पीएम साहब, वापस लाएं संत कबीरदास की माला, थाईलैंड में माला होने का किया है दावा
वाराणसी स्थित संत कबीर दास की ऐतिहासिक माला थाईलैंड में है। यह दावा सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट के पीठाधीश्वर विवेक दास ने किया है।
वाराणसी, जेएनएन। संत कबीर दास की ऐतिहासिक माला थाईलैंड में है। यह दावा सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मूलगादी ट्रस्ट के कबीर पंथ प्रमुख व आचार्य पीठाधीश्वर विवेक दास ने किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से माला को देश में लाने का अनुरोध किया है ताकि मठ की संपत्ति को तय स्थान पर रखा जा सके। पीएम को संबोधित पत्र संसदीय कार्यालय व पीएमओ को प्रेषित किया गया है। संत विवेक दास का कहना है कि कबीर चौरा स्थित मठ कबीर दास की कर्मभूमि और साधना पीठ है।
यहां दूसरे परिसर में उनका लालन-पालन हुआ था। यह मठ संत परंपरा का अन्तरराष्ट्रीय केंद्र है। यहां पर्यटक और कबीर प्रेमी दर्शन-पूजन को आते हैं। 30 नवंबर 2013 को तीन थाई नागरिक छद्म बौद्ध भिक्षुक वेषधारी और दो शिष्य के रूप में दर्शन के बहाने मठ के स्मृति कक्ष में प्रवेश किया और ऐतिहासिक माला उठा ले गए। उस स्थान पर नकली रुद्राक्ष की माला रख दी ताकि लंबे समय तक असली माला चोरी होने की जानकारी नहीं हो सके। दूसरे दिन सुबह पुजारी आरती करने स्मृति कक्ष में गए तो माला चोरी होने की जानकारी हुई। घटना के दिन संत विवेक दास ट्रेन में थे जो छत्तीसगढ़ के रायपुर के कार्यक्रम से लौट रहे थे। फोन पर माला चोरी होने की सूचना मिलते ही उन्होंने मीडिया समेत शासन-प्रशासन को अवगत कराया। वाराणसी क्राइम ब्रांच व स्थानीय पुलिस के साथ आइबी सक्रिय हुई। गोरखपुर-नेपाल सीमा पर चार थाई नागरिक गिरफ्तार हो गए। इनमें एक थाई नागरिक को कोलकता पुलिस ले गई क्योंकि उसके खिलाफ रामकृष्ण आश्रम से माला और रामकृष्ण परमहंस की पत्नी के केश और दांत चुराने की रिपोर्ट दर्ज थी।
तीन थाई नागरिकों को पुलिस ने वाराणसी जेल भेज दिया। करीब दो साल तक जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट से आरोपितों को जमानत मिल गई। जिसके बाद कोर्ट की तारीखों पर आरोपित उपस्थित होते रहे हैं। संत विवेक दास का दावा है कि थाईलैंड में बौद्ध मंदिर के साथ कबीर मंदिर बन रहा है जहां से कबीर दास से जुड़ी कुछ ऐतिहासिक वस्तुओं की मांग की गई थी। मठ की सहमति नहीं मिली तो ऐतिहासिक माला चुरा ली गई। केंद्र में पूर्व की कांग्रेस सरकार ने माला वापसी का प्रयास किया था लेकिन वहां लोकतांत्रिक सरकार नहीं होने से सफलता नहीं मिली। वर्तमान में थाईलैंड का माहौल बदला है। इसलिए पीएम मोदी से उम्मीद बढ़ी है।