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Gyanvapi Case: ...आखिर किसके आदेश पर बंद हुआ शृंगार गौरी का दर्शन-पूजन, मंदिर पक्ष ने कोर्ट के सामने उठाए कई अहम सवाल

विवादित ढांचा ध्वंस के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के इस्तीफा देने के बाद 1993 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। उस समय केंद्र में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। बैरिकेडिंग किसके आदेश पर हुई और मां शृंगार गौरी का दर्शन-पूजन किसने आदेश से रोका गया यह जानकारी किसी को नहीं है।

By Jagran News Edited By: Jeet KumarPublished: Tue, 30 Jan 2024 06:36 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jan 2024 06:36 AM (IST)
मंदिर पक्ष ने कोर्ट के सामने उठाए कई अहम सवाल

 जागरण संवाददाता, वाराणसी। वाराणसी स्थित ज्ञानवापी में मां शृंगार गौरी समेत अन्य देवी-देवताओं के नियमित दर्शन-पूजन की मांग को लेकर दाखिल मुकदमे में परिसर का एएसआइ सर्वे हुआ है। मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत में कई बार सवाल आया कि आखिर किसके आदेश पर ज्ञानवापी में बैरिकेडिंग की गई और उसकी पश्चिम दीवार पर मौजूद मां शृंगार गौरी की प्रतिमा के दर्शन-पूजन पर रोक लगी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

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विवादित ढांचा ध्वंस के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के इस्तीफा देने के बाद 1993 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। उस समय केंद्र में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार थी। बैरिकेडिंग किसके आदेश पर हुई और मां शृंगार गौरी का दर्शन-पूजन किसने आदेश से रोका गया, यह जानकारी किसी को नहीं है।

मंदिर पक्ष ने कही ये बात

मंदिर पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि ज्ञानवापी की बैरिकेडिंग को लेकर कोई लिखित आदेश नहीं है। ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट में जस्टिस जेजे मुनीर के सामने भी यह सवाल उठा था कि किसके आदेश पर बैरिकेडिंग की गई और मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन पर रोक लगाई गई। उस वक्त उप्र सरकार के अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी ने अदालत को बताया था कि इस बारे में कोई लिखित आदेश नहीं है।

जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सुनवाई के दौरान मंदिर पक्ष के वकीलों ने अदालत को जानकारी दी थी कि 1993 तक भूखंड आराजी संख्या 9130 (ज्ञानवापी) में मौजूद देवी-देवताओं का नियमित पूजा-पाठ होता था। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ध्वंस के बाद 1993 में यहां पहले बांस-बल्ली और उसके बाद लोहे की ऊंची बैरिकेडिंग करा दी गई।

ज्ञानवापी में लोगों के प्रवेश पर रोक लगाई गई

स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर से 1991 में दाखिल मुकदमे के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के अनुसार ज्ञानवापी में बैरिकेडिंग से पहले पूरे ढांचे के चारों तरफ चार फीट का परिक्रमा पथ था। हिंदू मां शृंगार गौरी की पूजा करते और ढांचे की परिक्रमा करते थे। 1993 में पहले इसी परिक्रमा पथ पर बांस-बल्ली और फिर लोहे की बैरिकेडिंग कर दी गई। इससे वहां लोगों के प्रवेश पर रोक लग गई। इसके खिलाफ विजय शंकर रस्तोगी की ओर से सिविल जज (सीनियर डिवीजन) फास्ट ट्रैक की अदालत में मुकदमा दाखिल किया गया।

किसी लिखित आदेश के बिना बैरिकेडिंग की गई

उन्होंने बैरिकेडिंग हटाने की मांग करते हुए कहा था कि किसी लिखित आदेश के बिना बैरिकेडिंग की गई है। इसी मुकदमे में उन्होंने ज्ञानवापी में एडवोकेट कमिश्नर की कार्यवाही की मांग भी की। अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद सिंह को कमिश्नर नियुक्त किया। उन्होंने परिसर में कमीशन की कार्यवाही की, लेकिन दक्षिणी व उत्तरी तहखाने में ताला बंद होने की वजह से वहां नहीं जा सके थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट अदालत में दाखिल भी की थी। हालांकि वादी पक्ष की ओर से उचित पैरवी नहीं होने के कारण मुकदमा खारिज हो गया था। विजय शंकर रस्तोगी का कहना है कि बैरिकेडिंग होने के बाद काबिज लोगों के विरोध की वजह से पूजा-पाठ पर जबरन रोक लगा दी गई।

शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बिना एएसआइ से परीक्षण कराया जाए

मंदिर पक्ष का कहना है कि इस क्षेत्र का मुस्लिम पक्ष के लिए कोई धार्मिक महत्व नहीं है, उनके मुताबिक तो यह कथित फव्वारा है। ऐसे में शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बगैर उसकी प्रकृति की पहचान करने के लिए एएसआइ से वैज्ञानिक परीक्षण कराया जाए। इसके लिए कोर्ट अपने 19 मई के आदेश को समाप्त करे जो इस पर रोक लगाता है।

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अर्जी में यह भी बताया गया है कि याचिकाकर्ताओं की मांग पर जिला अदालत ने सील क्षेत्र को छोड़कर ज्ञानवापी के बाकी परिसर में एएसआइ को सर्वे का आदेश दिया था और एएसआइ ने सर्वे करके अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है। मंदिर पक्ष ने ये अर्जियां मस्जिद पक्ष की सुप्रीम कोर्ट में पहले से लंबित विशेष अनुमति याचिकाओं पर दाखिल की हैं।

मस्जिद पक्ष की तीन विशेष अनुमति याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं जिनमें से एक में पूजा स्थल कानून को आधार बनाते हुए मंदिर पक्ष के मूल मुकदमे की सुनवाई योग्यता को चुनौती दी गई है। दूसरे में शिवलिंग के परीक्षण को चुनौती दी गई है और तीसरी याचिका में सर्वे के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के आदेश को चुनौती दी गई है।


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