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    Havelis in Varanasi : पेशवाओं की शान का आभास कराती गणेश घाट की पांच मंजिला गुलेरिया कोठी

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Fri, 29 Jul 2022 11:18 PM (IST)

    Havelis in Varanasi पेशवाओं ने गणेश घाट पर पांच मंजिली कोठी बनवाई। पेशवा स्वयं बालाजी घाट पर स्थित पेशवा महल में रहते थे जबकि उनके अधिकारी और कर्मचार ...और पढ़ें

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    वाराणसी के गणेश घाट पर वर्ष 2017 में गुलेरिया कोठी का जीर्णोद्धार किया गया।

    वाराणसी, राजेश त्रिपाठी। बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी अपनी प्राचीन भव्य हवेलियों-कोठियों के लिए भी विख्यात है। विशेष तथ्य यह कि यहां देश के हर प्रांत का प्रतिनिधित्व करती कोठियां अथवा विशाल प्रासाद हैं।

    वृक्षों को भारतीय लोक में कितना महत्व प्राप्त है, शहर की प्रसिद्ध गुलेरिया कोठी इसका जीता-जागता उदाहरण है। इस कोठी में वर्तमान में चल रहे होटल के प्रबंध निदेशक आदित्य गुप्त कहते हैं कि कोठी के दक्षिणी भाग में एक जमाने में गूलर का विशाल पेड़ था जिसकी छांव आंगन में पड़ती थी। इसी गूलर के पेड़ के कारण यहां के गंगा घाट का नाम गुलेरिया घाट पड़ा।

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    आदित्य गुप्त के अनुसार गूलर के पेड़ के नीचे भगवान दत्तात्रेय का निवास स्थान माना जाता है। काल के थपेड़े से जब पुराना पेड़ धराशायी हो गया, तब उन्होंने इस देव वृक्ष को 2014 में पुनःरोपित किया जो अब बढ़ रहा है। पांच मंजिली इस विशाल कोठी के आकर्षित करने वाले अवयवों में गूलर का यह पेड़ भी शामिल है।

    पेशवाओं के अधिकारी और कर्मचारी गुलेरिया कोठी में रहते थे

    वर्ष 2017 में गुलेरिया कोठी का जीर्णोद्धार किया गया। इस कोठी को 18वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में मराठा पेशवाओं ने बनवाया था। जब मराठों ने बंगाल जीता तो लौटते समय काशी में अपना पड़ाव बालाजी घाट पर बनाया। साथ ही विजय की खुशी में गणेश घाट पर पांच मंजिली कोठी बनवाई। पेशवा स्वयं बालाजी घाट पर स्थित पेशवा महल में रहते थे, जबकि उनके अधिकारी और कर्मचारी गुलेरिया कोठी में। इसीलिए इस कोठी के कमरे छोटे-छोटे और सामान्य हैं किंतु संख्या में ज्यादा हैं।

    1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद पेशवाओं की संपत्ति जब्त कर ली गई

    1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद पेशवाओं की यह दोनों संपत्ति जब्त कर ली गई। इसके बाद इसे अंग्रेजों ने बेच दिया। इस कोठी में 25×15 फीट का आंगन है, जहां भगवान विष्णु की श्याम वर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। कोठी की निचली तीन मंजिल चुनार के पत्थर से तो चौथी और पांचवीं मंजिल लखौरिया ईंट से निर्मित है। भूतल पर एक प्राचीन कुआं है।

    भगवान गणेश की लाल पत्थर की प्रतिमा से युक्त मंदिर

    भूतल पर ही पेशवाओं के आराध्य भगवान गणेश की लाल पत्थर की प्रतिमा से युक्त मंदिर भी है। इसी कोठी में भगवान गणेश की मूर्ति के समक्ष महारानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी नरेश गंगाधर राव से हुआ था। इस विशाल कोठी का नवीनीकरण करते समय इसकी प्राचीनता का पूरी तरह ख्याल रखा गया है। यहां के कमरों में रखे फर्नीचर आज भी प्राचीनता संग भव्यता का आभास कराते हैं।