आइआइटी-बीएचयू के बायोवेस्ट प्रयोगशाला में तैयार किया गया खुफिया स्याही, डा. विशाल ने करा ली खोज की कापीराइट
आइआइटी-बीएचयू के स्कूल आफ बायो केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में ग्रीन केमेस्ट्री अवधारणा पर प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो चुके बायो वेस्ट से फ्लोरोसेंट इंक तैयार किया गया है। केमिकल विज्ञानी डा. विशाल और उनके मार्गदर्शन में शोध कर रहे युवा विज्ञानी अनादि गुप्ता ने इस खोज का कापीराइट करा लिया है।
वाराणसी, जेएनएन। आइआइटी-बीएचयू के स्कूल आफ बायो केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में ग्रीन केमेस्ट्री अवधारणा पर प्रयोगशाला में इस्तेमाल हो चुके बायो वेस्ट से फ्लोरोसेंट इंक तैयार किया गया है, जो कि कागज पर लिख तो सकता है, मगर दिख नहीं सकता। इस खुफिया स्याही से लिखे अक्षर को पढ़ने के लिए यूवी (अल्ट्रा वायलेट) लाइट की जरुरत पड़ती है। इसका उपयोग खुफिया पेन, जासूसी, बैंक में नोट चेक करने, वस्तुओं की टैगिंग और प्रमाण पत्र के परीक्षण में किया जा सकता है। यदि इस स्याही का एक निशान नोट या प्रमाण पत्र पर लगा दिया जाए, तो धोखाधड़ी को आसानी से रोका जा सकता है।
विभाग के केमिकल विज्ञानी डा. विशाल मिश्रा और उनके मार्गदर्शन में शोध कर रहे युवा विज्ञानी अनादि गुप्ता ने इस खोज का कापीराइट करा लिया है। वहीं प्रतिष्ठित केमिकल एजुकेशन जर्नल एसीएस ने इसे प्रकाशित करने के लिए स्वीकृति भी दे दी है। डा. विशाल मिश्रा ने बताया कि हमारे प्रयोगशाला में शोध कार्य के बाद बचे जैविक अवशेषों से इस स्याही का निर्माण किया गया है। दरअसल, विभाग में हर माह काफी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ व्यर्थ हो जाते हैं, जिनकी कीमत लगभग 8-10 हजार रुपये तक आंकी जाती है। वहीं इन वेस्ट मटेरियल से पर्यावरण को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए इससे स्याही बनाकर ग्रीन केमेस्ट्री की अवधारणा को प्रस्तुत किया जा रहा है। डा. मिश्रा ने बताया कि इस स्याही से लिखे अक्षर दिन के उजाले के बजाय, यूवी लाइट के कुछ तंरगदैर्घ्य के संपर्क में आने के बाद दिखता है। इसे बेहद कम लागत पर चार वाट के बैटरी संचालित यूवी लाइट से भी देखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि पाउडर जैसा न्यूट्रिएंट मीडिया बैक्टीरिया का भोजन होता है, जिसका उपयोग शोध के दौरान होता है।