ज्ञानवापी के सीलबंद तालाब पर लगे ताला का कपड़ा बदलने पर आदेश दस नवंबर को
ज्ञानवापी के सीलबंद तालाब पर लगे ताले के कपड़े को बदलने के मामले में जिला जज संजीव शुक्ला ने सुनवाई के लिए 10 नवंबर की तारीख तय की है। श्रृंगार गौरी के दर्शन की मांग करने वाली महिलाओं के वकीलों ने कपड़ा बदलने की मांग की, जबकि मस्जिद कमेटी ने विरोध किया। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अगली तारीख दी।

ताले के कपड़े को बदलने के आदेश के लिए जिला जज संजीव शुक्ला ने दस नवंबर की तिथि निर्धारित की है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। ज्ञानवापी के सीलबंद तालाब पर लगे ताले के कपड़े को बदलने के आदेश के लिए जिला जज संजीव शुक्ला ने दस नवंबर की तिथि निर्धारित की है।
बुधवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान ज्ञानवापी स्थित मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग करने वाली महिलाओं की ओर से उपस्थित वकील मान बहादुर सिंह और सुधीर त्रिपाठी ने जर्जर हो चुके कपड़े को बदलने की मांग दोहराई।
इस पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील एखलाक अहमद, रईस अहमद और तौहिद खान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए प्रार्थना पत्र पर पुनः आपत्ति जताई। सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद जिला जज ने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई और आदेश के लिए दस नवंबर की तिथि निर्धारित की।
ज्ञानवापी मामले में शासन की ओर से न्यायालय में पक्ष रखने के लिए नियुक्त विशेष वकील राजेश मिश्र ने आठ अगस्त को तालाब पर शील करने में लगे कपड़े के नष्ट होने के कारण उसे बदलकर नए कपड़े से पुनः शील करने का प्रार्थना पत्र जिला जज की अदालत में प्रस्तुत किया था। सुनवाई के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ट्रस्ट के वकील रवि कुमार पांडेय भी उपस्थित थे।
इस मामले में सुनवाई के दौरान सभी पक्षों ने अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। महिलाओं की ओर से वकीलों ने यह तर्क रखा कि जर्जर कपड़ा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है, इसलिए इसे तुरंत बदला जाना चाहिए। वहीं, दूसरी ओर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए इस मांग का विरोध किया।
जिला जज संजीव शुक्ला ने सभी तर्कों को ध्यान में रखते हुए मामले की गंभीरता को समझा और सुनवाई की अगली तिथि निर्धारित की। यह मामला न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

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