वाराणसी के ज्ञानवापी को केंद्र में रख एक योजन का गोला खींचा जाए तो जो क्षेत्र आए वही है अविमुक्त क्षेत्र
काशी कितनी लंबी-चौड़ी है तो स्कंदपुराण का काशी खंड बताता है कि ज्ञानवापी को केंद्र में रखकर एक योजन का गोला खींचा जाए तो जो क्षेत्र उसमें समाहित होता है उसे ही अविमुक्त क्षेत्र कहते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुका है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : स्कंदपुराण के काशी खंड के अनुसार ज्ञानवापी काशी का मूल केंद्र है। यह आदिकाल से अब तक कभी नष्ट नहीं हुआ। यही काशी का अविनाशी तत्व है, इसलिए इसीलिए काशी को अविनाशी कहते हैं। जब भी काशी में धार्मिक, वैज्ञानिक, भौगोलिक या खगोलीय, कोई माप करनी हो, ज्ञानवापी को केंद्र में रखकर ही करनी होगी। जो स्थान शरीर में नाभि का है, वही काशी में ज्ञानवापी का है।
यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूगाेल विभाग के पूर्व अध्यक्ष व काशी के अध्येता प्रो. राणा पीबी सिंह का। वह कहते हैं कि जानना हो कि काशी कितनी लंबी-चौड़ी है तो स्कंदपुराण का काशी खंड बताता है कि ज्ञानवापी को केंद्र में रखकर एक योजन का गोला खींचा जाए तो जो क्षेत्र उसमें समाहित होता है, उसे ही अविमुक्त क्षेत्र कहते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुका है।
अमेरिकी खगोलशास्त्री ने किया था शोध
प्रो. सिंह बताते हैं कि 1993-94 में एक अमेरिकी खगोलशास्त्री जान किम मालविल भारत आए थे। वह भारत सरकार के कई प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे। वह भी उनके साथ सहयोगी के रूप में थे। उन्होंने जब पौराणिक उद्धरणों के अनुसार खगोलशास्त्र की विधि से काशी की माप की तो यह तथ्य वैज्ञानिक रूप से भी सत्य सिद्ध होकर सामने आया कि ज्ञानवापी ही काशी का केंद्र है।
ज्ञानवापी का अर्थ- ज्ञान का कूप
स्कंदपुराण के अनुसार, पृथ्वी पर प्राणियों की उत्पत्ति हो या ज्ञान की, उसका भी केंद्र ज्ञानवापी ही है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपने ज्ञान स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए ईशान रूप में त्रिशूल से उस स्थान पर खोदाई की, जो आज भी कूप के रूप में उपस्थित है। जल का अर्थ है ज्ञान और वापी का अर्थ है कूप। इस तरह इसका नामकरण ज्ञानवापी हुआ। प्रो. सिंह बताते हैं कि स्कंद पुराण के काशी खंड में सात उपखंड हैं, इनमें पांचवें खंड में ज्ञानवापी महात्म्य का वर्णन है।
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