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    International Nurses Day: डाक्टर बनने की थी तमन्ना, जीवन मरीजों की तीमारदारी में ही लगा दी सिस्टर सुलेखा ने

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Tue, 12 May 2020 05:43 PM (IST)

    कोरोना संकट की इस घड़ी में धैर्य व साहस के साथ जान जोखिम में डाल कोई मरीजों की तीमारदारी कर रहा है तो वह है नर्सिंग स्टाफ।

    International Nurses Day: डाक्टर बनने की थी तमन्ना, जीवन मरीजों की तीमारदारी में ही लगा दी सिस्टर सुलेखा ने

    वाराणसी [मुहम्मद रईस]। कोरोना संकट की इस घड़ी में धैर्य व साहस के साथ जान जोखिम में डाल कोई मरीजों की तीमारदारी कर रहा है तो वह है नर्सिंग स्टाफ। देश-दुनिया में यदि कोरोना मरीज तेजी से ठीक हो रहे हैं तो इसके पीछे इन्हीं की मेहनत, समर्पण व सेवाभाव है। कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश कर रहीं हैं बीएचयू अस्पताल की सिस्टर सुलेखा खासनवीस।

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    मरीजों की सेवा को परिवार पर तरजीह देते हुए इन दिनों वह बीएचयू अस्पताल के कोरोना आइसीयू में ड्यूटी संभाल रहीं हैं। जी हां, वही कोरोना, जिसका नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे सहम जा रहे हैं। इसी वायरस की चपेट में आए मरीजों की सेवा का दायित्व वह एक-दो नहीं बल्कि पूरे सात दिन निभाएंगी। इसके बाद सुरक्षा के लिहाज से उन्हें 14 दिन क्वारंटाइन में बिताना होगा। जांच आदि औपचारिकताओं के बाद ही उनको फिर परिवार के बीच जाना होगा।

    बनना चाहती थीं डाक्टर

    सुलेखा बचपन से ही डाक्टर बनना चाहती थीं। पिता आर्मी आफिसर थे, लिहाजा परिवार से उन्हें पूरा सहयोग भी था। सुलेखा के मुताबिक मौसी बीएचयू में ही थीं, इसलिए यहां से ही एमबीबीएस करना चाहा। हालांकि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पीएमटी क्लीयर नहीं कर पाई, जिसका बहुत मलाल हुआ। इस दौरान मौसी ने नर्सिंग करने की सलाह दी। कहा, यह भी डाक्टर जितना ही महत्व वाला काम है। पढ़ाई के बाद तीन साल यहीं ट्रेनिंग की। इसकी नैतिकता को जाना, दायित्व को समझा तो इसकी अहमियत का अहसास हुआ। शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन धीरे-धीरे मन मरीजों की सेवा में ही रम गया।

    सेवा, जिस पर नहीं जाता ध्यान

    शुरू में उनकी ड्यूटी ओटी में लगाई गई। उसके बाद आइसीयू में लगी, जो अब तक बरकरार है। सुलेखा बताती हैं कि आइसीयू की ड्यूटी के दौरान संकट मोचन मंदिर बमकांड, शीतला घाट विस्फोट, श्रमजीवी विस्फोट के घायलों की तीमारदारी की। आइसीयू में मरीजों के परिवारीजन आ नहीं सकते। लिहाजा मरीजों की देखभाल का जिम्मा नर्सिंग स्टाफ पर ही होता है। डाक्टर की तरह दवा आदि का ध्यान देने संग मांया बहन की तरह पूरे समर्पण भाव से देखभाल करनी होती है। परिवारीजन तो महज डाक्टर को जानते-पहचानते हैैं, लेकिन नसिंग स्टाफ के योगदान पर ध्यान नहीं जाता है जिसने मरीज का पल-पल ध्यान रखा।

    पति का मिला साथ

    सिद्धगिरी बाग निवासी सुलेखा पर पति मृदुल खासनवीस, बुजुर्ग सास-श्वसुर सहित 12 साल की बेटी शुभांगी की जिम्मेदारी है। ऐसे में 21 दिन परिवार से दूर रहने में उन्हें हिचक हुई। वहीं, पति ने बेटी सहित माता-पिता की जिम्मेदारी उठाकर साहस दिया। ड्यूटी के लिए प्रेरित भी किया।

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