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अलबेला मूर्खो का मेला, ठहाकों का रेला

वाराणसी : ठहाके लगाना, हंसना-हंसाना और दुश्वारियों व झंझावातों को भूल जाना तो कोई बनारसियों स

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Apr 2018 01:35 AM (IST)Updated: Mon, 02 Apr 2018 01:35 AM (IST)
अलबेला मूर्खो का मेला, ठहाकों का रेला
अलबेला मूर्खो का मेला, ठहाकों का रेला

वाराणसी : ठहाके लगाना, हंसना-हंसाना और दुश्वारियों व झंझावातों को भूल जाना तो कोई बनारसियों से ही सीखे। बस इसके लिए होना चाहिए कोई बहाना। वैशाख प्रतिपदा तद्नुसार रविवार की शाम ऐसा ही एक बहाना बना मूर्ख दिवस और इसका ठिकाना थीं घोड़ा घाट (अब डा. राजेंद्र प्रसाद घाट) की सीढि़यां। इसमें ठहाकों की गूंज में बड़े -बड़ों का राज फाश हुआ। पूरी रस व्यंजना के साथ काशिका अंदाज ने रिझाया तो बनारसी बोली का अनूठापन पूरे जोश पर आया। सजावट, कसावट, रवानी और मुहावरेदानी ने भी कुछ इस तरह लुभाया और गुदगुदाया की पेट पर बल पड़ जाएं। शनिवार गोष्ठी के अलबेले आयोजन महामूर्ख मेला में कवियों की रचनाओं से होते ठहाकों का रेला ठसी घाट की सीढि़यों पर उफान सा लाता रहा। गर्दभ राग से आयोजन के ईष्ट देव का आह्वान करते हुए मुख्य अतिथि डा. दीपक मधोक ने गर्दभ राजा की आरती उतारी और फिर तो राजनीति, सामाजिक रीति, भ्रष्टाचार-अनाचार तो पत्नी-प्रेयसी की प्रीति भी व्यंग्य बाण के निशाने पर आए। कनस्टर-नगाड़ा साज पर बेमेल जोड़े की बरात सजी। गुदगुदाते मंत्रों, आड़े तिरछे यंत्रों से दूल्हन ज्योतिषाचार्य डा. लक्ष्मण दास व दूल्हा पूनम दास का विवाह रचाया और कुछ ही देर में छुंट्टी-छुंट्टा भी कराया। प्राचीन पारंपरिक वाद्य सिंहा की तान तो धोबी नृत्य से माहौल आनमान। रही बात सम्मान की तो इसके लिए सूप, कजरौटा, चलनी जैसे सामानों ने शान बढ़ाई। इसे देखने के लिए घाट की सीढि़यों पर मानों पूरी काशी समाई। टूटी राग द्वेष की खाई और हृदय की कोटरों में फक्कड़ मस्ती समा आयी।

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रचनाओं में व्यंग्य फुहार

पं. सुदामा तिवारी ने गंगा की सफाई पर खर्च हुए लाखों लाख.. और झगड़ू भइया ने हम जोगी से कहलीं सरकार का करिहें गंगा माई, जहर बढ़त हौ पानी में गदहन क लाज शरम कब आई.. से गंगा की अविरलता-निर्मलता की ओर ध्यान आकर्षित किया। दमदार बनारसी ने बीत गया भोजपत्र और लेखनी का युग.. से सोशल मीडिया को निशाने पर लिया। डंडा बनारसी, गुरु सक्सेना, बादशाह प्रेमी, विनीत पांडेय, बृजेंद्र चकोर, फक्कड़ बनारसी, डा. धर्मप्रकाश मिश्र, अखिलेश द्विवेदी, दिनेश सिंह गुक्कज आदि कवियों ने रचनाएं प्रस्तुत कीं।

कंठ लंगोट से अगवानी, लालटेन से स्वागत

मेला के दौरान पहली अप्रैल पत्रिका, श्यामलाल यादव फक्कड़ गाजीपुरी की पुस्तक कुछ मेरे मन की व युवा कवि विजेंद्र मिश्र दमदार की संपादित किताब रसा की गजलें का विमोचन किया गया। स्वागत में नंद कुमार टोपी वाले ने उल्टी सीधी टोपियां पहनाई। विवेक सिंह, बसंतलाल यादव, विक्रमशील चतुर्वेदी व मंजीत त्रिपाठी ने टायलेट साफ करने वाला ब्रश व झुनझुना थमाया, डा. रमेशदत्त पांडेय व डा. एमपी तिवारी ने कंठ लंगोट पहनाया। संस्थाध्यक्ष जगदम्बा तुलस्यान व सचिव सुदामा तिवारी सांड़ बनारसी ने सम्मान पत्र भेंट किया और धन्यवाद दिया।


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