वाराणसी: मिट्टी को और उपजाऊ बनाएंगे सूक्ष्मजीव, इनसे बने उर्वरक से किसान को मिलेगा जैविक विकल्प, NBAIM की पहल
सूक्ष्मजीव आधारित ये जैव उर्वरक फास्फेट घोलक जीवाणु (पीएसबी) नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु पादपवर्धक जीवाणुओं से तैयार किए गए हैं। प्रत्येक क्षेत्र की म ...और पढ़ें

शैलेश अस्थाना, वाराणसी। वैज्ञानिकों के शोधों से निकलने वाले सार्थक परिणाम अब प्रयोगशालाओं तक ही सीमित नहीं रह जाएंगे। केंद्र सरकार वैकल्पिक उर्वरकों के प्रयोग पर जोर दे रही है।
इसके लिए बीते सप्ताह ही इस संदर्भ में राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए पीएम प्रणाम योजना को स्वीकृति मिली है। पहले भी पीएम नरेन्द्र मोदी प्रयोगशाला में हो रहे शोध को खेतों तक पहुंचाने का आह्वान कर चुके हैं।
इस क्रम में राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (एनबीएआईएम) द्वारा उत्तर प्रदेश में बड़ी पहल की गई है। विज्ञानियों द्वारा तैयार सूक्ष्मजीव आधारित जैव उर्वरकों किसानों तक पहुंचाए जाएंगे।
इससे करीब 18-20 लाख किसान लाभान्वित होंगे, जिन्हें इन उर्वरकों पर सब्सिडी भी मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय महत्व के संस्थान की इस पहल को आगे चलकर पूरे देश में विस्तार देने की योजना भी है।
मिट्टी की आवश्यकतानुसार प्रदान किए जाएंगे जैव उर्वरक
ब्यूरो के निदेशक डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों का चिह्नांकन करने के बाद उनके गुणों के आधार पर जैव उर्वरक बनाए गए हैं।
सूक्ष्मजीव आधारित ये जैव उर्वरक फास्फेट घोलक जीवाणु (पीएसबी), नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु, पादपवर्धक जीवाणुओं से तैयार किए गए हैं। प्रत्येक क्षेत्र की मिट्टी की आवश्यकतानुसार इन्हें किसानों को दिया जाएगा।
ब्यूरो के विज्ञानियों द्वारा तैयार फार्मूलेशन के अनुसार इन्हें राज्य की 10 जैव उर्वरक उत्पादक प्रयोगशालाओं वाराणसी, आजमगढ़, अलीगढ़, अयोध्या, देवीपाटन, लखनऊ, चित्रकूट, झांसी, इटावा व मेरठ में तैयार किया जाएगा।
प्रत्येक प्रकार के उर्वरक के 200 ग्राम के पैकेट बनाए जाएंगे। एक पैकेट उर्वरक एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होगा।
राइजोबियम, एजोटोवैक्टर, पीएसबी आदि जीवाणुओं का प्रयोग
डा. श्रीवास्तव ने बताया कि इन जैव उर्वरकों को बनाने में राइजोबियम, एजोटोवैक्टर और पीएसबी आदि जीवाणुओं का प्रयोग किया गया है।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए दलहनी फसलों में राइजोबियम की मात्रा बढ़ाई जाएगी तो गैर दलहनी फसलों में एजोटोवैक्टर दिए जाएंगे।
इसी तरह फसलों को स्वस्थ व पोषणयुक्त बनाने के लिए तथा रासायनिक खादों पर निर्भरता घटाने के लिए ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाएगा।
ब्यूरो ने सूक्ष्मजीवों के कल्चर राज्य सरकार को 26 मई को उपलब्ध करा दिए थे। सरकार की योजना इसी खरीफ सत्र व आगामी रबी सत्र में इसे किसानों तक पहुंचाने की है।
तीन हजार सूक्ष्मजीवों की डीएनए फिंगर प्रिंटिंग
राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो (एनबीएआईएम), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का शोध संस्थान है, जो मऊ जनपद में जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर कुशमौर गांव में स्थित है।
यह ब्यूरो देश की जलवायु में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों यथा बैक्टीरिया, फंगस, कवक आदि पर कार्य करता है। इन सूक्ष्मजीवों की विविधता पर शोध कर उनकी पहचान, चिह्नांकन, गुणांकन, जीनोमैपिंग करता है।
कृषि के लिए बहुविधि उपयोगी सूक्ष्मजीवों या उनके जीन को कृषि क्षेत्र में अनुप्रयोग करने के उपायों पर शोध करता है, ताकि इस प्राकृतिक धरोहर से कृषि को पूरी तरह प्राकृतिक, कार्बनिक और रसायनमुक्त बनाते हुए पर्यावरण, स्वास्थ्य और बढ़ती जनसंख्या के पोषण के अनुकूल, कम लागत में भरपूर उत्पादकता से युक्त बनाया जा सके।
ब्यूरो में देश के विभिन्न राज्यों की भिन्न-भिन्न जलवायु से प्राप्त लगभग 12,000 सूक्ष्मजीवों का कल्चर सुरक्षित रखा गया है।
इनमें से तीन हजार से अधिक सूक्ष्मजीवों की डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और लगभग सौ सूक्ष्मजीवों की जीनोम सीक्वेंसिंग भी की जा चुकी है।

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