Holi 2020 : होली में फाग व चहका इतिहास बनने की ओर, अब नहीं दिखती होली गायकों की टोली
होली का मौसम आने के साथ ही होली के मूड में समूचा पूर्वांचल अब आने लगा है। ...और पढ़ें

गाजीपुर [गोपाल सिंह यादव]। होली का मौसम आने के साथ ही होली के मूड में समूचा पूर्वांचल अब आने लगा है। होली की परंपराओं में फाग गायन का सदियों से अपना स्थान रहा है। मगर समय के साथ-साथ अब होली भी पहले जैसी नहीं दिख रही है। अब होली गीत के नाम पर भोजपुरी गायकों के फूहड़ गीत या फिल्मी होली गीत ही हर जगह सुनने को मिल रहा है। होली के दौरान गाये जाने वाले पारंपरिक गीत, चहका व जोगीरा अब इतिहास बनता दिख रहा है।
पहले बसंत पंचमी से होली का रंग लोगों के बीच नजर आने लगता था। बसंत पंचमी से होली गीत गाने वालों की टोली सजने लगती थी जो महाशिवरात्रि आते-आते अपने बुलंदियों पर पहुंच जाती थी। लेकिन अब होली की गायकी परंपराओं से हट कर नई धुनों व फिल्मी गीतों तक सिमट कर रह गयी है। याद आते हैं वो दिन जब झाल, झांझ व मंजीरे पर चौपाल लगाकर गायकी होती थी और होली खेले रघुवीरा.., शिवशंकर खेले फाग.., ई मटिलगना बहिया मरोरलस कईसे के पीसू हरदिया.., कलकतवा की हो बाजार जानी के ले भागा आदि गायकी तक आता और अंत में लक्ष्य चाहे जिस वय की महिलाएं हो, भऊजी से संबोधित होती थीं। गायकों की टोली मोहल्ले की जिन गलियों से गुजरतीं, महिलाएं बाल्टी में रंग घोलकर उन पर उड़ेल देतीं।
जिनके पास रंग नहीं था वह गोबर घोलकर या बाल्टी में पानी भरकर फेंकती थीं जिससे होली की टोली निहाल हो जाती थी। और सारा... रारा... कबीरा होली है का जोर से नारा लगाकर टोली प्रत्युत्तर देते आगे बढ़ जाती। इसी परंपरागत गायकी की बात तो उस समय होली का सबसे खास विधा 'चहका' का जिसे ढोल झाल पर गाते थे कि 'होली खेले रघुवीरा अवध में'। इस परंपरागत चहका ने तो फिल्मों में भी अपना स्थान बना लिया।
इसके बाद फाग की बारी आती थी कि...'राम चले बनमाही, कोई समुझावत नाही' आदि के बाद होरी की गायकी 'यमुना तट श्याम खेले होरी यमुनातट' की गायकी होती थी। फाग और होरी के बाद धमार का नंबर आता था, जैसे 'अंखिया भई लाल, एक नींद सुते द बलमुवां'। इसके बाद तो जो-गी-रा.. सबके तन मन में जोश भर देता था। वर्तमान में ये सब परंपराएं केवल स्मृति भर रह गई हैं। जिन पर आधुनिकता और भौतिकता का आवरण चढ़ चुका है। इन परंपराओं को संरक्षित नहीं किया जाएगा तो हम एक दिन भूल जायेंगे अपने पावन त्यौहार की थाती। भूल जायेंगे देवर भाभी की चुहल। अबीर और गुलाल लगाना। बस रह जायेंगी यादें स्मृतियों के बंद वातायन में..।

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