'जानकार ही नहीं जानते' नेशनल बिल्डिंग कोड-2005 को
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-भूकंपरोधी विद्यालय भवन के मानक सशक्त लेकिन जांच कागजी
विकास ओझा, वाराणसी
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स्कूल-कालेजों के भवन निर्माण के लिए मानक बहुत सशक्त है किंतु जमीनी कम, कागजी ज्यादा। सिक्किम में बीते दिनों आये भूकंप ने देश वासियों को झकझोर कर रख दिया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि हमारे स्कूलों की नींव कितनी मजबूत है। भूकंप व अन्य दैवीय आपदा को लेकर शासन, स्कूल कालेजों के भवन निर्माण को लेकर गंभीर है। वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता की ओर से इस आशय का आदेश जारी किया गया कि अब स्कूलों भवन का निर्माण नेशनल बिल्डिंग कोड-2005 के तहत ही हो। शासनादेश में स्पष्ट है कि किसी भी स्कूल को मान्यता देने से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाय कि स्कूल भवन नेशनल कोड में प्राविधानित सुरक्षा मानकों के अनुरूप है कि नहीं। समस्त राजकीय व निजी स्कूलों में एक माह में अग्निशमन यंत्र स्थापित हों, समय-समय पर सभी स्कूलों के भवन की मजबूती की समीक्षा सुनिश्चित की जाय, संबंधित अधिकारी व अभियंता इस संबंध में नेशनल बिल्डिंग कोड के मानको के अनुरूप सुरक्षा प्रमाण पत्र जांच पश्चात ही प्रदान करें। नियमों के विरुद्ध अगर प्रमाण जारी किए जाएंगे तो सख्त कार्रवाई होगी। इतना ही नहीं स्कूलों के शिक्षकों व स्टाफ को अग्निशमन उपकरणों और सुरक्षा उपायों के लिए प्रशिक्षित किया जाय। मुख्य सचिव ने यह निर्देश उच्च न्यायालय के एक निर्णय के आदेश के क्रम में दिया। बावजूद जिले के अधिकतर स्कूलों के अग्निशमन यंत्र नहीं हैं, भवन की मजबूती की कभी समीक्षा नहीं होती। इतना ही नहीं विद्यालय के भवन किस मानक के तहत बनें है, इसमें सुरक्षा के क्या उपाय किए गए हैं, दरअसल कार्यदायी एजेंसी तक को सही ढंग से यह नहीं मालूम।
शिक्षा विभाग के कई अधिकारियों से जब यह पूछा गया कि 'नेशनल बिल्डिंग कोड-2005' में सुरक्षा के क्या-क्या प्रावधान हैं, तो कोई इसके बारे में सटीक जानकारी नहीं दे सका। कुछ ने यह जरूर कहा कि गाइड लाइन के तहत भवन के निर्माण की जांच करते हैं और मान्यता के वक्त मुख्य अग्निशमन अधिकारी के प्रदत्त प्रमाण को देखा जाता है।
क्या है नेशनल बिल्डिंग कोड-2005
अधिशासी अभियंता आरईएस एनके श्रीवास्तव बताते हैं कि नेशनल बिल्डिंग कोड में एक भवन को भूकंप की दृष्टि से कितना मजबूत बनाया जा सकता है, इसमें सारे उपाय है। स्कूल के कक्ष निर्माण के दौरान सबसे पहले कुर्सी (आधार की दूसरी परत) फिर डोर लेबल पर सीमेंट बालू व गिट्टी आदि से बांधा जाता है। छत निर्माण के दौरान स्टील को 25 फीसदी बढ़ा दिया जाता है। फाउंडेशन में चारों तरफ से कोल (अलकतरा) का लेप किया जाता है। कॉलम पर सिर्फ तीन मंजिल भवन के निर्माण का आदेश है। दरअसल नेशनल बिल्डिंग कोड-2005 इतनी मोटी पुस्तक है कि उसमें भूकंप व अन्य दैवीय आपदा से बचाव के सारे तथ्य शामिल हैं। जरूरत इसे जमीनी आकार देने की है।
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