नौकरी ठुकराकर मिर्च की तिताई में खोज ली जिंदगी की मिठास, सोनभद्र के किसान की पहल
सोनभद्र के कई अन्नदाताओं ने मिर्च की तिताई में भी जिंदगी का मीठा स्वाद खोज लिया है। यहीं वजह है कि नई पीढ़ी भी इसमें रूचि दिखा रही हैं। कोई स्नातक परास्नातक करके सीधे खेती में हाथ लगाया है ।
सोनभद्र [सुजीत शुक्ल]। कहते हैं जहां चाह वहीं राह है। इसी वाक्य को आदर्श मानते हुए सोनांचल के कई अन्नदाताओं ने अपनी परंपरागत खेती के तरीके को बदल लिया है। धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा के साथ ही अब वे नकदी खेती की ओर बढ़ रहे हैं। यहीं वजह है कि महज 35 से 40 हजार रुपये की लागत से तीन-चार लाख रुपये तक का मुनाफा कमाते हैं। ऐसे प्रगतिशील किसानों की तरक्की देखकर अन्य किसान भी इसी तरह की खेती में हाथ आजमाने लगे हैं। इन्हीं नकदी खेती में से एक है मिर्च। जिले के कई अन्नदाताओं ने मिर्च की तिताई में भी जिंदगी का मीठा स्वाद खोज लिया है। यहीं वजह है कि नई पीढ़ी भी इसमें रूचि दिखा रही हैं। कोई स्नातक, परास्नातक करके सीधे खेती में हाथ लगाया है तो कोई नामी कंपनी में सहायक प्रबंधक की नौकरी को ठुकराकर मिर्च की खेती में मन लगा लिया है।
खेती योग्य करीब सवा लाख हेक्टेयर भूमि में अब तक धान, गेहूं, मटर, अलसी, अरहर, ज्वार, बाजारा, उरद और मक्के की खेती प्रमुख मानी जाती है। दशकों से यहां के किसान इसी को लगाते रहे। इन सबके बीच जिस हिसाब से महंगाई बढ़ी उस हिसाब से फसलों का मूल्य नहीं मिला। इस स्थिति में खेती घाटे का सौदा बन गया। विवश किसानों की नई पीढ़ी का मोह खेती से भंग होने लगा। तभी जिले के कुछ किसानों ने तरीका बदला और मिर्च को प्रमुख खेती अपना लिया। राबट््र्सगंज ब्लाक के कुसी डौर इलाके में करीब दो दर्जन ऐसे किसान हैं जो मिर्च की खेती से हर वर्ष लाखों रुपये की कमाई करते हैं। उद्यान विभाग के अधिकारी बताते हैं कि इन किसानों की देखा-देखी अब तो हजारों किसान मिर्च लगाने लगे हैं। करीब पांच हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबा मिर्च का हो गया है।
कभी नौकरी को ठुकराया, आज बांग्लादेश भेज रहे मिर्च
कुसी डौर निवासी भोला के पुत्र मान ङ्क्षसह भी पढऩे में अव्वल दर्जे के थे। एमए करने के बाद वर्ष 2011 में महाराष्ट्र चले गए। वहां एक नामी कंपनी में सहायक प्रबंधक के पद पर नौकरी मिली। करीब डेढ़ वर्ष नौकरी किए, लेकिन मन तो खेती की ओर था। वर्ष 2013 में वापस गांव आए तो पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगे। उसी समय खेती का तरीका बदला और आज पिता-पुत्र प्रगतिशील कृषक हैं। मान ङ्क्षसह बताते हैं कि करीब आठ बीघा मिर्च की खेती किए। औसतन 35 से 50 हजार रुपये बीघा के हिसाब से खर्च आया। अब तक 25 लाख से अधिक का मिर्च बेच चुके हैं। बताया कि इस वर्ष बांग्लादेश के भी व्यापारी आए थे, लिहाजा अच्छा रेट मिला। बिहार भी मिर्च भेजने की बात कहे।
डेढ़ बीघे की खेती में तीन लाख की कमाई
वैसे तो धान की खेती करने वाले किसान अगर डेढ़ बीघे की फसल बेचते हैं तो 30 से 35 हजार रुपये मिलते हैं। वह भी तब जब अच्छी फसल रहती है। इससे इतर कुसी के ही रहने वाले श्याम बहादुर और उनका परिवार महज डेढ़ बीघे की खेती से तीन-चार लाख रुपये की कमाई करता है। इनके पुत्र अजय बताते हैं कि वे स्वयं पिता के साथ खेती में हाथ बंटाते हैं। इस वर्ष डेढ़ बीघे मिर्च की खेती किए। उससे अब तक करीब तीन लाख रुपये कमा चुके हैं। बताया कि करीब 75 हजार रुपये लागत आई है।
मिर्च की खेती में चुनौतियां भी कम नहीं
किसानों के मुताबिक मिर्च की खेती में चुनौती कम नहीं है। इसमें जितनी अच्छी कमाई है उतनी ही समस्या भी है। बताते हैं कि इसकी खेती काफी संवेदनशील होती है। कई बार पानी अधिक होने पर पौधे गलने लगते हैं। और तो और मिर्च के पौधों में रोग बहुत अधिक लगते हैं। सरकार अगर मिर्च की खेती करने वालों को अनुदान आदि देने लगे तो काफी लाभ होगा। साथ ही इसमें भी फसल बीमा होनी चाहिए। इससे नुकसान होने की स्थिति में भरपाई की जा सके। साथ ही बाजार की भी जरूरत है।
छह फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी का गठन हुआ है
अभी मिर्च की खेती के लिए कोई अनुदान की व्यवस्था नहीं है। इन्हें बेहतर बाजार देने के लिए छह एफपीओ यानी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी का गठन हुआ है। इसके माध्यम से किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकते हैं। जिले में मिर्च की खेती करने वालों की संख्या बढ़ रही है।
- सुनील कुमार शर्मा, जिला उद्यान अधिकारी
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