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    काशी में सिंदूर खेला के बाद महिलाओं ने मां के अगले बरस जल्‍दी आने की कामना की

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 04:47 PM (IST)

    वाराणसी में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन धूमधाम से किया गया। मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिमाओं को कुंडों में विसर्जित किया गया। बंगाली समुदाय ने सिंदूर खेला की रस्म निभाई महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाया और आश्चे बोछोर आबर होबे का उद्घोष किया। शोभायात्रा में धुनुची नृत्य और झांकियां शामिल थीं। शहर के 13 कुंडों में विसर्जन हुआ और भक्तों ने जयकारे लगाए जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया।

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    वाराणसी में सिंदूर खेला व धुनुची नृत्य संग मां की विदाई।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। गच्छ-गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च.. इस मंत्र के उच्चारण के साथ मां दुर्गा की प्रतिमाएं गुरुवार और शुक्रवार को निर्धारित कुंडों में विसर्जित की गईं। देवी प्रतिमाओं को भावभीनी विदाई देने से पूर्व बंगीय समाज के पंडालों में महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म निभाई। वहीं शन‍िवार को भी स‍िंंदूर खेला के आयोजनों का स‍िलस‍िला चला। 

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    शक्ति आराधना का अनुष्ठान दुर्गाेत्सव संपन्न होने के साथ ही भव्य विदाई शोभायात्राओं संग  नाचते-गाते मां को ले चले भक्त तो अगले बरस जल्दी आने की मां से की गुहार भी स‍िंंदूर खेला के दौरान मह‍िलाओं ने की। शनि‍वार को गोल्डन स्पोर्टिंग क्लब में शाम चार बजे सिंदूर खेला करती महिलाओं ने मां के अगले बरस जल्‍दी आने की कामना की है। 

    इस अवसर पर प्रतिमा को सिंदूर लगाने के बाद एक-दूसरे को भरपूर सिंदूर लगाया गया और फिर ‘आश्चे बोछोर आबर होबे...’ का उद्घोष करते हुए ससुराल को विदाई दी गई। इसके बाद प्रतिमाओं को वाहनों पर रखकर शोभायात्रा के रूप में धुनुची नृत्य, बैंड की धुन और आकर्षक झांकियों के साथ कुंडों की ओर ले जाया गया। भक्तों द्वारा लगाए जा रहे जयकारों से पूरा वातावरण गूंज रहा था। इस प्रकार शक्ति आराधना के पर्व दुर्गोत्सव का समापन हुआ।

    गुरुवार को विजयदशमी के दिन मां को विदाई दी गई। रात्रि और भोर में प्रतिमा विसर्जन यात्रा आरंभ हुई। नाचते-गाते भक्त आकर्षक झांकियां सजाए, जयकारे लगाते हुए साथ चले। शहर में 13 कुंडों में विसर्जन किया गया, जबकि जनपद में कुल 656 स्थानों पर मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं।

    काशी जोन में 205 प्रतिमाएं स्थापित थीं, जिनके विसर्जन के लिए 16 अस्थाई तालाब बनाए गए थे। वरुणा जोन में 188 प्रतिमाएं थीं, जिनके लिए 50 अस्थाई तालाब बनाए गए थे। गोमती जोन में 263 प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए 162 अस्थाई तालाब बनाए गए थे। काशी में दो स्थानों की प्रतिमाओं का विसर्जन नहीं किया गया।

    नगर क्षेत्र में नगर निगम द्वारा 236 पंडालों की प्रतिमाओं के लिए 20 कुंडों की साफ-सफाई कराई गई थी। इनमें धनेसरा तालाब, पीलीकोठी, मछोदरी कुंड, मवैया पोखरा, जलकल परिसर, विश्व सुंदरी पुल के नीचे, मंदाकिनी कुंड, कंपनी गार्डेन, लक्ष्मीकुंड, सामने घाट, खड़कपुर तालाब, गुलरिया मोड़ के पास, रेवागीर पोखरा और चितईपुर थाना के सामने विसर्जन स्थल निर्धारित किए गए थे।

    इस प्रकार, मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन एक भव्य और धार्मिक उत्सव के रूप में मनाया गया, जिसमें भक्तों ने अपनी श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन किया। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज के एकजुटता और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। मां दुर्गा की कृपा से सभी भक्तों के जीवन में सुख और समृद्धि की कामना की गई।