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    देवाधिदेव की नगरी काशी में विराजते द्वादश आदित्य, दक्षिण भारत से श्रद्धालु प्रदक्षिणा यात्रा भी करने आते हैं

    By pramod kumarEdited By: Saurabh Chakravarty
    Updated: Fri, 28 Oct 2022 10:45 PM (IST)

    द्वादश आदित्य के दर्शन को दक्षिण भारत से श्रद्धालु अधिक आते हैं और प्रदक्षिणा यात्रा भी कर जाते हैं। हालांकि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में अक्षय वट के पास द्रौपदी द्वारा स्थापित द्रौपदादित्य विग्रह मंदिर प्रशासन ने हटा दिया है। उनकी पुनर्स्थापना की तैयारी की जा रही है।

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    वाराणसी में लोलार्क कुंड स्थित सूर्य मंदिर।

    वाराणसी, प्रमोद यादव।  द्वादश ज्योतिर्लिगों में श्रेष्ठ आदि विशेश्वर भगवान श्रीकाशी विश्वनाथ की नगरी नर-नारी ही नहीं देवों को भी प्यारी है। समस्त मानव जाति आरोग्य, आयुष्य व मोक्ष के लिए तो देवगण भी महादेव की शरण मात्र के लिए आतुर रहते हैं। इससे ही काशी में 33 कोटि देवताओं का वास माना जाता है। यहां गलियों-घाटों पर विराजमान विभिन्न देव स्वरूप इसकी वास्तविकता का अहसास कराते हैं। इसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग के साथ ही चारो धाम, अष्ट भैरव यात्रा, नौ गौरी, नौ दुर्गा, 56 विनायक, षोडश विष्णु और द्वादश आदित्य के भी दर्शन हो जाते हैं।

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    द्वादश आदित्य के मंदिर भदैनी से लेकर अलईपुर तक स्थापित हैं। माना जाता है कि इन्हें अलग-अलग काल में यमराज समेत देव आदि ने प्रतिष्ठित किया। सबसे खास लोलार्कादित्य भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में विराजित हैं। यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी को लोलार्क षष्ठी के मान अनुसार संतति कामना से स्नान का विधान है। लोक मान्यता है कि काशी में भगवान आदित्य की तेजोमयी रश्मियां पहले लोलार्क कुंड में पड़ती हैं। यहां स्थित कुंड में सूर्य का चक्र भी गिरा था।

    ज्योतिष शास्त्र अनुसार देखा जाए तो जन्मांग में काल पुरुष की पांचवीं राशि सिंह है। इसके स्वामी ग्रहराज सूर्य होते हैं। पंचम भाव संतान भाव का प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिए पुत्र या संतति कामना से हमारे धर्म शास्त्र में सूर्य की महिमा का प्रमुखता से बखान किया गया है। देखा जाए तो संतति प्राप्ति व आरोग्य के लिए सूर्य षष्ठी (डाला छठ), लोलार्क षष्ठी, ललही छठ समेत जितने भी व्रत बताए गए हैं, सबमें भगवान भास्कर की पूजा होती है। इसमें सूर्य षष्ठी प्रमुख है। यह व्रत सर्व प्रथम द्वापर में माता कुंती ने किया था। वस्तुतः सूर्योपासना की परंपरा हमारे यहां वैदिक काल से है। इसके वर्णन से वेद-पुराण भरे पडे़ हैं। सनातन धर्म में प्रत्यक्ष देव स्वरूप में भगवान सूर्य का पूजन होता है।

    द्वादश आदित्य के दर्शन को दक्षिण भारत से श्रद्धालु अधिक आते हैं और प्रदक्षिणा यात्रा भी कर जाते हैं। हालांकि श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में अक्षय वट के पास द्रौपदी द्वारा स्थापित द्रौपदादित्य विग्रह मंदिर प्रशासन ने हटा दिया है। उनकी पुनर्स्थापना की तैयारी की जा रही है।

    काशी में द्वादश आदित्य

    लोलार्कादित्य (लोलार्क कुंड-भदैनी)

    विमलादित्य (जंगमबाड़ी-खारी कुआं)

    सांबादित्य (सूर्य कुंड)

    उत्तरार्कादित्य (बकरिया कुंड-अलईपुर)

    केशवादित्य (आदिकेशवघाट)

    खखोलादित्य (कामेश्वर गली)

    अरुणादित्य (त्रिलोचन महादेव मंदिर)

    मयूखादित्य (मंगलागौरी मंदिर)

    यमादित्य (संकठा घाट पर यमराज द्वारा स्थापित)

    गंगादित्य (ललिता घाट)

    वृद्धादित्य (मीरघाट)

    द्रौपदादित्य (विश्वनाथ मंदिर में अक्षय वट के पास)

    काशी में समस्त देव 15 अंश से विराजित

    स्कंद पुराण के काशी खंड के अनुसार सभी देवता मोक्ष नगरी काशी में 15 अंश से विराजमान हैं तो अपने मूल स्थानों पर महज एक अंश ही उनकी उपस्थिति होती है। वेद व्यास ने लिखा है कि काशी में देव दर्शन से अन्यत्र की अपेक्षा दस गुना पुण्य लाभ प्राप्त होता है।

    अन्यत्र दर्शन नहीं, मात्र भ्रमण की अनुमति

    धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि काशीवासियों को दर्शन पूजन के लिए काशी से बाहर जाने की जरूरत नहीं है। यदि बहुत इच्छा हो तो इसके लिए श्री आदिविश्वेश्वर से निवेदन करें, दर्शन करें और बेल पत्र लेकर ही जाएं। काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव दरबार में भी अर्जी लगाएं और भ्रमण के लिए जाएं।