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    वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विशषज्ञों ने कहा- ज्योतिष, पंचांग और मुहूर्तादि सनातन परंपरा के आधार

    By Shailesh AsthanaEdited By: Saurabh Chakravarty
    Updated: Thu, 10 Nov 2022 07:47 PM (IST)

    काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिष विभाग के तत्वावधान में गुरुवार को आयाेजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में विशेषज्ञाें ने अपने विचार में कहा कि ज्योतिष पंचांग एवं मुहूर्तादि सनातन परंपरा के आधार हैं।

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    काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिष विभाग की ओर से आयाेजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन

    जागरण संवाददाता, वाराणसी : ज्योतिषीय गणना विशुद्ध गणित है, इसके फलादेश पूर्णतया वैज्ञानिक हैं। तभी तो प्राचीन काल से भारतीय ज्योतिष की वैश्विक ख्याति है। यह कहना राज्यसभा सदस्य सीमा द्विवेदी का। वह गुरुवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के ज्योतिष विभाग के तत्वावधान में आयाेजित अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं। सम्मेलन में प्रथम दिन मुख्य विषय ‘ज्योतिष शास्त्र में पुरुषार्थ चतुष्टय’ पर विभिन्न राज्यों के अलावा अनेक देशों के विद्वानों ने अपने विचार रखे।

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    नेपाल से पहुंचे अर्जुन प्रसाद वास्तोला ने कहा कि ज्योतिष, पंचांग एवं मुहूर्तादि सनातन परंपरा के आधार हैं। उन्होंने पंचांगों की एकरूपता की बात की। पूर्व संकाय प्रमुख प्रो. चंद्रमा पांडेय ने पुरुषार्थ चतुष्टय की विशद् विवेचना करते हुए मोक्ष के विविध प्रकारों पर चर्चा की। उन्होंने शास्त्रों के संरक्षण एवं अध्ययन पर सर्वाधिक बल दिया। सारस्वत अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि वेद विहित यज्ञों का आधार ज्योतिष है तथा ज्योतिष का आधार काल है। वेद को सम्यक् प्रकार से वेदांगों के माध्यम से ही समझा जा सकता है। विशिष्ट अतिथि पूर्व संकाय प्रमुख प्रो. रामचंद्र पांडेय ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को मनुष्य जीवन का प्राथमिक उद्देश्य बताया। कहा कि ज्योतिष शास्त्र आधान काल से प्रसव काल, फिर जीवन तक और फिर अंतिम गति, योनि निर्णय तक को विवेचित करता है। मनुष्य कर्म से ही देवता या राक्षस होता है।

    अध्यक्षीय उद्बोधन में संकाय प्रमुख प्रो. कमलेश झा ने कहा कि प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुति वैदिक या तांत्रिक प्रयोग का आधार सर्वतोभावेन ज्योतिष ही है। कर्म को योग बनाकर क्रियायोग, भक्तियोग में स्वतः गति मिल जाती है। सम्मेलन का शुभारंभ मंगलाचरण, दीप प्रज्ज्वलन, मां सरस्वती एवं भारतरत्न पं. मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा मंचस्थ अतिथियों के सम्मान से हुआ। वेद विभागाध्यक्ष प्रो. पतंजलि मिश्र ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। उद्घाटन सत्र का संचालन पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामजीवन मिश्र तथा सत्र का संचालन प्रो. शत्रुघ्न त्रिपाठी ने किया। स्वागत एवं विषय प्रवर्तन विभागाध्यक्ष प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री एवं धन्यवाद ज्ञापन पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने किया।

    अगले दो सत्रों में प्रो. उमाशंकर शुक्ल, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के गरली परिसर के निदेशक प्रो. प्रो. मदन मोहन पाठक, प्रो. माधव प्रसाद पांडेय (नेपाल), मुजफ्फरनगर बिहार के डा. निगम पांडेय, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के डा. मधुसूदन मिश्र, दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. शिवाकांत झा, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद शुक्ल, केंद्रीय संस्कृत विश्ववविद्यालय मुंबई के प्रो. भारत भूषण मिश्र, श्रीकृष्ण परसाई (नेपाल), डा. रामेश्वर शर्मा, डा. सुशील कुमार गुप्ता आदि ने भी अपने विचार रखे।

    दो ग्रंथों का हुआ विमोचन

    सम्मेलन में प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री द्वारा कनाडा से प्रकाशित संपादित ग्रंथ ‘ज्योतिष मणि माला’ एवं डा. सुभाष पांडेय द्वारा संपादित ग्रंथ ‘मुहूर्त्तचिंतामणि’’ की प्रमिताक्षरा टीका का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।