सेहत : छह ऋतुओं में जानिए कौन सा मौसम देता है चुनाैती, मौसम के अनुरुप हो कैसा भोजन
किसी भी व्यक्ति के शरीर का स्वस्थ और अस्वस्थ होना हमारे आहार-विहार पर ही निर्भर होता है, साथ ही खानपान में अनुकूलता के लिए हमें ऋतुओं का ज्ञान जरूरी है।
वाराणसी [वंदना सिंह]। किसी भी व्यक्ति के शरीर का स्वस्थ और अस्वस्थ होना हमारे आहार-विहार पर ही निर्भर होता है। साथ ही खानपान में अनुकूलता के लिए हमें ऋतुओं का ज्ञान जरूरी है। जैसे जैसे मौसम में परिवर्तन होता है उसके अनुसार आहार करने पर ही हम स्वस्थ, सुदृढ़ व सक्रिय रह सकते हैं। चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार ने बताया कुल 6 ऋतुएं शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद और हेमंत बताई गई हैं। जिसमें ग्रीष्म ऋतु सर्वाधिक कष्टदायी सिद्ध होती है। इन 6 ऋतुओं में शिशिर में अत्यधिक ठंड, वर्षा में अत्यधिक वर्षा और ग्रीष्म में अत्यधिक गर्मी पड़ती है। इनके क्रम के अनुसार ही प्रकृति में और शरीर में दोषों की स्थिति भी बदलती रहती है।
अभी हेमंत ऋतु चल रही है और शिशिर ऋतु आने वाली है। अत्यधिक जाड़ा पडऩे से बहुत सी बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है। यह मौसम शारीरिक विकास करने के लिए युवाओं के लिए खासकर औषधि-सेवन या भारी भोजन के लिए उचित है। इस ऋतु में शरीर के अंदर की जठराग्नि प्रदीप्त रहती है।
शिशिर ऋतु में होने वाली बीमारियां : इस समय ठंडी हवा बहने के कारण खांसी, गठिया की शिकायत, जुकाम, खुजली, त्वचा रुखी, सिरदर्द, बदन दर्द आदि रोग परेशान करते हैं।
शीत ऋतु में आहार : हल्का सुपाच्य भोजन करना चाहिए। हालांकि इस ऋतु में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है इसलिए गरिष्ट भोजन कर लेने से भी उसका पाचन हो जाता है और कोई समस्या नही होती है। गुरु, मधु, चिकनाई युक्त पौष्टिक तत्वों वाले पदार्थों का भी सेवन इस मौसम में किया जा सकता है। इस ऋतु में गाजर का हलुआ, छुहाड़े का हलुआ, सिंघाड़े का हलुआ, बादाम का हलुआ सभी उष्ण, भारी पदार्थों का सेवन किया जा सकता है। उड़द की दाल, चने की दाल का सेवन स्वास्थ्य के लिए इस मौसम में अच्छा है।
इस मौसम में करें परहेज : इस मौसम में ठंडे पदार्थों का सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिए। शीतल प्रकृति के पदार्थ न लें। कषाय रस वाले खाद्य पदार्थ, बासी भोजन सेवन योग्य नहीं है। खट्टी वस्तुओं का अधिक प्रयोग न करें। इमली, दही, अचार सभी इस मौसम में हानिकारक हैं। अधिक ठंडे जल से स्नान भी न करें। हो सके तो ताजे जल या उष्ण जल का प्रयोग करें। भोजन समय पर करें। रात्रि शयन समय पर करें और समय से जग जाएं।
इस ऋतु में कैसा विहार होना चाहिए : सर्वप्रथम जल का सेवन आप उष्ण कर किया करें या ताजा हल्का गर्म जल ही लें। स्नान करने से पूर्व पूरे शरीर में सरसों तेल का मर्दन कर लिया करें। आसन-प्राणायाम नियमित रूप से किया करें। प्रात: भ्रमण में उचित वस्त्र पहनकर ही निकलें। इस ऋतु में बात कुपित करने वाले विहार न करें। नहीं तो व्याधि उत्पन्न हो सकती है। पैर में जूते, मोजे का प्रयोग अवश्य करें।
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