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    अमृत जैसी गुणकारी है अमृता, सूजन, गठिया सहित कई रोगों में हैं कारगर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 26 Jan 2019 07:03 AM (IST)

    गिलोय, गुडुची, अमृता, चक्रागी जैसे नामों से जानी जाने वाली औषधि सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। इसका सही मात्रा में सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। ...और पढ़ें

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    अमृत जैसी गुणकारी है अमृता, सूजन, गठिया सहित कई रोगों में हैं कारगर

    वाराणसी, (वंदना सिंह)। गिलोय, गुडुची, अमृता, चक्रागी जैसे नामों से जानी जाने वाली औषधि जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है, का आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अमृत समान खास गुणों के कारण इसे अमृता भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही इन पत्तियों का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में एक घटक के रुप में किया जाता है। चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार ने बताया की आयुर्वेद में गुडूची को प्रमुख रसायन द्रव्य बताया गया है। इसका रस तिक्त, कषाय, वीर्य उष्ण और विपाक मधुर होता है। इसे आयुर्वेद में भग्नसंधान, वृष्य, स्वर्य, रसायन, आमवातग्रन्थिहर, कफव्रण अपचीहर, पुराण मेदोहर बताया गया है। गिलोय की पहचान क्या है :

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    गिलोय (टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षीय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। यह पेड़ों, दीवारों और गमले आदि में लगाने के बाद रस्सी के सहारे आसानी से ऊपर चढ़ जाती है। यह पेड़ों पर चढ़ी हुई अक्सर पाकरें में दिखाई देती है।

    गिलोय सेवन से फायदे : इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। आयुर्वेद में यह बुखार ठीक करने की खास औषधि के रूप में मानी गई है। गिलोय हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाती है। गिलोय सभी प्रकार के बुखार में विशेष रूप से डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू में फायदेमंद होती है। इसके नियमित सेवन से फ्लू जैसी बीमारियों के होने आ खतरा कम होता है। सभी प्रकार के जीर्ण च्वरों को दूर करने में गिलोय बहुत फायदेमंद है। यह सर्दी, खासी,जुकाम में भी फायदेमंद है। गिलोय कोलेस्ट्रोल को कम करती है और खून में शुगर के नियंत्रण में सहायता करती है। गिलोय के नित्य प्रयोग से चेहरे पर तेज आता है और असमय ही झुर्रिया नहीं पड़ती। जोड़ों के रोग में भी फायदेमंद है। कामला यानी जॉन्डिस रोग में इसकी पत्तियों का पाउडर शहद के साथ लेने से या इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीने से फायदा होता है। हेपटाइटिस बी में इसके सेवन से लाभ मिलता है। रक्तवर्द्धक होने के कारण यह खून की कमी यानी एनीमिया में बहुत लाभ पहुंचाती है।