Gyanvapi Masjid Case : काशी में पौराणिक काल की छह वापियों का मान, ज्ञानवापी का महत्व सर्वाधिक
पौराणिक नगरी काशी में छह अलग अलग वापियों का मान रहा है। वापी का अर्थ तालाब कूप या जलस्राेत से माना गया है। अमूमन ऐसे स्थलों पर शिवलिंग की स्थापना भी रही है। कुछ विलुप्त हो गईं तो कुछ अब भी अस्तित्व में हैं।
वाराणसी [अभिषेक शर्मा]। पुराणों से भी प्राचीन मानी जाने वाली नगरी काशी में मान्यता है कि प्राचीन काल से ही ही छह वापियों का अस्तित्व रहा है। इस लिहाज से काशी में ज्ञानवापी कोई अकेला आध्यात्मिक महत्व का स्थान नहीं है। पौराणिक मान्यताओं में काशी में छह वापी होने का जिक्र है। वापी का अर्थ तालाब या जल का स्थल होता है।
मान्यताओं के अनुसार पहला ज्येष्ठा वापी (काशीपुरा में थी जो अब लुप्त हो गई), दूसरा ज्ञानवापी (काशी विश्वनाथ मंदिर के उत्तर में वर्तमान ज्ञानवापी स्थल), तीसरा कर्कोटक वापी (नागकुआं), चौथा भद्रवापी (भद्रकूप मोहल्ले में है), पांंचवां शंखचूड़ा वापी (लुप्त हो गई) और छठवां सिद्धवापी (बाबू बाजार में लुप्त हाल में है)। इस प्रकार काशी की वापियों का आध्यात्मिक महत्व है।
काशी के ख्यात ज्योतिषाचार्य विनय पांडेय के अनुसार भारतीय सनातन परंपरा में ज्ञान का वास्तविक अर्थ परम तत्व के ज्ञान से है जो मोक्ष प्रदायक होता है तथा वापी का अर्थ बावड़ी या तालाब से है। अतः मोक्ष प्रदान कराने वाली वापी ही काशी में ज्ञानवापी के नाम से विभिन्न पुराणों में यथा स्थान उद्धृत है।
साक्षात भगवान शिव की नगरी काशी में ज्ञानवापी का अपना एक विशिष्ट महत्व है क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान शिव ने अपने ज्ञान स्वरूप का प्रतिपादन करने के लिए ईशान रूप में त्रिशूल से भूमि का उत्खनन कर जल निकालकर ज्ञानप्राप्ति हेतु शिव के अविमुक्तेश्वर स्वरूप की आराधना की तथा ज्ञानप्राप्ति में सहायक यह वापी ही काशी में ज्ञानवापी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस वापी के जल का पान करने मात्र से मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो जाता है जो मोक्ष में सहायक बनकर इस आवागमन से मुक्ति दिलाता है। जैसा कि लिंग पुराण में कहा गया है-
देवस्य दक्षिणे भागे वापी तिष्ठति मोक्षदा। तस्याश्चोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
भगवान शिव अपने विभिन्न स्वरूपों एवं नामों के अंतर्गत अष्टमूर्ति के नाम से भी प्रसिद्ध है जिससे उनको “अष्टमूर्त्तिर्निधीशश्च ज्ञानचक्षुस्तपोमय:" कहा गया है इन अष्ट मूर्तियों में भगवान शिव की
क्षितिमूर्त्ति, जलमूर्ति, अग्निमूर्त्ति, वायुमूर्त्ति, आकाशमूर्त्ति, यजमानमूर्त्ति, चन्द्रमूर्त्ति एवं सूर्य्यमूर्ति तंत्र शास्त्रों में वर्णित है। इनमें से जलमयी भगवान शिव की मूर्ति ही इस ज्ञानवापी में समाहित है जिसका स्पष्ट वर्णन स्कंद पुराण में प्राप्त होता है-
योष्टमूर्तिर्महादेव पुराणे परिपठ्यते। तस्यैवाम्बुमयीमूर्ति: ज्ञानदा ज्ञानवापिका।।