काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : नौ गौरी में शामिल ललिता घाट की विशेष मान्यता
वाराणसी में ललिता घाट पर स्थापित देवी ललिता की मान्यता नौ गौरी में है।
वाराणसी : जहां गंगा वहीं सभ्यता संस्कृति और सरोकारों की कड़ियां जुड़ती रही हैं। बात जब काशी की हो तब इसके चौरासी प्रमुख घाटों में सभी धार्मिक महत्ता का मिलना सुखद संयोग है। दैनिक जागरण वेब सीरीज लाया है घाटों की उन्हीं कुछ विशेषताओं को अपने पाठकों के लिए।
काशी की परंपरा और संस्कृति में नव दुर्गा ही नहीं बल्कि नौ गौरी की भी विशेष मान्यता है। नौ गौरी में शामिल ललिता देवी को समर्पित ललिता घाट की अपनी विशिष्ट मान्यता है। घाट से निकास मार्ग के सम्मुख ललिता देवी का ख्यात प्राचीन मंदिर है। जिनकी विशेष पूजा चैत्र और शारदीय नवरात्रि में करने का विधान रहा है। घाट स्थित मंदिर गंगा के सम्मुख होने की वजह से इसे ललिता तीर्थ की मान्यता है और स्थानीय लोगों के मुताबिक इन्हीं वजहों से घाट का नाम ललिताघाट पड़ा। स्थानीय जानकार बताते हैं कि देश की आजादी के आसपास नेपाल नरेश ने मंदिर में आस्था की वजह से घाट को पक्का करवाया। तब से घाट का कई बार जीर्णोद्धार हो चुका है। हालांकि परिक्षेत्र में अन्य प्रमुख मंदिर जैसे समराजेश्वर व राजराजेश्वरी, सूर्य, गंगादित्य भी काफी प्राचीन माने जाते हैं। अन्य मान्यताओं के अनुसार ऊर्जा के केंद्र सूर्य को समर्पित काशी के द्वादश आदित्यों में यहां स्थापित गंगादित्य को प्रमुख स्थान दिया गया है। वहीं नेपाली समाज की ओर से लकड़ी का बना हुआ समराजेश्वर मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतीक माने जाने की वजह से नेपाली मंदिर भी कहलाता। नेपाल से प्राचीन संबंधों को दर्शाता पास ही नेपाल नरेश के प्रयासों ने लकड़ी से बना नेपाली कोठी भी है। घाट पर ही सिद्धगिरि एवं उमरावगिरि मठ भी श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। राजस्थानी समाज के जवाहर मल ने यहां मोक्ष भवन का निर्माण कराया था। घाट पर स्थानीय लोगों के अतिरिक्त राजस्थानी, नेपाली और गुजराती समाज के लोगों का अधिकतर आना जाना होता है। चैत्र व शारदीय नवरात्रि के अतिरिक्त गंगा दशहरा, देव दीपावली व कार्तिक मास में यहां स्नान दान और पूजन की विशेष मान्यता है।
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