिहार (ब्राह्मण) कुल में राधे राय के घर उत्पन्न मां-बाप की इकलौती संतान झारखंडेय राय की उम्र तब महज पांच-छह वर्ष की थी, जब गांव के ही कांग्रेसी नेता अलगू राय शास्त्री अमृतसर के जालियांवाला बाग में हुए सामूहिक नरसंहार के बाद वहां की एक मुटठी मिट्टी गांव लेकर आए। इस मिट्टी को इस बालक ने प्रणाम कर तिलक लगाया था। झारखंडेय राय ने अपनी पुस्तक भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का एक विश्लेषण में इस मिट्टी से स्वयं के प्रभावित एवं उद्वेलित होने का तथ्य स्वीकार किया है।
विद्रोही तेवरों के चलते कई बार निकाले गए स्कूल से
बचपन में ही इस बालक के दिल में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति उत्पन्न चिंगारी धधक उठी, जब वेस्ली हाईस्कूल में बाइबिल पाठ न करने पर निकाल दिया गया। राजकीय हाईस्कूल बस्ती में प्रवेश लेने के बाद छात्रों की यूनियन बनाकर मांगें पूरी न होने पर हड़ताल कर दिया। यहां से भी निकाले जाने के बाद यह छात्र पूरी तरह से क्रांतिकारी बन गया। श्रीनारायण चतुर्वेदी की सिफारिश पर इनको जुब्ली हाईस्कूल गोरखपुर में प्रवेश मिला। प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन भी किया पर इसके पूर्व ही 1930 में नवयुवक सुधार संघ की स्थापना कर अरमानों को पंख दे दिया। क्रिश्चियन कालेज इलाहाबाद से इंटर के बाद प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने लगे।
पिपरीडीह में लूट लिया ट्रेन से खजाना
बीए प्रथम वर्ष की परीक्षा देकर घर वापस आने के दौरान वाराणसी में क्रांतिकारी साहित्य एवं संगठन के संविधान के साथ गिरफ्तार हो गए। बाद में रिहा हुए पर अध्ययन का क्रम टूटा तो फिर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी की स्थापना कर जिला प्रभारी बनने के बाद पूरी तरह से सशस्त्र क्रांति से जुड़े। वीरूपंक्षागदी, जयबहादुर सिंह एवं राधेश्याम संग 19 अप्रैल 1938 को पिपरीडीह में ट्रेन से जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया। इस घटना के बाद इनकी गतिविधियां तेज होने लगीं। पूर्वांचल में सशस्त्र क्रांति को नई धार देने के साथ ही पुलिस को गाजीपुर जेल तोड़कर बंद पिपरीडीह कांड के आरोपितों को नेपाल ले जाने की योजना भनक लगी तो फिर इनकी गिरफ्तारी अंग्रेज पुलिस के लिए चुनौती बन गई।
मिली 29 वर्ष कैद की सजा, जेल में आंदोलन शुरू
18 अक्टूबर 1939 को अंतत: वह किसान सभा कार्यालय गाजीपुर में पुलिस के हत्थे चढ़े। लखनऊ कांड में भी आरोपित रहे इस युवक को 29 वर्ष की सजा मिली। राजस्थान के नजरबंदी कैंप जेल देवली में शचींद्रनाथ सान्याल, अमृत डांगे, अजय घोष, बीटी रणदीवे, डा.जेडए अहमद, आसिफ अली, योगेन्द्र शर्मा, योगेश चंद्र चटर्जी, जयप्रकाश नरायन, रूप नरायन एवं केशव शर्मा का साथ मिला तो जेल में 21 अक्टूबर 1941 से 32 दिनों तक हड़ताल की। गिरफ्तारी के सात वर्ष बाद अप्रैल 1946 में रिहा हुए। आजाद भारत में घोसी क्षेत्र का अनवरत चार बार विधान सभा में एवं तीन बार लोकसभा में लाल झंडा के बैनर तले प्रतिनिधित्व किया। वह 1967 में चौधरी चरण सिंह सरकार में मंत्री भी रहे। 18 मार्च 1987 को वह चिरनिद्रा में सो गए।
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