उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की भारतीय राजनीति में पांच दशकों की संघर्ष कथा
प्रो. रीता बहुगुणा जोशी और डा. रामनरेश त्रिपाठी की कृति यह चर्चित पुस्तक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजनीतिज्ञ हेमवती नंदन बहुगुणा की जीवनी है जिसमें भारतीय राजनीति में लगभग पांच दशकों की उनकी तथ्यपरक संघर्ष-कथा है।

नई दिल्ली, प्रणव सिरोही। देश को स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष से लेकर नवराष्ट्र निर्माण में पूर्ण मनोयोग से जुटे रहे हेमवती नंदन बहुगुणा करीब पांच दशकों तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। उनकी पुत्री रीता बहुगुणा जोशी ने 'हेमवती नंदन बहुगुणा: भारतीय जनचेतना के संवाहक' शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक में उनके बहुआयामी जीवन से परिचय कराया है, जिसमें प्रख्यात लेखक एवं विचारक डा. रामनरेश त्रिपाठी उनके साझेदार रहे।
लेखकद्वय ने बहुगुणा की इस जीवनी में पौड़ी गढ़वाल के बुधाणी गांव में जन्मे बालक से लेकर अमेरिका के क्लीवलैंड में अंतिम सांस लेने वाले इस राजनीतिक दिग्गज के जीवन को समेटने का प्रयास किया है। वह नेताओं की उस पांत के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने स्थानीय से लेकर राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। नई पीढ़ी भले ही हिमपुत्र से उतनी परिचित न हो, लेकिन उन्हें जानने वालों के जेहन में जब चूड़ीदार पायजामा, कुर्ता, कुर्ते पर जवाहर बंडी, सिर पर गांधी टोपी, टोपी से बाहर झांकते घुंघराले बाल, चेहरे पर तेज और संकल्प के ओज से ओतप्रोत एक व्यक्ति की छवि उभरती है तो बहुगुणा उनकी स्मृतियों में कौंधने लगते हैं। यह किताब उसी नेता के संघर्ष और उपलब्धियों की कहानी सुनाती है।
इसका आरंभ ही यह अत्यंत रोचक है कि गौड़ देश (बंगाल) से तीर्थ के लिए पहाड़ पर आया एक बंद्योपाध्याय परिवार कैसे 'बहुगुणा' बन गया। असल में उनके पूर्वज की प्रतिभा से प्रसन्न होकर गढ़वाल नरेश ने कई विषयों के ज्ञान होने का सम्मान उन्हें 'बहुगुणा' उपाधि के रूप में प्रदान किया, जो कालांतर में उपनाम बन गया। पुस्तक एचएन बहुगुणा के निजी एवं सार्वजनिक जीवन के साथ समान रूप से न्याय करते हुए आगे बढ़ती है। उनके विवाह का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। बहुगुणा का पहले एक विवाह हो चुका था, लेकिन जब कमला त्रिपाठी से दूसरे विवाह की बात आई तो परिवार में पुरजोर विरोध हुआ। गैर-पहाड़ी लड़की को लेकर बड़ी नाराजगी थी। किसी तरह बात बनी। उस बारात में डा. संपूर्णानंद भी शामिल हुए, जिनकी सरकार में बहुगुणा मंत्री भी बने। कमला बहुगुणा ने भी कालांतर में संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
यह किताब बहुगुणा को राजनीतिक उत्तरजीविता के एक उत्तम उदाहरण के रूप में भी स्थापित करती है। कुछ उदाहरण उल्लेखनीय हैं। यह उस दौर की बात है, जब इंदिरा गांधी 'गूंगी गुडिय़ा' वाली छवि तोड़कर एक मजबूत नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करने में लगी थीं। राष्ट्रपति का चुनाव इसका अहम पड़ाव बना। सिंडिकेट और श्रीमती गांधी आमने-सामने थे। राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार (मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता) और संगठन (प्रदेशाध्यक्ष कमलापति त्रिपाठी) दोनों के स्तंभ सिंडिकेट के साथ। तब सिर्फ प्रदेश महामंत्री बहुगुणा इंदिरा गांधी के खुले समर्थन में थे। किसी तरह उन्होंने कमलापति त्रिपाठी को मनाया और यही मान-मनौवल राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे में निर्णायक सिद्ध हुआ और इंदिरा बहगुणा की मुरीद बनीं।
इसी प्रकार 1971 में इंदिरा गांधी की जीत में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। तब माना गया कि उन्हें भारी-भरकम मंत्रालय मिलेगा। हालांकि मिला संचार महकमा, जो उन दिनों इतनी चमक-दमक वाला नहीं था। फिर भी उन्होंने सक्रियता से अपना काम करना शुरू किया और शायद इसी का पारितोषिक उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। बाद में इंदिरा गांधी से उनका मनमुटाव और जेपी से जुड़ाव भी हुआ। उनके जीवन में ऐसे कई मौके आए, जब उन्हें खारिज कर दिया गया, लेकिन बहुगुणा फिर से उभरने में सफल रहे। उन्होंने वही किया, जिसकी उनके अंतरात्मा ने गवाही दी।
उत्तर प्रदेश के पर्वतीय अंचल में जन्म लेने के बाद इलाहाबाद में बसने और लखनऊ-दिल्ली की राजनीति करने के बावजूद पहाड़ की अपनी जड़ों से उनका जुड़ाव हमेशा कायम रहा। अपने पिता को इतने निकट से जानने के बाद भी लेखिका ने उनसे जुड़े करीब 20,000 दस्तावेजों का गहन अध्ययन कर इस पुस्तक को लिखा है। पुस्तक में तमाम लोगों के साथ बहुगुणा के पत्राचार की उपस्थिति इसे प्रामाणिकता प्रदान करती है। कई यादगार चित्र भी दिए गए हैं। विषयवस्तु के स्तर पर पुस्तक अच्छी बन पड़ी है, लेकिन प्रस्तुति के पैमाने पर इसे और बेहतर बनाया जा सकता था।
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पुस्तक : हेमवती नंदन बहुगुणा: भारतीय जनचेतना के संवाहक
लेखक : प्रो. रीता बहुगुणा जोशी और डा. रामनरेश त्रिपाठी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
मूल्य : 499 रुपये
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