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    काशी में सिल्ट वापस बहाने से घाटों से दूर जा रहीं जाह्नवी! गाद से खतरे में अर्धचंद्राकार स्वरूप

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 11:06 AM (IST)

    गंगा नदी में जमा गाद को हटाने से काशी के अर्धचंद्राकार स्वरूप को पुनः स्थापित किया जा सकता है। गाद की वजह से किनारा कम होने से शहर का सौंदर्य छिप गया है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। सरकार गाद हटाने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिससे काशी को सुंदर बनाने में मदद मिलेगी।

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    जागरण संवाददाता, वाराणसी। घाटों की नगरी काशी की एक पहचान यहां गंगा का अर्धचंद्राकार स्वरूप भी है। गंगा आज काशी से दूर होने के कगार पर है और इस विनाशकारी बदलाव का बड़ा कारण प्रशासन द्वारा हर साल घाटों की सफाई के नाम पर गंगा में बहाई जा रही लाखों टन गाद (सिल्ट) है।

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    बाढ़ के बाद घाटों पर जमा इस सिल्ट को वैज्ञानिक ढंग से हटाकर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है, मगर नगर निगम और जिला प्रशासन अपनी तात्कालिक सुविधा के चलते गाद को घाटों के किनारे से उठाकर सीधे गंगा में प्रवाहित कर रहा है।

    आइआइटी बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर व नदी विज्ञान विशेषज्ञ डा. यूके चौधरी बताते हैं कि बीएचयू स्थित गंगा प्रयोगशाला के रिकार्ड के मुताबिक काशी में गंगा की लंबाई लगभग 10 किलोमीटर और चौड़ाई 360 से 750 मीटर थी। गर्मियों में अधिकतम गहराई 6.3 से 18.6 मीटर रहती थी, जिसमें सबसे गहरा स्थान गंगा पार से नगर की ओर तक 180 मीटर दूर था।

    गंगा पार से लगातार पहुंच रहे अपशिष्टों और घाटों की सफाई के नाम पर हर साल बहाई जा रही सिल्ट के कारण गंगा पार की औसत ऊंचाई लगातार बढ़ रही है। गर्मी के मौसम में गंगा के सबसे गहरे तल यानी 60 मीटर की औसत ऊंचाई भी बढ़ रही है।

    एनजीटी की आड़ में प्रशासनिक नीति की नाकामी

    ख्यात गंगाविद् और बीएचयू के पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के निदेशक रहे प्रो. बीडी त्रिपाठी इसे एनजीटी की आड़ लेकर अपनी गलतियों को छिपाने की रणनीति मानते हैं। वह स्पष्ट करते हैं कि एनजीटी की रोक केवल बालू खनन पर थी और वह भी कछुआ अभयारण्य के कारण, न कि गाद हटाने पर।

    कछुआ अभयारण्य अन्यत्र स्थापित किया जा चुका है तो गाद हटाने पर कोई रोक नहीं है। प्रशासन पहले खुद नहर की खोदाई कर सिल्ट के बेहतर उपयोग की प्रक्रिया शुरू करता था। हाल के वर्षों में करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सिल्ट के सही निस्तारण पर अमल नहीं हो रहा।

    सफाई के नाम पर गाद को वापस बहा देना न सिर्फ गंगा को घाटों से दूर कर देगा, इसके प्राचीन अर्धचंद्राकार स्वरूप को भी नष्ट कर देगा। लगातार सिल्ट जमा होने से गंगा का तल उथला और ऊंचा हो रहा है।

    प्रधानमंत्री ने भी गाद हटाने की मिसाल पेश की थी

    प्रो. त्रिपाठी याद दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में असि घाट पर फावड़ा चलाकर स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी और उन्होंने खुद बाढ़ की गाद हटाने का काम किया था। प्रशासन के लिए गाद को हटाना असंभव नहीं, लेकिन अब फर्जी नियमों की आड़ में सही नीति को धता बताया जा रहा है।

    बीएचयू के पर्यावरण विज्ञानी प्रो. कृपा राम बताते हैं कि बाढ़ की गाद में सिल्ट की मात्रा सबसे अधिक होती है। यह सबसे प्यूरीफाइड, सबसे सूक्ष्म भाग होता है, जो पानी की ऊपरी सतह पर रहता है। नीचे काले बालू, उसके ऊपर मिट्टी और सबसे ऊपर सिल्ट। जब सिल्ट घाटों के किनारे बैठती है तो घाटों की ऊंचाई बढ़ती जाती है, जो दीर्घकाल में भारी संकटों को जन्म देती है।

    काशी में गंगा पर विनाशकारी प्रभाव

    • गंगा का तल ऊंचा और उथला होने से प्रवाह बाधित होगा, पानी का ठहराव घटेगा
    • भविष्य में न सिर्फ गंगा की चौड़ाई घटेगी, बल्कि गर्मियों के मौसम में नदी सिकुड़ जाएगी
    • सिल्ट जमा होने से भूजल का पुनर्भरण बाधित होगा, जिससे शहर का भूजल घटेगा
    • गोद में कार्बनिक तत्वों के साथ भारी धातुएं होती हैं, जो नदी जल और पारिस्थितिकी के लिए जहरीली साबित होंगी
    • जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न होने से जल में घुलित आक्सीजन की मात्रा घटेगी और जैव आक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी